Tuesday, January 26, 2016

गृहस्थ जीवन तिरुक्कुरल ४१ से ५० तक.

गृहस्थ   ---तिरुक्कुरल ४१ से ५० तक. 

  1.   गृहस्थ  वही  है ,जो अपने परिवार के सभी नाते -रिश्ते का  पालन -पोषण सही ढंग से करता है. परिवार का सहायक है.
  2. गृहस्थ जो सपरिवार रहता है ,उसको साधू- संत ,दीन -दुखियों और अपने यहाँ मरनेवालों की अंतिम क्रियाएं करनी  चाहिए. वही गृहस्थ धर्म है.
  3. गृहस्थ जीवन की श्रेष्ठता उसी में हैं ,जिनकी कमाई ईमानदारी हो; अपयश से संपत्ति न जोड़े. निंदा कर्म की संपत्ति से डरें. गृहस्थ  का सार्थक जीवन  अनुशान में है.अनुशासित कमाई के वितरण में गृहस्थ की सफलता है.
  4. गृहस्थ जीवन  की सार्थकता प्रेम पूर्ण व्यवहार में है और अनुशासन पूर्ण कर्म में है.
  5. धर्म और अनुशान के गृहस्थ में जो फल मिलते हैं ,उससे बढ़कर सुफल अन्य कर्म में नहीं मिलेगा.
  6. वही गृहस्थ श्रेष्ठ  हैं ,जिसमें  ईश्वर से मिलने ,सहज रूप में धर्म पालन करने का प्रयत्न हो.और सपरिवार जीता हो.
  7. तपस्वी के जीवन से अति श्रेष्ठ जीवन  गृहस्थ जीवन है  जो धर्म पथ पर चलता हैं और अन्यों को भी धर्म पथ से हटने नहीं देता.
  8. धर्म  का पर्यायी ही गृहस्थ जीवन हैं ,उसमें अपयश या निंदा का स्थान  न रहें तो अति श्रेष्ठ और उत्तम है.
  9. गृहस्थ जीवन के नियमों को जानसमझकर  खुद पालन करके ,दूसरों से कराने करवाने वाले गृहस्थ जीवन श्रेष्ठ है.
  10. इस संसार में रहते हुए धार्मिक अनुशासित जीवन पर चलनेवाले गृहस्थ का जीवन ईश्वर-तुल्य जीवन  है.

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