ईर्ष्या --तिरुक्कुरल १६१ से १७०
- ईर्ष्या न करने को अनुशासन मानकर जीना चाहिए.
- ईर्ष्या रहित जीने के गुण जिसमें है वही भाग्यवान है.
- धर्म मार्ग और दौलत न चाहनेवाले ही दूसरों के दौलत देखकर जलेंगे .
- जो जानते हैं कि बुरे मार्ग पर चलने से हानी होगी ,वे ईर्ष्यावश बुरे कार्य नहीं करेंगे.
- ईर्ष्यालु की दुश्मनी उनकी ईर्ष्या ही है ;वही ईर्ष्या उसका वध करेगी.
- दूसरों की मदद के लिए दी जानेवाली वस्तुओं को देखकर जलनेवाले खुद कष्ट भोगेंगे और उसके नाते -रिश्ते भी. अंत में ईर्ष्यालु को भोजन तक न मिलेगा.
- ईर्ष्यालु से लक्ष्मीदेवी हट जायेगी ; और अपनी बड़ी बहन ज्येष्ठा देवी की कृपा का संकेत कर देगी.
- ईर्ष्या एक पापी है ; वह ईर्ष्यालु की संपत्ति नष्ट कर देगी और उसे बुरे मार्ग पर ले जायेगी.
- ईर्ष्यालु के घर के कष्ट और अच्छों के सुख -समृद्धि दोनों ही शोध की चीज है.
- ईर्ष्यालु कभी यशश्वी नहीं बन सकता;ईर्ष्या रहित जीनेवाला कभी अपयश का पात्र नहीं बना.
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