Friday, January 29, 2016

आत्मनियंत्रण --तिरुक्कुरल १२१ से १३० तक

आत्मनियंत्रण --तिरुक्कुरल १२१ से १३० तक 

  1. आत्मनियंत्रण  ईश्वर से मिलाएगा। नियंत्रण न हो तो जीवन अन्धकारमय  हो जाएगा।
  2. अधिक दृढ़ता से आत्मा नियंत्रण  संपत्ति  की सुरक्षा से बढ़कर कोई संपत्ति नहीं है.
  3. जानने  की बातें सीखकर आत्म नियंत्रण से जीनेवाले  प्रशंसा के पात्र बनेंगे।
  4. अपनी स्थिति से न हटकर मानसिक नियंत्रण और अनुशासन से जीनेवालों की प्रसिद्धि और प्रगति पहाड़ से ऊँची होगी।
  5. विनम्रता सब के लिए आवश्यक है;अमीरों को नम्रता और एक ख़ास संपत्ति है। 
  6. एक जन्म में कछुए के समान पंचेंद्रियों को नियंत्रित रखें तो उसका फल कई जन्मों  तक   उसका कवच बन जाएगा ।
  7. पंचेंद्रियों  में जिह्वा नियंत्रण अति आवश्यक हैं। बोली में नियंत्रण न हो तो वही उसके दुःख का कारण बन जाएगा। 
  8. अपने विचारों की अभिव्यक्ति  में एक शब्द गलत होने पर  अपने  भाषण की सभी अच्छाइयाँ बुरी हो जायेंगी।  अपने सभी धर्म कार्य भी अधर्म हो जायेंगे,
  9. आग से लगी चोट भर जायेगी; दाग मात्र रहेगा। पर जीभ के शब्द से मन में लगी चोट कभी न भरेगी; हमेशा हरी रहेगी.
  10. ज्ञानार्जन करके क्रोध को  नियंत्रण में  रखे व्यक्ति की प्रतीक्षा में  धर्म देवता रहेगी। 

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