पशुओं की सुरक्षा।
एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई
12-12-25.
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पशुओं की सुरक्षा चाहिए,
क्या यह संभव है?
अनेक पशु मंदिरों के
खंभों मैं देखते हैं,
जिनका नामो
निशान अब नहीं।
हैदराबाद गया तो
वहाँ शाकाहारी भोजनालय अति
दुर्लभ है।
गली के कुत्तों की सुरक्षा में ब्लू क्रास,
तोते के ज्योतिष
को रोकने वाले
पशु पक्षी रक्षक,
मकड़ी के जाल में
फँसे कीड़े देख
पछताने लोग
माँसाहार खाने के इच्छुक।
कसाई की दुकानों में,
भीड़,
स्वादिष्ट माँसाहार भोजन,
स्वादिष्ट आकर्षित विज्ञापन,
शाकाहारी और माँसाहारी
के सम्मिलित भोजनालय,
अभयारण्य के पशुओं का नदारद।
ऐसा है मधुशाला खोलकर,
मधु पीना देश , परिवार,
व्यक्ति का नाश।
अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल की अनुमति देकर
मातृभाषा माध्यम का प्रचार ।
व्यर्थ काम ।
पशु रक्षा वनाधिकारी
रिश्वत रोकने का विभाग
फिर भी चंदन पेड़ की चोरी,
हाथी दांत की चोरी,
हिरन का शिकार
सब चलता रहता है।
कठोर दंड विधान नहीं,
अतः पशु की सुरक्षा कैसे?
ऊँट का माँस, बकरी का माँस, गो माँस, गोवधशाला
सब वैध।
सबहीं नचावत राम गोसाईं।
मछुआरे के जीवन,
मधुशाला कारखाने के मज़दूर,
सिगरेट कंपनी के मज़दूर
अंग्रेज़ी माध्यम के लूट
सब की सुरक्षा के सामने
पशु की सुरक्षा की समस्या अनावश्यक।
कसाई की दूकान,
विदेशी मजहबों की बढ़ती जनसंख्या,
मज़हबी परिवर्तन
यही प्रधान या
पशु की सुरक्षा।
सोचिए,
क्या
कसाई की दूकान बंद करने का कानून लागू कर सकते हैं?
मधुशाला कारखाने बंद कर सकते हैं?
खूँख्वार जानवरों के शिकार राजा करते थे।
मानव कल्याण मानव सुरक्षा,
१००%मतदेना
आदि प्रधान।
न पशु की सुरक्षा।
मांसाहारी मनुष्य के होते
यह तो असंभव।
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