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Sunday, July 15, 2012

संप्रभुता-3

संप्रभुता -3

कोई राजा अपने राज्य में न्यायपूर्ण शासन  करता है ,तो संसार के लोग उसके चरण स्फर्श  करेंगे।उसके
 सुशासन का  बल अधिक  होता  है।

वल्लुवर की तुलना यूनान  के कवि   पोकिलैटिस   के साथ  करना चाहता  है। उनका  जीवन-काल ई.पूर्व छठवाँ  शताब्दी  है। उनके बारे में  अरस्तु ने  अपने "राजनीती"नामक  ग्रन्थ  में लिखा  है।पोकिलैटिश  यूनान के मैलिटास  नामक स्थान  में रहते  थे।उनके पद भी  कुरल -सा दो चरणवाले होते हैं।  उनमें धार्मिक अनुशासन के  सिद्धांत  होते  हैं।

 अपनी कविताओं के बारे में  उन्होंने  लिखा  है--"विषय जो भी हो,अपनी तटस्थता   के कारण अमर रहेगा।
मैं  भी  अपने शहर  में  तटस्थ  रहना चाहता हूँ।
वल्लुवर के कुरल भी  दो चरण के हैं। वल्लुवर का उद्देश्य  यह हैं  कि  न्याय  की स्थापना  में न्यायाधीश  को
तटस्थ  रहना चाहिए। उसके लिए उन्होंने जो औजार दिखाया  है  वह "तुला"है।
काल के अनुसार पोकिलैटिश   वलूवर के  पहले जमाने में रहते थे।फिर भी तटस्थता  के चिंतन में दोनों
बराबर  हो जाते  हैं।

संप्रभुता  के लक्षण  हे क्या है?
प्रजा की चाह  राजा होनी चाहिए;राजा की चाह प्रजा होनी चाहिए।

प्रजा की भलाई में राजा प्रजा को गले लगाकर चलेगा तो प्रजा राजा के गले लगाकर चलेगी।


      कुड़ी तलियीक  कोल ओच्चुम  मानिल  मन्नन   अडितलीयी   निर्कुम  उलकू।

 the world takes heed of the advice of a ruler who treats  his people fairly and justly.


लोगों से गले मिलने का मतलब होता है ---लोगों की जरूरतें  पूरी  करना।मधुरता से लोगों की बातें सुनना और सुनाना, लगान न मांगना, आदि।राज्य को अति ध्यान देकर  शासन करना;देश की प्रगति करना आदि।वल्लुवर के इस कुरल का अनुवाद पोप ने यों क्या  है:-
 the world  will constantly embrace the feet of the great king who rules over his subjects with love.

न्यायाधिपति  वल्लुवर  कसम खाकर कहते हैं  कि  न्यायानुसार शासन करनेवाले राजा की रक्षा न्याय ही करेगी।

  इरै  काक्कुम वैयकम  एल्लाम  अवनै   मुरै   काक्कुम  मुटटाच चेयिन .


कोवलन के अपराध  की  पूछ -ताछ  न करके  पांडिय राजा नेदुन्चेलियन  ने वध करने की सजा दी;
सत्यता प्रकट हुयी तो खुद अपनी जान दे दीं।अनजान  से  गलती हो गयी ;फिर भी उन्होंने   अपनी गलती मान ली; सुशासन उनकी रक्षा करने से नहीं फिसलेगा।

 if the ruler takes care of his people fairly and justly the rule of law  will safguard him.

g.u.pope:--
THE KING DEFENDS THE WHOLE WORLD;AND JUSTICE WHEN ADMINISTERD WITHOUT DEFECT,DEFENDS THE KING.

एक   राजा  तमिल वेद    के  लेखक और नयायाधिपति   वल्लुवर  के कथनानुसार सुशासन  न करेगा  तो उसका पतन निश्चित है।
 राजा  जो सुशासन  नहीं करता, उसका  पतन  तुरंत  न होगा।उन्नति  और -पतन दोनों के  बीच  संघर्ष करके,
अपमानित  होकर खुद विनाश हो आयेगा।

कुरल: एनपतततान  ओरा  मुरै   सेय्य़ा  मन्नन   तन्पतंतान   ताने  केडुम।


हाथी  अपने सर और शरीर  पर अपनी सूंड से मिट्टी  डाल  देता है,वैसे  ही वह राजा धूल  लेकर अपने सर पर डाल  लेगा।
THE RULER WHO IS UNAPPROACABLE  AND HAS NO SENSE OF ORDER OR FAIRNESS WILL SOON LOSE HIS STATUS AND DESTROY HIMSELF.
G.U.POPE:--
THE  KING WHO GIVES NOT FACILE AUDIENCE (TO THOSE WHO APPROACH HIM)
AND WHO DOES NOT EXAMINE AND PASS JUDGEMENT (ON THEIR COMPLAINTS)
WILL PERISH IN DISGRACE.


