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Friday, January 22, 2016

तिरुक्कुरल धर्म पर जोर --३१ से ४० तक.



तिरुक्कुरल --३०  से ४० 

धर्म की विशिष्टता 

  1. धर्म   से  बढ़कर  बड़ी संपत्ति और विशेषता प्रदान करनेवाला और कोई नहीं  है,
  2. धर्म भालइयों  की खेती है; जीवन की समृद्धि का आधार है. धर्म  को भूलने से बढ़कर और कोई बुराई नहीं  हैं. 
  3. जो भी कर्म करना हैं ,उन सब को धर्म मार्ग पर ही करना है. 
  4. मानसिक पवित्रता ही धर्म है; बिन मन की पवित्रता के जो भी करते हैं वे सब मिथ्याचरण है और बाह्याडम्बर है.
  5. धर्म मार्ग में ईर्ष्या ,लोभ,क्रोध और अश्लीली और चोट पहुंचनेवाले शब्द बाधाएं हैं.
  6. धर्म कर्म को स्थगित न करके तुरंत करना चाहिए; ऐसे धर्म कर्म मृत्यु के बाद भी यशोगान के योग्य बने अमर यश बन जाएगा.
  7. पालकी के अन्दर बैठने वाले और उस पालकी को ढोनेवालों से धर्म के महत्व कहने की आवश्यकता नहीं हैं .  खुद समझ लेंगे.
  8. धर्म को लगातार सुचारू रूप से करनेवालों को पुनर्जन्म  नहीं है;वह स्वर्ग में ही ठहरेगा.
  9. धर्म कर्म से जो कुछ मिलेगा वही सुखी हैं ;अधर्म से मिलनेवाले सब दुखी है.
  10. अति प्रयत्न से करने एक काम जग में है तो वह धर्म कर्म है. अपयश या निंदा का काम न करना है.






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