Friday, January 29, 2016

तटस्थता -- तिरुक्कुरल -१११ से १२०

तटस्थता 
तिरुक्कुरल --११० से १२० 
  1. नाते -रिश्ते ,  दोस्त -दुश्मन ,अपने पराये आदि में किसी के पक्ष में न रहकर निष्पक्ष रहना ही तटस्थता  है .
  2. तटस्थता की संपत्ति नहीं घटेगी;वह  पीढ़ी तर पीढ़ी  काम आती रहे गी .
  3. पक्ष्वादी बनने से लाभ मिलने पर भी निष्पक्ष रहने में ही  भलाई है. तटस्थ रहना ही उत्तम गुण है.
  4. किसी की मृत्यु के बाद के यश -अपयश से ही पता चलेगा कि वह पक्षवादी  था  या निष्पक्ष वादी.अर्थात तटस्थ रहा कि नहीं .
  5. मनुष्य जीवन में उन्नति अवन्नती तो प्राकृतिक है.उन दोनों स्थितियों में तटस्थता निभाने में ही सज्जनता  और बड़प्पन है.
  6. तटस्थता छोड़कर  पक्षवादी बनने के विचार के आते ही समझना चाहिए कि संकटकाल आनेवाला है. 
  7.  भले ही तटस्थता  के कारण व्यक्ति गरीबी के गड्ढे में  गिरे,फिर भी लोग उसकी प्रशंसा ही करेंगे.
  8.   तराजू के काँटे की तरह  तटस्थ रहने में ही तटस्थता शोभायमान होती है.
  9. ईमानदारी और मानसिक दृढ़ता जिसमें  हैं ,उनकी वाणी से नीति -न्याय के शब्द निकालेंगे . वही तटस्थता है.
  10. व्यापारी को व्यापार की चीजों को अपनी चीज समझकर व्यापार करने में ही तटस्थता है. वही वाणिज्य नीति  है. 

Thursday, January 28, 2016

कृतज्ञता --तिरुक्कुरल १०० से 110

तिरुक्कुरल 
कृतज्ञता --१०० से ११० 
  1. हम ने किसीकी मदद नहीं की;ऐसी हालत में हमारी सहायता करनेवाले की मदद के  ऋण चुकाने के लिए  आकाश और भूमि  को देना भी पर्याप्त  नहीं है .
  2. आवश्यकता के समय की गयी मदद  भले ही छोटी सी हो ,पर संसार से बड़ी है.
  3. प्रतिउपकार  ,प्रति फल की प्रतीक्षा के बिना प्रेम के कारण  की गयी मदद  सागर से बड़ी है .
  4. तिल बराबर की मदद  के फल को सोचनेवाले  उसे   ताड़  के पेड़  सम  मानकर प्रशंसा करेंगे.
  5. मदद की विशेषता परिमाण पर निर्भर नहीं है,उसे प्राप्त करनेवाले के गुण से महत्त्व पाता है.
  6. निर्दोषियों के रिश्ते को  कभी छोड़ना या भूलना  नहीं चाहिए .वैसे ही दुःख के समय के मददगारों की दोस्ती को कभी भूलना नहीं चाहिए .
  7. अपने संकट के समय  जिन्होंने मदद की उनकी प्रशंसा सज्जन लोग जन्म जन्म पर करते रहेंगे.
  8. कृतज्ञता भूलने में भला नहीं है,कृतघ्नता भूलने में भला है.
  9. जिसने हमारी मदद की है ,उसीने हमें भले ही मृत्यु जैसे   कष्ट दे , वह  उसकी की गयी  मदद   की सोच में मिट  जाएगा.
  10. जितने भी अधर्म करो ,उनसे मुक्ति मिल जायेगी ,पर कृतघ्नता  करें तो  मुक्ति कभी नहीं होगी.