अपनी  प्रजाओं  में कुछ लोग  अज्ञानता  के कारण अपराध  करें  तो उन अपराधों के कारण खुद  को
और अपने परिवार -सी  रह्नेवाली भोले भाले  जनता  को होनेवाले कष्टों से बचाना चाहिए।अपराधी को दंड
देना चाहिए। वही राजा का धंधा  है। अपराधी को दंड देने  से  अपयश नहीं  होगा।

राजा  अपने  देश  के अपराधियों को दंड दे ने की तीन प्रणालियों का उल्लेख करते हैं वल्लुवर महोदय।
वे हैं;-1. दंड-शुल्क 2.शारीरिक दंड।3.फांसी की सजा।
हम तो तीनों को अपराध कहते हैं। वह तो गलत हैं।

अपराध:-अपराध के दंड हैं, मंदिरों में दीप जलाना;भक्तों के जूतों  को  धोना, आदि। ये दंड तो स्थान और देश के अनुसार  दिए जाते हैं।
शारीरिक दंड ही कठोर दंड है।
अपराधियों के अपराध के अनुसार दंड  देने पर ,वह उस अपराध को पुनः करने में संकोच करेगा या डरेगा।

उसको अपने को सुधारने  का अवसर मिल जाता है।अपराधी को राजा जो दंड देता है ,उसके फल स्वरुप वह अपराध फिर नहीं होना चाहिए।यह दंड न्याय  राजा का है।

ह्त्या करनेवालों में भी अत्यंत  पापी  कौन होता है? देखिये, पापियों की सूची:-

हत्यारे
आग लगानेवाले,
पेय-जल में विष उन्डेल्नेवाले,
डाकू,उचक्के,
देवालय संपत्ति को चुरानेवाले,
दूसरों के घर -चाहनेवाले
राजा से न  डरनेवाले
 इन सब दुष्टों  को मारकर  अच्छे लोगों की रक्षा करने से बढ़कर  राजा के लिए  और  कोई काम नहीं है।यही राजा का पहला कर्तव्य  है।
विदेशी शत्रुओं  से लड़ना,अपने देश की सीमा बढ़ाना आदि  राजा के लिए द्वितीय काम ही है।

राजा तो यहाँ विष पौधे और  अनावश्यक  पौधों को निराई  करनेवाला माली  है।

 A RULER LIKE A GARDNER WEEDING THE GARDEN MUST REMOVE THE MURDERERS IN ORDER TO PROTECT INNOCENT.

G.U.POPE:-FOR A KING TO PUNISH CRIMINALS WITH DEATH IS LIKE PULLING UP THE WEEDS IN THE GREEN CORN.
 प्राध्यापक पूर्नालिंगम पिल्लै  ने अपने तिरुक्कुरल के अनुसंधान में सम्प्रभूत्व का रस निछोडकर  वल्लुवर
महोदय  को सब न्यायाधीशों के न्यायाधिपति  कहकर ढिढोरा पीटा  है।

"A GOOD KING WILL BE JUST AND IMPARTIAL TAKE ADVICE AND ACT.HE WILL BE HELD DEAR  RAIN DROPS.HE WILL PROMOTE LEARNING AND SAGELY VIRTUE.
HE WILL WIN THE HEARTS OF THE SUBJECTS WHO WILL EMRACE HIS FEET.
THE LAND OF A KING WHO RULES BY JUST LAWS WILL BLESSED WITH SHOWERS AND WILL HAVE ABUNDANCE.EQUITABLE RULE NOT LANCE GAINS VICTORY FOR THE KING.IF THE KING GUARDS HIS REALM JUSTICE GUARDS HIM.THE KING WHO HEARS NO GRIEVANCES AND HEARING DOES NOT EXAMINE EVIDENCE AND PASS
JUDGEMENT WILL GO TO RAIN.TO PUNISH THE WICKED WITH DEATH WILL BE TO WEED OUT THE FIELS OF CORN.






Saturday, July 14, 2012

संप्रभुता -2

संप्रभुता -2

राजा को तमिल में  "कोन " कहते  हैं।"कोन ' तमिल शब्द  का अर्थ  है गडरिया।एक देश की प्रजाएँ  "बकरियाँ"  हैं  तो   राजा " गडरिया " है। "संप्रभुता" जिसका  तमिल शब्द  है  चेंकोंमै .यह संप्रभुता  चुस्त  राजा ही  कर   सकता  है।  यह  अधिकार "अपराध  न करना  अधिकार  के बाद  ही आता है।यह ध्यान  देने की बात  है।
अपराध और गुण दोनों को तोलकर शोध  करने  से यह " दंड " बन गया।

   "अत्याचार "  में  जैसे  तीन प्रणालियों के बारे में वल्लुवर  महोदय  ने चर्चा  की  है,वैसे  ही "संप्रभुता " को पुष्टि   करने तीन प्रणालियों का जिक्र  किया है।

 एक  अपराधी  के अपराधों को पूछ-ताछ  करके किसी प्रकाक की दया दिखाए बिना ,अपराध के अनुसार दंड  देना  ही   "इन्साफ " हॉट है।

वल्लुवर ने अपने  कुरल  में पाँच  बातें   इन्साफ  देने  के सम्बन्ध  में   बतायी  हैं। खोज करना,अवलोकन करना ,प्रशासनिक कार्य  करना,अपराधी  जो  भी  हो,दंड चुनना  आदि के बाद  ही न्याय दे सकता  है।ऐसी बातें
 उनके कुरल में खान के धातु -सम  मिलती रहेगी।

अपने  प्रथम  कुरल  में  वल्लुवर ने संप्रभुता के लक्षण खूब बताये  हैं।एस।रत्नकुमार  ने  एक ही शब्द  में   इस वल्लुवर के कुरल के बारे में  बताया  है  ---"सम्प्रभूता  को  वल्लुवर ने "जस्टिस"कहकर  संसार को बताया है।


THERE WILL BE JUSTICE IF THE RULER IMPLEMENTS A COURAGE OF ACTION ONLY AFTER HE HAS EVALUATED  THE SITUATION   IN HAND.

