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Wednesday, December 24, 2025

अरावली

 अरावली की गूँज।

एस.अनंत कृष्णन चेन्नई 

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 मैं हूं अरावली पर्वतमाला,

अति प्राचीन,

 हिमालय से प्राचीन।

गंगा के पूर्व  की नदियों 

 को उत्पन्न करनेवाली।

 जीवोत्पत्ति का पहाड़।

 स्वार्थ मानव की कुदृष्टि  पड़ी।

परिणाम दिल्ली तक मेरी

 मालाओं का अधिक अंश

चूर्ण, जलस्रोत मैं 

 अति मेधावी मानव 

 प्रलाप कर रहा है

 धूल धूसरित  उष्णता भरी दिल्ली और मेरे 

 आस पास के क्षेत्र।

प्रकृति संतुलन बिगाड़नेवाला 

 मनुष्य दुख ही दुख झेलेगा जरूर।

 मरुभूमि को 

समृद्ध बनानेवाले 

 जमाने में 

जीवनदियों को 

 मरुस्थल बनानेवाले 

प्रदूषित करनेवाले 

 मानव की बुद्धि धिक्कार।

मैं हूँ अरावली पर्वत माला।

 मेरी आवाज़ गूँजेंगी

 प्राकृतिक क्रोध देखकर।


एस. अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना

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