Saturday, January 30, 2016

सहनशीलता --तिरुवल्लुवर ---१५१ से १६०

सहनशीलता --तिरुवल्लुवर ---१५१  से
  1.   .खोदते हैं गड्ढे   सहती है भूमि. 

उसको भी जीने का आधार है भूमि.
वैसे ही अहित -  हानी पहुँचानेवाले  के प्रति भी  सहनशीलता दिखाने में ही मानव का बड़प्पन है.
२. किसी की असीम हानियों को सहने के बजाय उन्हें भूल जाना ही गुणी  का  लक्षण है.
३.अतिथि सेवा करने की दरिद्रता अति दुःख की बात है.वैसे ही अज्ञानियों की भूलें सह्लेना अति सबलता  है.
४. अत्यधिक सहनशीलता ही ज्ञानियों  के लिए  प्रसिद्धिप्रद  है.अतः किसी भी हालत में असहनीय बनना ज्ञानियों को भी अज्ञानी बना  देगा .सहनशीलता ही ज्ञान का लक्षण  है.
५.सहनशील लोगों की इज्जत शाश्वत है.असहनशील होकर दंड देनेवालों का आदर घट जाएगा .संसार असब्र लोगों की इज्जत नहीं करेगा.
६.हानी पहुंचाने वालों को जो दंड देता है ,उसी को एक दिन ही सुख मिलेगा . हानी सहकर के क्षमा करने वाला  आजीवन  सुखी रहेगा .
७.दूसरों के दुखों को  न सहकर ,वैसे ही दुखप्रद कार्य करके  बदला  न लेकर  सहनशील रहना  ही आदर्श है.
८.अहंकारियों के  हानिप्रद कार्यों को सहते सहते जीत सकते हैं . 
९.  अति कतुवचनों को सुनकर भी  सब्रता दिखानेवाले  ही सर्वश्रेष्ठ साधू -संत   हैं 
१० . कठिन  उपवास करके साधना करने वाले  और   अति क्रोधी के वचन  सह्नेवाले ,  दोनों की तुलना में सहनशील  मानव  ही  श्रेष्ठ  मानव  है..

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