REV.FATHER.G.U.POP--TO EXAMINE IN TO (THE CRIMES WHICH MAY BE COMMITED)
TO SHOW NO FAVOUR (TO ANY ONE)TO DESIRE TO ACT  WITH IMPARTIALITY TOWARDS ALL AND TO INFLICT (SUCH PUNISHMENT)AS MAY BE WISELY RESOLVED ON ,CONSTITUTE.
ब्राह्मणों  द्वारा रचित नीति-ग्रन्थ  और धार्मिक ग्रन्थ , जो लोगों के सुमार्ग  पर चलने  का आधार हैं,

वह राजा के सम्प्रभूता  के कारण ही  सुरक्षित  रहेगा।तोल्काप्पियर  ने  कहा --एक ग्रंथकार  की प्रशंसा
 करना,कर रहित खेत  देना,
पुरस्कार देना,एक ग्रन्थ को प्रकाशित करना  आदि   काम  राजा के ही हैं।  तोल्काप्पियम  के अनुसार

पुराने  जमाने  में  सभी आदि ग्रन्थ मुनियों के  द्वारा  ही लिखे गए हैं।
इन सब को वल्लुवर ने क ही कुरल में बताया है।

राजा  का दंड  ही विप्रों के ग्रन्थ ,धर्म आदि के आदी है  राजा का सम्प्रभुत्व।

राजा का शासन सुशासन न  होने पर  धर्म -ग्रंथों  की स्तुति करनेवाले,धर्म पथ का पालन करने वाले कम हो जायेंगे।
वल्लुवर एक धार्निक सज्जन हैं।धर्म ग्रंथों  में जो धर्म की बातें हैं,वे सब तिरुक्कुरल के 'धर्म "भाग में मिलते हैं।

THE  RULER'S GOOD SENSE OF JUSTICE AND FAIRNESS AND INSTRUMENTAL FOR THE PROGRESS OF MORAL LAWS AND "ARAM"  (DOING THINGS ,WITH HONOUR FOR THE LESS FORTUNATE.

G.U.POPE--THE SCEPTER OF THE KING IS THE FIRM SUPPORT OF TH E VEDAS  OF THE
BRAHMIN AND OF ALL VIRTUES THERE IN DESCRIBED.

संप्रभुता -1

संप्रभुता

सब नदियाँ  समुद्र  की  ओर  चलकर उस में संगम  होते  हैं ;  वैसे  ही सब शासन  प्रणालियाँ  अंत  में न्याय प्रणाली  की   ओर  चलती  है।  इसे कोई छोड़ नहीं सकते।न्याय-पूर्ण  शासन  सहज गति   में   चलता  है।अन्याय के शासन को न्याय  के सामने   जवाब देना ही पड़ेगा।उसको  न्याय का दंड भोगना  ही  पडेगा।
अवलोकन,अपराध -कमजोरियाँ ,डरनेवाला काम न करना,अत्याचार  आदि को  संप्रभुता के अधीन में झुककर
अपने को बदलना ही पडेगा। संसार में अपरिवर्तित स्थायी  रहनेवाला   न्याय  मात्र  है।उसका  प्रकट रूप  ही
संप्रभुता  है।
संप्रभुता  माने क्या है?

राज शासन का सीधा दंड  संप्रभुता  है ;सुशासन संप्रभुता है;न्यायपूर्ण  प्रशासन  संप्रभुता  है;न्याय का शासन संप्रभुता  है;
देश  के  छे  प्रकार  की  शान्ति   में  एक    संप्रभुता है तो धार्मिक  शासन ही संप्रभुता  है।

1.न्यायिक  प्रशासन(administration of justice)  2.तिरुक्कुरल में न्यायिक  प्रणाली का उपचार करने  का तरीका ,(  treatment of judicial  system in kural)3. न्याय  क्या  है?(what  is justice)   आदि के कुरलों को अन्वेषण  करके  देखने  पर, विस्मय  होना  पडेगा  कि  वल्लुवर महोदय  ने न्याय को कितना अत्यावश्यक  और महत्व्  पूर्ण  माना है।
  carefully  considering  the facts,  without  yielding  to feelings of passion, acting with integrity towards  all, and deciding  according  to law; so as to act easy to administer justice.
न्याय  के लिए इससे अधिक स्पष्टीकरण और  देने की ज़रुरत  नहीं है।

वल्लुवर ने अपराध  और दंड  के बारे  में जितनी ही महत्व्  पूर्ण  बातें  बतायी है,उन सब को व्यवहार में लागू करेंगे  तो अपराध कम होंगे और  अपराधियों की संख्या  कम होगी।

Some sailent principles for criminal law and punishment have been enumerated by Valluvar. First of all the criminal laws should be stringent. But the punishment awarded should be lenient. This principle has been adopted in he Indian penal code and for that matter it has been adopted universally by all the countries of the world.

