Sunday, April 23, 2023

संतोष

  संतोष ।

विधा : भाव प्रधान ।

 मानव जीवन में संतोष, 

 मानवीय मूल्यांकन  नहीं, 

 ईश्वरीय देन मान!

 करोडपति सदा बीमारी,

संतोष  कहाँ?

 इन्स्पेक्टर  के पिता या बेटा

 अपराधी,  संतोष कहाँ?

 डाकू सार्वजनिक  माफ माँग,

 सांसद बना , 

पर जनता में संतोष कहाँ?

 प्रधान  मंत्री  का बेटा,

अल्पायु में जीवन मुक्ति,

जीवन में संतोष कहाँ?

 बडा तपस्वी, ईश्वर  का भक्त!

पर पडोस का भ्रष्टाचारी ,

बाह्याडंबर का आलिशान महल।।

 संतोष कहाँ?

   कबीर का दोहा,

  रूखा सूखा खाइकै,

ठंडा पानी पीव,

देखे ब्रादरी चोपडी मत ललचाओ जीव.

 संतोष  पियक्कड़  को पीने में.

 कामुक को अश्लीली बातें करने में.

 चोर को चोरी करने में,

 अंधे को आँखें मिलने में।

 वीरों को देश की सुरक्षा  में

 प्राण गँवाने में।

ठेकेदारों को कच्ची लडकें बनाकर

 पैसे हडपने में।

 संतोष ईश्वरीय  देन।

सबकी मचावत राम गोसाई।

 एस. अनंतकृष्णन, 

स्वरचित स्वचिंतक अनुवादक 

सौहार्द पुरस्कारी,

कबीर कोहिनूर  अवार्डी

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