आपकी कविता से
प्रेरित यथार्थता।
गलत न समझना
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आधुनिक नारी पुरुष
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स्त्री और देह
जवानी में भी
मैंने नहीं सोचा।
बेचारी मेरी पत्नी,
भारतीय संस्कार की रानी
मेरे बारे में क्या सोचती होगी।
फिर भी मेरी भला चाहती।
ममता भरी , सेवा भरी
त्याग भरी नारियाँ।
आज देखना दुर्बल।
उर्मिला नलायिनि दमयंती
की कहानियां नारियों की वेदनाएँ,
खुद दंड देने लगी है
आधुनिक युवकों को।
वह अब कठपुतली बन गया,
नारियों का।
पंद्रह साल की उम्र में
शादी
वह पौरुष आनंद
हमारे पूर्वजों का ज्ञान।
जीवन पर्यन्त दांपत्य
त्याग मय सुखी जीवन।
संतानोत्पत्ति का यंत्र।
हर साल एक बच्चा।
फिर भी प्रसव वैराग्य भूल जाती।
कम से कम पाँच पुत्र।
गांधारी के सौ पुत्र।
आधुनिक शिक्षित
स्नातक स्नातकोत्तर में जमाना।
विवाह के तीन चार महीने में तलाक।
नारी को तो जल्दी शादी हो जाती।
पुरुष बेचारा,
अकेला , गुमसुम।
पाश्चात्य संस्कृति
संयम खोना,
ऋष्यश्रुंग जैसा
ब्रह्मचर्य की सीख नहीं।
कमज़ोरी अवस्था में
पच्चीस तीस साल में
शादी। असंतोषी जीवन।
भारतीय धर्म की
शादी व्यवस्था।
पच्चीस साल में पंद्रह बच्चे।
अब निःसंतान दंपति
तीस साल की उम्र में
डाक्टर के द्वारा संतान प्राप्त करने
विचित्रवीर्य सा
पांडु सा शुक्ल दान की प्रतीक्षा में।
आधुनिक नारी सबला,
आधुनिक पुरुष अबल।
अवैध संबंध की ताज़ी कहानियां, खून कत्ल तलाक।
अब सोचता हूँ,
प्रेम की ताकत।
औरत की चंचलता
रहीम का दोहा
पर प्रसिद्ध दोहा है: "कमला थिर न रहीम कहि, यह जानत सब कोय। पुरूष पुरातन की वधू, क्यों न चंचला होय।"
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