  न्याय  का चिन्ह  किसे  कहते हैं?  तराजू को।क्यों?
 तराजू का काँटा  तटस्थ  रहता है।वह किसी  के  पक्ष में नहीं झुकता।वल्लुवर महाशय  ने इसे  ध्यान से देखा  और इसीको न्याय का  चिन्ह  घोषित  किया।  केवल  भारत के लिए मात्र  नहीं,सारे संसार  के लिए न्याय का चिन्ह   तुला ही है।तटस्थता  के  लिए   एक अधिकार  लिखकर  उसमे तुला को तटस्थता के तुला -सा कहा है वल्लुवर ने।
उनका कहना है  कि    उत्कृष्ट -पुरुषों  के लक्षण  हैं---तुला-- सा  सबको सामान दृष्टी  से देखना।

kural:  समन  सेय्तु  सीर तूक्कुम  कोलपोल  अमैन्तोरुपाल  कोडामै  सान्रोर्क्कू अणि।


THE  BALANCE  IS CONSIDRED THROUGH OUT  THE WORLD AS THE ENBELEM OF JUSTICE  AND VALLUVAR REFERS  TO THIS EMBLEM IN THS CHAPTER.FOR MEN OF
EXCELLANCE ,IT IS A GOOD ORNAMENT  TO ACT  LIKE A BALANCE.THIS IS ONE OF THE FAMOUS AND OFF QUOTED COUPLETS OF VALLUVAR.




अत्याचार+++

अत्याचार


अत्याचार  शब्द सुशासन  का  विलोम शब्द  है।
शासकों के बेईमान  शासन;अर्थात अन्याय पूर्ण  शासन।
वहां न्याय को दंड मिलेगा।अतः  राजा का शासन तानाशाही  होता है।
तानाशाह  शासन से दुखी  जनता  सुशासन की चाह  में रहती है।
छाया का महत्व्  गर्मी  में ही मालूम होगा।

अतः पहले अत्याचार शासन पर जिक्र करेंगे।

साहित्य  में जहाँ न्याय की चर्चा  होती  है,वहाँ व्यवस्था शब्द  का प्रयोग होता है।

न्यायाधिपति  वल्लुवर  ने भी अपने कुरल में  शासन,मंत्रित्व,सुशांसन ,अत्याचार आदि अधिकारों में व्यवस्था

शब्द  को उचित रूप में प्रयोग किया है।
इस शब्द का अर्थ क्या है?
तमिल -शब्द कोष  लगभग पंद्रह अर्थों की ओर  संकेत करता है।वे हैं:--
व्यवस्था,परिवर्तन करके काम करने का नियम, समय संख्या, जन्म,अनुशासन,रिश्ता, राज-न्याय ,प्राचीनता,भाग्यरेखा,सहकारी,ग्रन्थ,गुण,आरोप  आदि ।

लिफ्को  तमिल -तमिल-कोष में निम्न अर्थ दिए गए हैं:--
आदेश, (order),व्यवस्था,(arrangement)(system),सामान्य (routine ),समय गिनती(number  of  times )
अनुमोदित आचरण (approved  conduct ),रिश्ता (relationship),राजन्याय (जस्टिस),विधि (fate )
प्रकृति (nature ),शिकायत (complaint ),पतिव्रता (chastity ) आदि  अर्थ दिए गए हैं।

इन अर्थों में राज-न्याय,शिकायत,प्रणाली,अनुमोदित आचरण  आदि अर्थ
 हमारी  चर्चा  के विषय के साथ लगते हैं।
इसलिए  आचरण  -व्यवस्था कहते  ही सब को मालूम हो जाएगा क़ि  वह न्याय से सम्बंधित है।
वल्लुवर ने भी इसका प्रयोग कई सन्दर्भों में किया है।
 अत्याचार शीर्षक के सभी कुरलों में व्यवस्था  के अर्थ पर अधिक बल दिया गया है।
फिर भी तीन कुरालों में व्यवस्था शब्द का सीधा प्रयोग मिलता है। अत्याचार  शब्द को अनुवादकों ने सीधा अनुवाद किया है,injustice .इससे ज्यादा सोचने का अवसर वल्लुवर ने नहीं छोड़ा है।अव्यवस्थित शासक अपनी जनता को बहुत सताता है।अतः वह एक खूनी  है;
खूनी  से बढ़कर बडा   अत्याचारी होता  है। उसके शासन में न्याय देव का शासन कैसे होगा?

