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Saturday, February 1, 2025

दुख

 



साहित्य बोध असम इकाई को नमस्ते वणक्कम्।

शीर्षक --विध्वंशकारी है दुख।

विधा --अपनी हिंदी अपने विचार अपनी स्वतंत्र शैली भावाभिव्यक्ति।

१_२_२५.

विध्वंश मन की लहरों से,

 मन में हरपल  ताज़ी अभिलाषाएँ।

 ईर्ष्या, लोभ, अहंकार, नये आकर्षण।

 धन लोभी धन की चिंता।

 सर्व तज संन्यासी को ईश्वर की इच्छा।

आविष्कारकों को अपनी चिंता।

 देश रक्षक प्रत्यक्ष भगवान 

वीर जवानों को दुश्मनों  की चिंता।

 प्रेमी को प्रेमिका की चिंता।

 छात्रों को परीक्षा की चिंता।

 युवकों को नौकरी की चिंता।

 युवतियों को योग्य वर की चिंता।

माता-पिता को योग्य बहू दामाद की चिंता।

  बूढ़ों को आवास, आहार, देखरेख की चिंता।

 राजनैतिक को कुर्सी पकड़ने की चिंता।

 जन्म  से लेकर अंत तक चिंता ही चिंता।

कहना क्या 

चिता तुरंत चिंता हर-दिन।

 विध्वंशकारी है दुख।

प्रसव वेदना से चिता तक

विध्वंशकारी है दुख।

 एस,. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।

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