Saturday, January 30, 2016

ईर्ष्या --तिरुक्कुरल १६१ से १७०

ईर्ष्या --तिरुक्कुरल  १६१ से १७० 
  1. ईर्ष्या  न करने को अनुशासन मानकर  जीना चाहिए.
  2. ईर्ष्या रहित जीने के गुण जिसमें है वही भाग्यवान है. 
  3. धर्म  मार्ग और दौलत  न चाहनेवाले ही दूसरों के दौलत देखकर  जलेंगे .
  4. जो जानते हैं कि बुरे मार्ग पर चलने से हानी होगी ,वे ईर्ष्यावश बुरे कार्य नहीं  करेंगे. 
  5. ईर्ष्यालु की दुश्मनी उनकी ईर्ष्या ही है ;वही ईर्ष्या उसका वध करेगी.
  6. दूसरों  की मदद के लिए दी जानेवाली वस्तुओं को देखकर जलनेवाले खुद कष्ट भोगेंगे और उसके नाते -रिश्ते भी. अंत में ईर्ष्यालु को भोजन तक न मिलेगा.
  7. ईर्ष्यालु से लक्ष्मीदेवी हट जायेगी ; और अपनी बड़ी बहन ज्येष्ठा देवी की कृपा का संकेत कर देगी.
  8. ईर्ष्या  एक पापी है ; वह ईर्ष्यालु की संपत्ति नष्ट कर देगी   और उसे बुरे मार्ग पर ले जायेगी.
  9. ईर्ष्यालु के घर के कष्ट  और अच्छों के सुख -समृद्धि दोनों ही शोध की चीज है.
  10. ईर्ष्यालु कभी यशश्वी  नहीं बन सकता;ईर्ष्या  रहित जीनेवाला कभी अपयश का पात्र नहीं बना.

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