कुरल:

कोलै  मेर  कोंडारीर  कोडिते  अलैमेर  कोंडु   अल्लवै   सेय्तु  ओलुकुम  वेंतु।


the  ruler  who oppresses  his  people  worse  than   a  ruthless  murder .
g.u.pope;-"THE CRUEL SCEPTER".  "THE KING WHO GIVES HIMSELF UP TO OPPRESSION AND ACTS UNJUSTLY (TOWARDS SUBJECTS) IS MORE CRUEL THAN THE MAN WHO LEADS THE LIFE OF A MURDERER."
प्राध्यापक  पे।  सुन्दरानार  राज -शासन को अग्नि -नदी और केश-सेतु  संबोधित करते हैं।
 उन्होंने कहा  है कि एक राजा जागृत रहेगा तो बचेगा;नहीं तो पतन की सीमा पर गिरेगा;उठेगा नहीं।
वल्लुवर ने अपने काल में ही इसको बताया है।

रोज़ न्याय के आधार पर जो राजा शासन नहीं करता,वह रोज़ अपने देश को खोता रहेगा।

कुरल:
नाल तोरुम नाडी  मुरै  सेय्या  मन्नन     नाल तोरुम  नाडू केडुम।

THE COUNTRY  WILL BE RUINED IF THE RULER IS DEAF TO HIS PEOPL'S CONCERNS.

G.U. POPE:-
THE COUNTRY OF THE KING WHO DOES NOT DAILY EXAMINE IN TO THE WRONGS DONE AND DISTRIBUTE JUSTICE WILL DAILY FAAL TO RUIN.
यह पोप की सरल व्याख्या है। न्याय को प्रथम  स्थान देकर  शासन करेंगे तो जनता जियेगी
।राजा भी उन्नत होगा।न्याय को अंतिम स्थान  मिलें तो
 प्रजा का और राजा   दोनों का नाश निश्चित हो जाएगा।
यही न्याय की शक्ति है;बल है।
हम प्रत्यक्ष  देखते हैं कि  धनी सुखी जीवन बिताता है।संसार की नीति-रीति  भी यही है।लेकिन वल्लुवर ने इसका उलटा पुल्टा कर दिया है। यह  आश्चर्य का विषय हो जाता   है।लेकिन यही सत्य  बात है।

अत्याचारी के शासन में लोग जियेंगे तो गरीबी अच्छी होती है;अमीरी दुखप्रद हो जाता है।

कुरल:

इन्मैयिन  इन्नातु उडैमै  मुरै  सेय्या   मन्नवन  कोल पडिंन .

EVEN THE WELL OFF WILL BE WORSE -OFF,THAN THE POVERTY-STRICKEN PEOPLE UNDER ON UNJUST GOVERNMENT.
वल्लुवर  का उदार दिल सब तरफ के लोगों का सुखी जीवन ही चाहता है।लोगों को सुव्यवस्था का मार्ग दिखानेवाले वल्लुवर ने राजाओं को भी  शासन-व्यवस्था का मार्ग बताते हैं।

बादल  दो तरह के होते हैं।एक काले बादल;दूसरा श्वेत बादल।
काले बादल के होने पर वर्षा होगी;
सफेद  बादल तो देखने में सुन्दर लगेंगे;पर वर्षा नहीं होगी।

राजा दुर्व्यवस्था  का शासन करेगा तो काले बादल छा जाने  के बजाय,
श्वेत बादल ही छा जायेंगे;वर्षा नहीं होगी।
इसे वल्लुवर ने अपने कुरल में लिखा है।
राजा कुशासन करेगा तो उसके शासन में पर्व के अनुसार वर्षा नहीं होगी।कुसमय  पर वर्षा  होने से कोई फायदा नहीं होगा। पानी बरसता  है;संसार हरा-भरा होता है;लेकिन असमय की वर्षा  से नष्ट ही होगा।
कुरल:
मुरैकोड़ी  मन्नवन   सेय्यिनुरै  कोडी  योल्लातु  वानम  पेयल .
मनिमेखलै    में  इस विषय पर एक पद मिलता है;--
अन्यायी के शासन में ग्रह -दशा  बदलेगी।
ग्रह -दशा के बदलने से वर्षा नहीं होगी।
वर्षा नहीं होगी तो संसार में जीव नहीं जीते।

तमिल:
कोल निलै  तिरिन्तिडिन   कोळ  निलै  तिरियुम
कोळ निलै   तिरिन्दिडिन   मारि वरंग  कूरुम
मारि  वरंग कूरिन  मन्नुयिरिललै .

एक शासक अपने शासन और प्राकृतिक -हेर-फेर का सम्बन्ध    जान लेगा;  समझ लेगा तो
क्या अत्याचारपूर्ण  -अव्यवस्थित  शासन करेगा?
A LACK OF JUSTICE LIKE THE LACK OF RAINFALL,WILL CRATE CHAOS.

इसीको  जी।यू।पोप  ने सुन्दर ढंग से यों बताया है:--

IF THE KING ACTS CONTRARY TO JUSTICE,RAIN WILL BECOME UNSEASONABLE  AND THE HEARERS WILL WITH HOLD THEIR SHOWERS.

