अतिथि सत्कार
तिरुक्कुरल ८१ से ८० तक
- गृहस्थ जीवन जीने का उद्देश्य ही अतिथि सेवा करना है ; उसी में ही गृहस्थ की प्रसिद्धि है.
- अतिथियों के रहते उनको खिलाना -पिलाना छोड़कर खुद खाना ,भले ही अमृत हो खाना सही नहीं है.
- अपने यहाँ हर रोज़ आनेवाले अतिथियों की सेवा करके जो खुश होता है ,वह कभी दुखी नहीं होगा.
- प्रफुल्ल चित्त से अतिथि सत्कार करनेवालों के घर में लक्ष्मी निवास करेगी .
- अतिथि सत्कार करके उनको खिला-पिलाकर शेष जो बचा है उसे खानेवाले के खेत में बीज बोना है क्या ? अपने आप खेती होगी.
- आये अतिथि को खूब आदर सत्कार करके सादर भेजकर ,आनेवाले अतिथि की प्रतीक्षा में जो रहते हैं उनको देवलोक के देव अपने अतिथि बनाने की प्रतीक्षा में रहेंगे।
- अतिथि की योग्यता के अनुसार अतिथि सत्कार के यज्ञ का फल मिलेगा।
- बचाए धन को खो देने के बाद लोग पछतायेंगे कि हम ने अतिथिसत्कार क्यों नहीं किया है।
- अमीरों की दरिद्रता अतिथि सत्कार न करने से ही है। वह अज्ञानता के कारण ही है।
- अनिच्छा नामक एक फूल हैं। उसको सूँघते ही सूख जायेगी; वैसे ही अतिथि सत्कार में चेहरे में उदासी देखें तो अतिथि दुखी होंगे।
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