तिरुक्कुरल --मीठीबोली बोलना --९१ से १००

       तिरुक्कुरल --मीठी बोली बोलना ---९१ से १०० 
  1.  जिसके  मुख से प्रेम मिश्रित सत्य भरे धोखा रहित शब्द निकलते है, वे ही मीठी बोली है। 
  2. प्रफुल्ल मन से  मीठी बोली बोलना , प्रफुल्ल मन से दान देने से श्रेष्ठ है। 
  3. प्रफुल्ल  मन से  मुख देखकर मीठी बोली बोलना ही धर्म  है। 
  4. मीठी बोली बोलकर मित्रता निभानेवाले को कभी दोस्ती का अभाव न होगा।
  5. विनम्रता ,अनुशान और मधुर वचन ही एक व्यक्ति का आभूषण  हैं ;बाकी बाह्य आभूषण आभूषण  नहीं।
  6. बुराई हटाकर धर्म स्थापित करना है तो मधुर वचन से मार्गदर्शक बनने में  ही संभव है। 
  7. दूसरों के कल्याण और लाभप्रद शब्द  और सद्गुणों से युक्त मधुर वचन बोलनेवाले को भी सुख और कल्याण होगा।
  8. हानी हीन मधुर शब्द बोलनेवाले ज़िंदा रहते समय और मृत्यु के बाद भी यश प्राप्त करेंगे।
  9. मधुर शब्द ही सुखप्रद है ,यह जानकार भी कटु शब्द बोलना ठीक नहीं हैं। क्यों कठोर शब्द बोलना हैं ?
  10. मधुर शब्द के रहते कठोर शब्द बोलना फल रहते कच्चे फल तोड़कर खाने के सामान है।  

अतिथि सत्कार -तिरुक्कुरल --८१---९०

अतिथि सत्कार 
तिरुक्कुरल ८१ से ८० तक 

  1. गृहस्थ  जीवन   जीने का उद्देश्य ही अतिथि सेवा  करना  है ; उसी में ही गृहस्थ की प्रसिद्धि है.
  2. अतिथियों के रहते उनको खिलाना -पिलाना छोड़कर  खुद खाना ,भले ही अमृत हो खाना सही नहीं है.
  3. अपने यहाँ हर रोज़ आनेवाले अतिथियों की सेवा करके   जो खुश होता है ,वह  कभी दुखी नहीं होगा.
  4. प्रफुल्ल चित्त से अतिथि सत्कार करनेवालों के घर में लक्ष्मी निवास करेगी . 
  5. अतिथि सत्कार करके उनको खिला-पिलाकर शेष जो बचा है  उसे खानेवाले के खेत में बीज  बोना है क्या ?  अपने आप खेती होगी.
  6. आये अतिथि को खूब आदर सत्कार करके सादर भेजकर ,आनेवाले अतिथि की प्रतीक्षा में जो रहते हैं उनको  देवलोक के  देव  अपने अतिथि  बनाने  की प्रतीक्षा  में रहेंगे।
  7. अतिथि की योग्यता के अनुसार  अतिथि सत्कार के यज्ञ  का फल मिलेगा। 
  8. बचाए धन को खो देने के बाद लोग पछतायेंगे  कि हम  ने अतिथिसत्कार  क्यों  नहीं किया है। 
  9. अमीरों की दरिद्रता अतिथि सत्कार न करने से  ही है। वह अज्ञानता के कारण ही है। 
  10. अनिच्छा नामक एक फूल हैं। उसको सूँघते ही सूख जायेगी; वैसे ही अतिथि सत्कार में चेहरे में उदासी देखें तो अतिथि दुखी होंगे। 

प्रेम -संपत्ति --तिरुक्कुरल ७१--८०

तिरुक्कुरल 
प्रेम -संपत्ति --७१ से ८० तक.
  1. प्यार या प्रेम को बंद कर रखने  की कोई ताला  या कुंडी नहीं है; अपने प्रियजनों के दुःख देख आंसू अपने आप  प्यार प्रकट होगा ।
  2. जिनमें प्रेम नहीं है ,वे ही सब कुछ  मेरे कहेंगे। जिनमें प्रेम है वे अपनी हड्डी को भी पराये कहेंगे.अर्थात सर्वस्व तजने तैयार रहेंगे.
  3. प्राण पाना दुर्लभ हैं ; उसका बड़प्पन शरीर में रहने में है. शरीर से छूटने पर प्राण का महत्त्व नहीं ;वैसे ही प्यार की दशा हैं। 
  4. प्यार ही संसार  से आसक्त रहने का साधन है, प्यार भरा मन ही मित्रता निभा सकता है ;बड़ा सकता है.
  5. प्यार भरे दिलवाले ही संसार में  सानंद जी सकते हैं.
  6. प्यार वीरता का भी साथी हैं ,जो इस बात को नहीं समझते ,वे ही कहेंगे प्रेम केवल शर्म से सम्बंधित है.
  7. जिस में प्रेम नहीं हैं उसको धर्म ऐसे मारेगा जैसे हड्डी हीन जीवों को धुप जला देता है;
  8. प्रेम हीन जीवन मरुभूमि के सूखे वृक्ष के सामान है.
  9. आतंरिक दिल में प्रेम न होकर बाहरी अंगों की सुन्दरता व्यर्थ है। 
  10. प्रेम युक्त शरीर ही प्राण युक्त शरीर है;प्रेमविहीन शरीर  केवल चमड़े से ढके हड्डियों का ढांचा है.