वल्लुवर ने अपने 545  कुरल में कहा है  कि  सुव्यवस्थित राजा के शासन में वर्षा होगी;पैदावार बढेगा।यह
उपर्युक्त  559 के कुरल  की  विपरीत --व्याख्या है।
 क्या और अधिक व्याख्या की ज़रुरत है?
वल्लुवर अपने हर विषय पर अतुलनीय विचार व्यक्त  करते हैं।
उनके अनुसार उस विषय पर और कोई कुछ
बता नहीं सकते।  यही वल्लुवर की बड़ी  विशेषता होती है।यही उनकी कुरल-व्यवस्थता है।

कुरल:

इयल  पुलिक कोलोच्चुम  मन्नावनाटट  पेयलुम   विलैयुलुंत  तोक्कू।   



















Friday, July 13, 2012

2.नागरिकोंकोडरानेवालेकर्मनकरना

इसके अगले  कुरल में एक सुशासक का अवलोकन और तटस्थ  नयायाधीश  के गुण  पर  पूर्णचंद्र -सा रोशन डाला गया  हैं।

एक अपराधी  को गवाही के  पिंजड़े  में देखकर आम लोग  उसके क्रूर कार्यों  को याद करके उसके  बारे में कई क्रोध पूर्ण  प्रश्न  और वाक्य प्रकट होंगे।

क्या इसके लिए पूछ-ताछ की जरूरत है?
 इसको यों ही   तंग -वध  करना चाहिए।
क्यों इसको अब तक फाँसी  पर नहीं चढ़ाया?
इसपर   पत्थर   मारकर  ह्त्या करनी चाहिए।
लेकिन    न्यायाधीश  को एक साधारण  मनुष्य -सा  व्यवहार नहीं  करना  चाहिए।

वल्लुवर  कहते  हैं  कि  दंड दे ने के पहले  जो पूछ-ताछ  करते  हैं,वह अति कठोर होना चाहिए। दंड तो  जरा कम ही देना चाहिए।हमें हाथ  उठाते समय  पूरा बल दिखाना  चाहिए, जिससे शत्रु काँपे ; लेकिन उसी तेज़ी से उसपर मार नहीं पडना चाहिए। हमारे हाथ उठाने  मात्र से ही अपराधी  को अपने को सुधार लेने  का निश्चय कर लेना चाहिए।   कठोरता दिखाकर  धीरे शस्त्र   प्रयोग करो।या  फेंको।कितनी उलट बांसियाँ हैं इस कुरल में।।यही साहित्य कला है।

कुरल:--कटीतू ओच्ची मल्ला एरिक  नेडितु  आक्कम   नीन्गामै  वेंदुपवर .


  IN ORDER TO ENSURE THAT HE CONTINUES TO REIGN A RULER  MUST ROGOROUSLY TO IVESTIGATE A WRONG DOING AND YET  SHOW KINDNESS WHEN METING OUT THE PUNISHMENT.

अपने को एक तमिल विद्यार्थी   के रूप में सूचित करने  में  अभिमान   रखनेवाले  जी।यू।पोप  इस कुरल की व्याख्या  यों देते हैं--

  LET THE KING WHO DESIRES  THAT HIS PROSPERITY MAY  LONG REMAIN COMMENCE HIS PRELIMINARY ENQURIES WITH STRICTNESS AND THEN PUNISH WITH MILDNESS.

एक राजा कठोर शब्द  बोलता  है  और उसमें  सहानुभूति का अवलोकन नहीं है तो उसका अपार संपत्ति जलदी  ही बरबाद  हो जायेगी।

कदुन्चोल्लन   कन्निलन  आयीन  नेदुंच सेलवम   नीडु  इनरी  आंगे केडुम।

कठोर शब्द  और सहानुभूति रहित अवलोकन  के शब्द -बल पर  वल्लुवर के साहित्य  की रूचि अनुभव करने योग्य है।
 if a ruler is unkind  and inconsiderate  his government will not last long.
इसमें"" unkind"" ",inconsiderate " दोनों   शब्दों  के अर्थ-गंभीरता  हमारे शोध  का  विषय है।

जी।यू।पोप  ने इसकी व्याख्या  निम्न प्रकार से की है;-

 the abundant wealth of the king whose words are harsh and whose looks are void  of kindness will
instantly perish instead of abiding long with him.
कठोर  शब्द  और कठोर दंड और दंड की चरमसीमा राजा की  सफलता  के बल को घटाने और काटने का आरा
 हो जाएगा।

कुरल:-  कडू  मोलियुम कै  इकंत डंड्मुम  वेन्दन   अडू मुरन तेय्क्कुम अरम।

वल्लुवर कठोर शब्द  के विलोम शब्द  मधुर शब्द  बोलने के सम्बन्ध में एक अधिकार  ही लिखा है।

मीठी बोली के रहते,कठोर शब्द  बोलना  ऐसा  है ,जैसा  पके फल के  रहते ,कच्चा  फल तोड़ना।

कुरल: इनिय उलवाक  इन्नात  कूरल ,    कनी   इरुप्पक  काय  कवर्न्तट्रू .

डरानेवाले कर्म  में  वल्लुवर ने कठोर शब्द बोलने से होनेवाले दुःख और मधुर वचन बोलने से होने वाले सुख
दोनों को बताते हैं।
A RULER'S HARSH WORDS  AND EXTREME PUNISHMENTS  WILL CAUSE AN UNPRISING  AMONG  HIS PEOPLE AND HENCE WILL ERODE HIS POWER.
यहाँ  "HARSH WORDS",'EXTREME PUNISHMENT"  केवल  राजा के लिए  मात्र नहीं,न्यायाधीश  केलिए भी ठीक लगेगा।

राजा कठोर शब्द और असीम दंड  देगा तो वह नौ  दो  ग्यारह हो जाएगा; भले ही वह प्रबल राजा हो और ना पाया हो।
G.U.POPE;--  SEVERE WORDS AND EXCESSIVE PUNISHMENTS WILL BE A FILE TO WASTE AWAY A KING'S POWER FOR DESTROYING.
ऐसे  एक राजा और न्यायाधीश  दोनों को एक साथ न्याय के लक्षण  बतानेवाले वल्लुवर को न्यायाधिपति
कहकर तारीफ़ करना  एक निम्नतम महत्व की ही निशानी  है।

1.नागरिकोंकोडरानेवालेकर्मनकरना

नागरिकों  को डरानेवाले कर्म  न करना 

जो भगवान पर विशवास  रखते  हैं,
  उनके लिए न्यायाधीश  भगवान  मात्र  नहीं  है,

 भगवान् के ऊपर  दिखाई  पड़ेंगे।

कब तक ऐसा विशवास  होगा?

