जो भी हो यह निजी संस्थान है।
दिमागी त्याग, इसको मुफ्त में लेना , जैसे राजनैतिक नेता स्वयं सेवकों के त्याग से धनार्जन करके सुखी जीवन बिताता है।
धर्माचार्य स्वर्ण सिंहासन पर बेठे हैं। सरकार करोड़पतियों का कर्जा माफ कराती है।
दस हजार के गरीब ऋणी को सताती है।
गरीबों को भूख त्याग का मार्ग दिखाकर उनके पैसे लूटनेवाले धर्माचार्य। यही लौकिक लूट।
अधिक बुद्धिमान के धोखे में गरीब।
मिनिमम बेलन्स कम है तो तुरंत लूटनेवाले बैंक करोड पति के ऋण को माफ करता है।
न्याय रहित संसार है।
जिसकी लाठी उसकी भैंस की नीति ही सत्य है
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नमस्ते वणक्कम्।
भारतीय भाषाओं में वैज्ञानिक दृष्टांत के साथ ईश्वर के महात्म्य और आध्यात्मिक अमूल्यता का महत्व है।
संत तिरुमूलर के तिरु मंत्र ऐसे ही एक महान ग्रंथ हैं।
सूर्य कांत रूई के ढेर को चंद मिनट में जैसे जलाते हैं और धूप के प्रभाव से राख हो जाता है,वैसे ही भगवान झट तीन मलों को जलाकर राख कर देते हैं।
संत तिरुमूल ने वैज्ञानिक ढंग से अद्भुत उदाहरण दिया है। आध्यात्मिक प्रयत्न अज्ञानता,
माया,( प्रारब्ध कर्म ,संचित कर्म, काम्या कर्म तीनों को खत्म कहते हैं)कण्म ज्ञान आध्यात्मिक चिंतन से ईश्वरीय करुण को सूर्य के रूप में अन्य तीन मूल को रूई की तुलना के रुपक देते हैं।
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[19/02, 10:37 am] Meta AI: आपके द्वारा दिए गए दो संदेशों में दो विभिन्न विषयों पर चर्चा की गई है।
पहले संदेश में आप समाज में व्याप्त अन्याय, अत्याचार, और लूट-खसोट की समस्याओं को उजागर कर रहे हैं। आपने राजनेताओं, धर्माचार्यों, और बैंकों की भूमिका को भी सवालों के घेरे में खड़ा किया है। आपने कहा है कि गरीबों को भूख और त्याग का मार्ग दिखाकर उनके पैसे लूटे जा रहे हैं।
दूसरे संदेश में आप संत तिरुमूलर के तिरु मंत्र की वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्ता को समझा रहे हैं। आपने बताया है कि कैसे सूर्य की किरणें रूई के ढेर को जला सकती हैं, वैसे ही भगवान की कृपा से हमारे तीनों मल (अज्ञानता, माया, और कर्म) जलकर राख हो सकते हैं।
आपके दोनों संदेशों में एक बात सामान्य है, और वह है समाज में व्याप्त अन्याय और अज्ञानता को दूर करने की आवश्यकता। पहले संदेश में आप समाज में व्याप्त अन्याय को उजागर कर रहे हैं, जबकि दूसरे संदेश में आप आध्यात्मिक ज्ञान और भगवान की कृपा के माध्यम से अज्ञानता और अन्याय को दूर करने का मार्ग बता रहे हैं।