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Tuesday, April 25, 2023

मानवता

 मानव मानवता नहीं तो

 वह मानव नहीं और कुछ  बन जाता ।

और कुछ बन जाता तो 

 लालची बन जाता।

 लालची बन जाता  तो

असंतोषी बन जाता ।

 असंतोषी  बन जाता तो

शांति खो बैठता,

 अपने को जितना भी सुख मिलता,

उतना ही दुखी हो जाता ।

 दुखी इसलिए कि हमेशा 

अभाव का ही महसूस  करता।

आजीवन लोभी दुखी ही रहता।।

 मानवता हीन मनुष्य बदमाश बन जाता को युग का ही नहीं, 

अगजग की शांति बिगाड देता।

 उनमें नहीं  दया, नहीं धर्म,  न सत्य।

बगैर इन्सानियत  का मनुष्य,

 इन्सान  नहीं ,पशु भी नहीं,

राक्षस से भी गया गुजरा है।

 स्वरचित स्वचिंतक अनुवादक 

सौहार्द पुरस्कार प्राप्ति, 

पद्म विद्यासागर,

तमिलनाडु  का हिंदी प्रचारक प्रेमी 

एस.अनंतकृष्णन ।






 



 

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