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Thursday, December 4, 2025

ज्ञान और शिक्षा

 ज्ञान और शिक्षा।

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एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

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5-12-25.

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ज्ञान और शिक्षा 

 शिक्षा सब लोगों की

 निरक्षरता मिटाकर

 साक्षरता के लिए।

 नौकरी प्राप्त करने।

 स्नातक स्नातकोत्तर बनने के लिए।

 शिक्षित वकील

 धन के लिए अपराधी के पक्ष में न्याय 

 दिला सकता है।

 अधिकारियों 

 पुलिस अधिकारी 

 मनःसाक्षी के विरुद्ध 

काम कर सकता है।

 शिक्षा जीविकोपार्जन प्रधान।

 ज्ञान स्वयंभू है,

 विश्वविद्यालय की 

उपाधियाँ लौकिक 

जीवन से संबंधित।

 ज्ञान है पूर्व जन्म ज्ञान 

 आत्म ज्ञान, ब्रह्म ज्ञान 

 ज्ञान के ग्रंथों को 

 शिक्षित  लोग 

 आलोचना,समालोचना,

खोज ग्रंथ, डाक्टरेट

 नौकरी बस ।

 डाक्टरेट की संख्या बढ़ती हैं,

उनके वेतन स्तर 

बढ़ता है,

 उनसे कोई नये ग्रंथ 

 नयी क्रांति असंभव।

 आत्मज्ञानी, ब्रह्मज्ञानी,

 सरस्वती पुत्र हैं,

 वर कवि कालिदास।

 भक्त त्याग राज 

 उपनिषद, वेद , 

 आध्यात्मिक ग्रंथ 

 भगवद्गीता  आदि के

 रचनाकार,

 ज्ञानी, ब्रह्म ज्ञानी 

 उनके ग्रंथों की

 आलोचना, समालोचना,

 प्रवचनकर्ता, शोध ग्रंथकार, धन कमानेवाले,

सब किताबी कीड़े

 शिक्षित वर्ग।

 ज्ञानी तो सिद्धार्थ राजकुमार नहीं,

 बुद्ध बने ज्ञानी।। 

उज्जैन का राजा भर्तृहरि नहीं,

 अपने पत्नी के गलत संबंध जान संन्यासी बनकर जो ग्रंथ लिखे 

 वह ज्ञान ग्रंथ है।

अत्याचार निर्दयी 

 अशोक 

 बुद्ध धर्म 

अपनाने के बाद 

 विश्वप्रसिद्ध सम्राट अशोक।

 आदि शंकराचार्य 

 बचपन से ज्ञानी थै।। शिक्षित और ज्ञानी में 

 शिक्षित संकुचित दायरै में 

 नामी व्यक्ति।

 ज्ञानी विश्वविख्यात 

 सर्वप्रिय, विश्व हितैषी 

 मार्गदर्शी, ज्ञान अपने आप

 जैसे महर्षि रमण,

 अपनी जगह से न हटकर 

 विश्व भर के शिष्यों को

 अपने यहाँ खीँच लाये।

 भारत के ऋषि मुनि ज्ञानी।

 शिक्षा और ज्ञान में आकाश बादल का अंतर।।

ज्ञान व्यापक असीमित।

 शिक्षा संकुचित सीमित।

 तमिल कवयित्री औवैयार  ने

 लिखा है जो सीखा है ,

वह मुट्ठी बराबर,

 जो न सीखा है वह

 ब्रह्मांड बराबर।

भारत ज्ञानियों के भंडार घर।

 एक नहीं,एक ईसाई

 भारत में ही   ज्ञानियों से 

 प्राप्त आध्यात्मिक ज्ञान।

 अद्वैत, द्वैत, विशिष्टाद्वैत।

  आकार, निराकार  ब्रह्म रुप।

 वसुधैव कुटुंबकम् की भावना

 यही ज्ञान, सर्वव्यापी ब्रह्म विचार।


 


 


 

 

 








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