तिरुक्कुरल --३० से ४०
धर्म की विशिष्टता
- धर्म से बढ़कर बड़ी संपत्ति और विशेषता प्रदान करनेवाला और कोई नहीं है,
- धर्म भालइयों की खेती है; जीवन की समृद्धि का आधार है. धर्म को भूलने से बढ़कर और कोई बुराई नहीं हैं.
- जो भी कर्म करना हैं ,उन सब को धर्म मार्ग पर ही करना है.
- मानसिक पवित्रता ही धर्म है; बिन मन की पवित्रता के जो भी करते हैं वे सब मिथ्याचरण है और बाह्याडम्बर है.
- धर्म मार्ग में ईर्ष्या ,लोभ,क्रोध और अश्लीली और चोट पहुंचनेवाले शब्द बाधाएं हैं.
- धर्म कर्म को स्थगित न करके तुरंत करना चाहिए; ऐसे धर्म कर्म मृत्यु के बाद भी यशोगान के योग्य बने अमर यश बन जाएगा.
- पालकी के अन्दर बैठने वाले और उस पालकी को ढोनेवालों से धर्म के महत्व कहने की आवश्यकता नहीं हैं . खुद समझ लेंगे.
- धर्म को लगातार सुचारू रूप से करनेवालों को पुनर्जन्म नहीं है;वह स्वर्ग में ही ठहरेगा.
- धर्म कर्म से जो कुछ मिलेगा वही सुखी हैं ;अधर्म से मिलनेवाले सब दुखी है.
- अति प्रयत्न से करने एक काम जग में है तो वह धर्म कर्म है. अपयश या निंदा का काम न करना है.
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