Thursday, January 28, 2016

संतान प्राप्ति --तिरुक्कुरल ६१ से ७० तक,

संतान प्राप्ति 
तिरुक्कुरल --६१ से ७० तक 

  1. गृहस्थ जीवन में चतुर होनहार  होशियार पुत्रों का पैदा होना ही सैव्श्रेष्ठ आनंद है। 
  2. जन्मे बच्चे सदाचार सद्गुणी हो जाते तो सातों परम्पराओं को कल्याण होगा  और कोई बुराई नहीं होगी। 
  3. मनुष्य जीवन में  संतान ही संपत्ति है;पर उन संतानों की संपत्ति उनके कर्म पर आधारित.
  4. कहते हैं अमृत ही श्रेष्ठतम है;पर अपनी संतान के नन्ही नन्ही उँगलियों से स्पर्शित  मिश्रित रोटी या भात उस अमृत से श्रेष्ठ है। 
  5. अपनी संतानों से गले लगाकर खुश होना मन और तन को आनंदप्रद है और उनकी तुतली बोली सुनना श्रवण सुख है.
  6. जिन लोगों ने अपनी संतान की तुतली बोली नहीं सुनी वे ही कहेंगे मुरली मधुर और वीणा मधुर।
  7. एक अभिभावक को अपनी संतान के लिए वही बड़ी सहायता है,जिनसे संतान भरी  विद्वत सभा में निर्भयता से अपने विचार प्रकट कर सके। 
  8. माता-पिता से बढ़कर कोई संतान ज्ञानी हो तो केवल माता -पिता  ही नहीं बल्कि सारा संसार खुश होगा।
  9. अपने बेटे को ज्ञानी होने की प्रशंसा सुनकर माता  उसके जन्म की खुशी  से बढ़कर अधिक खुशी का अनुभव करेगी। 
  10. एक संतान को अपने कर्म और ज्ञान द्वारा अग जग में नाम पाने से लोगों को कहना चाहिए  कि ऐसे पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए उसके माता पिता ने बड़ी तपस्या की है. यही उस पुत्र को अपने माता पिता के प्रति उपहार है।


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