मैं और कविता
भले ही मैं सूर्य न बन सकूँ,
फिर भी
सड़क के किनारे के गली- दीप तो
बन सकता हूँ न ?
भले ही मैं बादल नहीं बन सकता ,
फिर भी प्यास से तडपनेवाली
गवैया चिड़िया के जीभ को
भिगाने की बूँद के रूप में
बदल सकता हूँ न ?
भले ही करोड़ों फूलों का नन्दवन
तो नहीं बन सकता ,
फिर भी सड़क के किनारे
पैदल चलनेवाले के लिए
दिल बहलानेवाले एक फूल बन
सुगंध फैला सकता हूँ न ?
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दोपहर का शपथ
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मेरा नंगापन
मुझे ही शर्माता है.
आप तो इसे क्यों
एहसास नहीं करते.
क्या आपकी
आँखों की रोशनी मंद पद गयी ?
क्या इज्जत का भाव
जम गया है ? या
चल बसा है.
पशु भी अपने पैरों के बीच
अपने मर्म अंगों के नंगेपनको
छिपाकर सुरक्षित रखता है.
पक्षी भी पंखों से अपने अंगों को
छिपाकर रखता है.
मन को निकालकर रखे
मनुष्य आप को
मान -मर्यादा की मृत्यु होने से
कपडे उतारते देख
दुखी न हो सकता.
मुझमें नए
पंखें उगेंगे .
जलनेवाली अग्नि को भी ,
जलाएँगे मेरी अग्नि पंखें.
मेरे लिए निर्धारित सीमा को भी
छू न सकने वाले रंग लेपित
पैरो से गुप्त प्रदेश के दर्शन काफी है.
आगे ,खुले आसमान में
आजादी की खोज में उड़ेंगी
मेरी नयी पंख.
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kab aap mujhe bolne denge
कब मुझे आप बोलने देंगे?
कई युगों से आपने किया है बलात्कार.
मुझे कितना अपमान सहना पड़ा?
मेरी इज्जत लूटने नंगा किया गया.
मुझे नहीं पता ,संख्याएँ कितनी?
जितनी बातें प्रकट हुई, उनसे अधिक बातें अप्रकटित.
जितनी पीडाएं कह चुकी हूँ,
उतनी से अधिक जो मैं प्रकट नहीं कर सकती.
आप ने मुझे कब बोलने दिया?
लम्बे समय से प्रतीक्षा में थी.
मेरे चोटों के दर्द,
मेरी अपने अनुभव,
मेरी अपनी भाषा में
मेरे अपने शब्दों में कब आपने कहने दिया?
दुपहर की गली में
चित्रपट में ,छोटे पट याने टी ,वि, में
पत्र-पत्रिकाओं में
कितनी बार आपने मन भंग किया था ?
हस्तिनापुर का द्रौपती मैं ,
जहाँ जहाँ मैं जाती हूँ,वहाँ वहाँ उतने ही अवतार.
आपकी duniya में
आपकी आँखों ने
आपको जानकारी नहीं दी?
हमारे संसार को
हमारी आँखों से ध्यान से देखिये.
गौरव खोकर
कौरवों ने मेरी साड़ी खींचकर
अपमानित किया था?
तब श्री कृष्ण ने
मेरी साड़ी लम्बी की थी.
यह कहानी तो सब के सब जानते हैं.
मेरे अंग के कण -कण में,
मेरे पुष्ट शरीर के अंगों के
अपमान का व्यास कैसे विस्तार से लिखेगा?
स्त्रीत्व का जोश वीर्य बना ,
उसकी वीरता शिथिल हुई
व्यास कैसे लिखेगा?
आप ने कोमल फूल ,
आकाश के चाँद ,
भूमि की नदी
शहर शहर में एक देवी .
यों ही कितने नाम दिए थे?
जड़ वस्तुओं के नाम देकर ,
भूल गए कि मैं एक मनुषी हूँ.
सुन्दरता के तेज़ कहकर
ताज पहनाकर
हमारी बुद्धि को मंद बना दिया.
सुन्दरता के शिखर के रूप में
पालकर .मेरे चिंतन को
तेजहीन बना दिया.
मुझे तो पुनीत बाताया ,लेकिन
मनुष्यता को भूल गए.
सब कुछ यहाँ नारी होने से
खुद अपने को पहचान न सका.
आपने मुझे कब बोलने दिया?
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स्वागत २००२
सहस्रों नये नये ख़्वाब मिटाए ,
पिछले साल की यादें हटाकर
निर्मल आकाश के किरणें बनकर आना.
अन्धकार में फँसकर तड़पे
हृदय में ताजे लौ बनकर आना.
वैज्ञानिकता के अति विकास में ,
धुएँ और धूल से लेपित
भू ग्रह में ,प्राण द्रव लगाकर
स्वच्छ कर देना.
प्रपंच ग्रहों में मानव को
पीड़ित रोगों को
चंगाकर
नए युग सृजन करने आना.