न्यायाधीश  जब  एक निरपराधी  पर के झूठे  आरोप  पर ,

वह निरपराध  का फैसला  सुनाया जाता है,तब तक।

निरपराधी  के विचार  के विरुद्ध  न्याय  उल्टा  सुनाने पर ,

उनको  वकील,न्यायाधीश आदि सब के सब डरानेवाले ही नज़र  आयेंगे।

 इसलिए वल्लुवर  का तमिल शीर्षक" वेरुवंत सेय्यामै " का  मतलब  है --
"नागरिकों को डराने का  कार्य  न  करना".

बड़े ज्ञानी  अन्नादुरै  ने उल्लेख  किया है ----क़ानून  एक अंधेरा   कमरा है;

उस में वकील  का  वाद   एक दिया  है;

उसका प्रकाश गरीबों  को  नहीं  मिलेगा।
 उनका कथन  सच है तो वह न्याय  विभाग के ड़रानेवाला कार्य  है।

कई  अपराधी  बच  सकते  हैं;लेकिन एक निरपराधी  को  दंड  मिलना नहीं  चाहिए।

 इस  कथन  के विरुद्ध  सैनिक-बल,अर्थ-बल,शारीरिक-बल आदि बलों  के द्वारा
अपराधी  बचते  रहें तो वह न्याय विभाग का  फैंसला   डरानेवाला क्रूरता-पूर्ण  कार्य  है।

इससे  डरानेवाले कार्य को  न   करना  और  न्याय -विभाग के घनिष्ट  सम्बंध  का
  स्पष्ट रूप सेप्रकाशित होता  है।

इस  अधिकार  में न्याय , दंड  से  सम्बंधित  तंग  करना,

 अपमानित कर देना,मारना,डराना,कठोर -वचन,. सजा,आदि शब्द
 वल्लुवर के   द्वारा प्रयोग किये गए हैं।

एस.रत्नकुमार   डरानेवाले कार्य  न करने को अंग्रेजी  में  (TYRANNY) कहते हैं।

 इस  शब्द  के अर्थ  ही डरानेवाले हैं।

इस शब्द  के अर्थ  ही तानाशाह , अत्याचार,अत्याचार -पूर्ण  कार्य,दमनपूर्ण-कार्य  आदि हैं।

एक  शासन  में ये  सब नहीं  होना चाहिए।

न्यायालय  में  ये सोचकर देखना  नहीं  चाहिए।

सैनिक न्यायालय में भी  ये नहीं होना चाहिए।

ऐसी  हालत में   राज-शासन, या लोकतंत्र  शासन

शासन  जो भी हो, उसमें  तानाशाही   या अत्याचारी    न होना चाहिए।

यही वल्लुवर महोदय  ने अपने  कुरल में लिखा है।


उनका पहला कुरल ही   इस  बात पर  जोर  देता है।

कुरल:-"-तक्कांग नाडित  तलैच चेलला वन्नत्ताल   ओत्तान्गु ओरुप्पतु  वेंतु।

जो भी अपराध  हो,उसे सही ढंग  से शोध करके ,

अपराधी  को ऐसा दंड  देना चाहिए,
जिससे वैसा अपराध  दुबारा  न हो।

 वैसे  सरकार  की  सहायता  से चलनेवाले न्यायालय में

न्याय  देनेवाले न्यायाधीश का कर्तव्य भी

यही  हो  सकता  है।

 यही  तिरुवल्लुवर  सत्यवादी  का कथन है।

IT IS A RULER'S  DUTY TO INVESTIGATE,PUNISH,AND DETER THE WRONG DOINGS.

इसे  पोप  ने  यों अनुवाद किया है  क़ि   " ABSENCE OF TERRORISM."

