Thursday, January 28, 2016

अतिथि सत्कार -तिरुक्कुरल --८१---९०

अतिथि सत्कार 
तिरुक्कुरल ८१ से ८० तक 

  1. गृहस्थ  जीवन   जीने का उद्देश्य ही अतिथि सेवा  करना  है ; उसी में ही गृहस्थ की प्रसिद्धि है.
  2. अतिथियों के रहते उनको खिलाना -पिलाना छोड़कर  खुद खाना ,भले ही अमृत हो खाना सही नहीं है.
  3. अपने यहाँ हर रोज़ आनेवाले अतिथियों की सेवा करके   जो खुश होता है ,वह  कभी दुखी नहीं होगा.
  4. प्रफुल्ल चित्त से अतिथि सत्कार करनेवालों के घर में लक्ष्मी निवास करेगी . 
  5. अतिथि सत्कार करके उनको खिला-पिलाकर शेष जो बचा है  उसे खानेवाले के खेत में बीज  बोना है क्या ?  अपने आप खेती होगी.
  6. आये अतिथि को खूब आदर सत्कार करके सादर भेजकर ,आनेवाले अतिथि की प्रतीक्षा में जो रहते हैं उनको  देवलोक के  देव  अपने अतिथि  बनाने  की प्रतीक्षा  में रहेंगे।
  7. अतिथि की योग्यता के अनुसार  अतिथि सत्कार के यज्ञ  का फल मिलेगा। 
  8. बचाए धन को खो देने के बाद लोग पछतायेंगे  कि हम  ने अतिथिसत्कार  क्यों  नहीं किया है। 
  9. अमीरों की दरिद्रता अतिथि सत्कार न करने से  ही है। वह अज्ञानता के कारण ही है। 
  10. अनिच्छा नामक एक फूल हैं। उसको सूँघते ही सूख जायेगी; वैसे ही अतिथि सत्कार में चेहरे में उदासी देखें तो अतिथि दुखी होंगे। 

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