संतान प्राप्ति --तिरुक्कुरल ६१ से ७० तक,

संतान प्राप्ति 
तिरुक्कुरल --६१ से ७० तक 

  1. गृहस्थ जीवन में चतुर होनहार  होशियार पुत्रों का पैदा होना ही सैव्श्रेष्ठ आनंद है। 
  2. जन्मे बच्चे सदाचार सद्गुणी हो जाते तो सातों परम्पराओं को कल्याण होगा  और कोई बुराई नहीं होगी। 
  3. मनुष्य जीवन में  संतान ही संपत्ति है;पर उन संतानों की संपत्ति उनके कर्म पर आधारित.
  4. कहते हैं अमृत ही श्रेष्ठतम है;पर अपनी संतान के नन्ही नन्ही उँगलियों से स्पर्शित  मिश्रित रोटी या भात उस अमृत से श्रेष्ठ है। 
  5. अपनी संतानों से गले लगाकर खुश होना मन और तन को आनंदप्रद है और उनकी तुतली बोली सुनना श्रवण सुख है.
  6. जिन लोगों ने अपनी संतान की तुतली बोली नहीं सुनी वे ही कहेंगे मुरली मधुर और वीणा मधुर।
  7. एक अभिभावक को अपनी संतान के लिए वही बड़ी सहायता है,जिनसे संतान भरी  विद्वत सभा में निर्भयता से अपने विचार प्रकट कर सके। 
  8. माता-पिता से बढ़कर कोई संतान ज्ञानी हो तो केवल माता -पिता  ही नहीं बल्कि सारा संसार खुश होगा।
  9. अपने बेटे को ज्ञानी होने की प्रशंसा सुनकर माता  उसके जन्म की खुशी  से बढ़कर अधिक खुशी का अनुभव करेगी। 
  10. एक संतान को अपने कर्म और ज्ञान द्वारा अग जग में नाम पाने से लोगों को कहना चाहिए  कि ऐसे पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए उसके माता पिता ने बड़ी तपस्या की है. यही उस पुत्र को अपने माता पिता के प्रति उपहार है।


Wednesday, January 27, 2016

तिरुक्कुरल ---अर्द्धन्गिनी --५१--६०

तिरुक्कुरल ---अर्द्धन्गिनी --५१--६० 


  1. आदर्श अर्द्धांगिनी वह है जो  सद्गुणों  से भरी  है  और पति की आमदनी के अनुसार गृह संभालती हैं.
  2. सद्गुणों से युक्त पत्नी न मिली तो उस गृहस्थ का कोई विशेष महत्त्व नहीं रहता. 
  3. सद्गुणों से युक्त  अर्द्धांगिनी  मिलने पर वह सौभाग्यवान  और सब कुछ प्राप्त गृहस्थ होगा.सद्गुण  न  होने पर सब कुछ होकर भी सब कुछ  खोया हुआ गृहस्थ है.
  4. स्त्रीयों में दृढ़ पतिव्रता  हो तो उससे बढ़कर पत्नी की  और कोई विशेष  बात  की आवश्यकता नहीं  है .
  5. .पत्नी जो सिवा पति के अन्य देवताओं  की प्रार्थना में नहीं लगती ,उसकी आज्ञा से वर्षा होगी .
  6. वही औरत है जो खुद पतिव्रता धर्म निभाती हैं और पति को भी निभाने में समर्थ होती है .
  7. सद्गुणों से अपने को रक्षा करके जीनेवाली  औरत को सताना अज्ञानता होगी. 
  8. पति का यशोगान करते हुए गृहस्थ निभानेवाली औरत स्वर्ग प्राप्त करेगी .
  9. सद्गुणी और सदाचारी पुरुष मिलनेपर औरत को गृहस्थ जीवन आनंद से भरा रहे गा, 
  10. पत्नी  अपने पति से प्यार करके तारीफ न करेगी तो  पति सर ऊंचा करके बैल सा नहीं चल सकता.
  11. पत्नी के सद्गुण ही  आदर्श  गृहस्थ  जीवन  है;गृहस्थ जीवन के आभूषण सदाचार पुत्र को जन्म लेने में हैं .