 उन्होंने  "TYRANNY" अनुवाद को  नहीं  बदले।

इस आधार पर  उन्होंने  अपने अनुवाद को ज़रा  विस्तार से  किया है ---

   HE   IS  A KING WHO HAVING EQUITABLY EXAMINED (ANY INJUSTICE WHICH HAS BEEN  BROUGHT TO HIS NOTICE) SUITABLY PUNISHES IT,SO THAT IT MAY NOT BE AGAIN COMMITTED.
पोप  ने विश्लेषण  करके  यह अनुवाद किया है।







अपराधदूरकरना-1

अपराध  दूरकरना (कमजोरियाँ )

जो न्याय देते  हैं,वे बुद्धिमान होते हैं।उनको पहले अपनी प्रदूषणों  से बचना  चाहिए  और उनको साफ कर लेना

चाहिए। जो चतुर होते  हैं ,वे  ही  अपने अपराधों को जान-समझकर  दूर कर सकते हैं।


 पाँच  बड़े अपराध  हैं --झूठ,हत्या,चोरी,आग  लगाना,बलात्कार आदि।
 छे आतंरिक दुश्मनियाँ  हैं--काम,क्रोध,मद,लोभ,आत्म-प्रशंसा ,ऐश-आराम।जो इन गुणों को पहचानकर ,दूर  करते हैं ,वे ही सच्चा न्यायाधीश  बन सकते हैं।

जिनमें  अवलोकन की शक्ति  है,वे ही अपने अपराधों से बच सकते हैं।या  अपने अपराधों  को  दूर  कर सकते  हैं।

अपराध  दूर  करने  का अनुवाद  "कमजोरियाँ " है।हर एक  के  मन में  कई अपराध छिपकर  रह सकते  हैं।
उन अपराधों के  साथ  जो भी काम हो,उसे सुचारू  रूप  से  करके नाम पाना या  चमकना नामुमकिन  है।
न्यायाधीश  का पद भी इसका अपवाद नहीं हो सकता। वल्लुवर  ने अपने कुरल में कहा है  कि

अहंकार,क्रोध,काम  आदि  गुण  न हो तो एक अपने जीवन में न्यायाधीश  जैसे  पदोन्नति  पाना  सरल  है।

कुरल:- चेरुक्कुंच चिनमुम   सिरुमैयुम  इल्लार  पेरुक्कम  पेरुमित नीर्त्तु।


Wealth accumulated without arrogance foul temper  or undignified  behaviour is honourable.

इसे  जी।यू।पोप ने  और सरल  अनुवाद करके स्पष्ट  लिखा  है-----

truly great in the excellence  of those (kings)who are free from  pride,anger and lust.

आगे  हमने जो  कुरल चुना  है,वह  बताता है :- जो  लज्जाशील  होते हैं,वे   बाजरा -बीज  बराबर के  अपराध को भी ताड़-फल -सम बड़ा मानकर,उसे न करके अपने को बचा लेंगे।
Even insignificant  weaknesses  are a major concern to sensitiv people.

इसे पोप ने यों अनुवाद किया है:-

those who fear guilt if they comit a fault small as a millet seed will consider it to be as large as palmyra tree.


कोई  भी हो ,खासकर न्यायाधीश के पद पर जो  होते हैं,उनको कभी अपनी  सावधानी  या ईमान को कभी खोना नहीं  चाहिए। बाजरा बीज बराबर की यह क्रिया,  ताड़ के फल   के बराबर बड़ा दीख पडेगा।उनको कभी तरफदारी बनना  नहीं चाहिए।
अरिस्टाटिल   बताते  हैं--
"हमें किसी से भी सतर्कता  खोनी नहीं चाहिए।धैर्य जो है, वह स्वाभाव  से कठिन नहीं  है।

जो दिल ऊंचा है,श्रेष्ठ  है,वह बुरे लोगों के द्वारा चुभाये जाने पर ही कठोर होगा।अत्यधिक प्यार ,अत्यधिक घृणा  आदि   यूरी  पिटिस  नामक  विद्वान  के  शब्द है।

अरस्तु  के  ये विचार वल्ल्वर के विचारों का रक्षक होते हैं।

आगे  वल्लुवर कहते हैं----
जो अपने अपराधों  को दूर कर ,दूसरों  के  अपराधों  पर ही ध्यान देते  हैं,तब उनके पास कोई अपराध रहेगा? नहीं।

तन कुटरम  नीक्की  पिरर   कुटरम   कान्किर्पिन  एन्कुटर माकुम  इरैक्कू।

A LEADER WHO ADDRESSES  HIS WEAKNESSES BEFORE FINDING FAULT IN OTHERS WILL BE RESPECTED.

पोप निम्न ढंग से व्याख्या करते हैं--
WHAT  FAULT WILL REMAIN IN THE KING WHO HAS PUT AWAY HIS OWN EVILS OF OTHERS.

 जो ऊँचे  पद पर हैं,या ऊँची  स्थिति  पर हैं,उनको कभी अपने पर ही आश्चर्य प्रकट नहीं करना चाहिए।उनको अपनी जिम्मेदारी  भूलनी नहीं  चाहिए।  भलाई के  विरुद्ध का  काम नहीं करना चाहिए और करने का विचार
मन में नहीं होना चाहिए।
वल्लुवर के इस कथन का अनुवाद  है:-GET RID OF CONCEIT AND MALICE FOR THEY ARE WEAKNESSES.
पोप    अपने  अनुवाद में और सरल  बनाते हैं।
LET NO (ONE)PRAISE HIMSELF,AT ANY TIME;LET HIM NOT DESIRE TO DO USELESS THINGS.
ये गुण  होने पर न्यायाधीश  होने के लिए कोई  बाधा  नहीं होगी।

छोटे यंत्रों  को बनाने का एक मात्रु यंत्र  होता है। वैसे ही न्यायाधिपति  वल्लुवर  का मार्ग-दर्शन न्यायाधीशों को
बनाने  का  एक मात्र  यंत्र  है।।