क्रोध।
एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।
8-12-25.
क्रोध चाहिए
क्रोध न करना।
अन्याय के विरोध में
क्रोध दिखाना चाहिए।
वह क्रोध भी तभी
तभी दिखाना जब
क्रोध का पता लगें कि
न्याय पूर्ण हो।
विदेशियों का आक्रमण।
मंदिरों का तोड़ मरोड़।
आज़ादी के बाद
धर्म निरपेक्षता के नाम
दो हज़ार साल पुराना मंदिर।
मुगलों के आने के पहले मंदिर।
न्यायधीश के इंसाफ के बाद भी।
तमिल राष्ट्र कवि भारतियार ने कहा
रौद्र का अभ्यास कर लो।
जग भलाई के लिए
अत्याचार की चरम
सीमा पर भगवान
जन्म लेते हैं।
क्रोध न सीखने पर
अन्याय चरम सीमा पर
पहु़ँचता।
आज़ादी अहिंसा से नहीं,
भारतीय लाठी का मार सहते रहे।
दूसरी ओर देशभक्त
गर्म दल अंग्रेज़ी
के तार खंभ, थाना
मार्ग जिला देश
सब को चूर्ण कर रहे थे।
पर बिना सोचे विचारे
बांग्लादेश, लोभ वश
ईर्ष्या वश क्रोध
सही नहीं।।
क्रोध तो एक क्षण मैं
खूनी बना देता है।
पियक्कड़ों का क्रोध
निंदनीय है।
माता पिता गुरु का क्रोध
जीवन प्रगति के लिए।। आजकल की ताज़ी खबरें
माता ने सिनेमा जाने,
पैसे न दिए माता की हत्या।
अध्यापिका ने गाली दी,
अध्यापिका की हत्या।।
ऐसे क्रोध मूर्खता दंडनीय।
क्रोध बिना
सोचे विचारे होने पर
जिंदगी भर पछताना होगा।।
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