Sunday, December 10, 2017

निज रचा दोहा

मनमाना काम न कर.
 मानसिक  पीडा  जान.
मन  मानी बात मान.
मानसिक चैन जान. (स्वरचित)

सिक्का

सिक्का  बचपन की याद दिलाती.
एक लेकर  जाते.
एक मूँगफली  का  गोला लेते.
बाकी दो जल्ली(दो पैसे)  लाते.
साथ ही गुड थोडा  सा मुफ्त मिलता.
पूरे दिन मजे में कटता.
अब नोट  है ,हज़ारों .
पर मजा नहीं ,
मानव  मन  में .

निजी रचे दोहे

भक्ति
 1. भगवान  का नाम जप,
 मन को रख वश  में.
मान मर्यादा   मिलेगा़
लौकिकता से दूर रह.
 अमित आनंद  जान.

2.अति सुखी जीवन तभी,
  सार्थक जीवन है  सदा.
 सर्वत्र  सानंद   तभी,
 जब सर्वेश्वर की याद.
3. करो करो परोपकार,
    धर्म पथ  को मानो.
  कलंकित जीवन  न   सुखी.
 यम  सदा  साथ  जानो.




Friday, December 8, 2017

जय जवान .जय किसान


जय जवान ! जय किसान!


दिनकर की रोशनी दिन -दिन ,

युग के परिवर्तन
रात में काम 

दिन में निद्रा .
 वे न जानते धूप.

मैंने सोचा तो सुना
आधी रात में खिलनेवाले 

फूल भी हैं ,
अँधेरे में देखने के उल्लू भी हैं. 

स्वार्थ के लोग अति कम ,
सेवक सच्चे अधिक.

सीमा पर लड़ते
 देश भक्त जवान. 

यहाँ के एक करुणा,
 जोड़ते भ्रष्टाचार रूपये
 लाख करोडो.

कुमारी जोड़ कर ,
जोड़ने के लुटेरों को छोड़ 

जेया जेया कार लेकर
चल बसी. 


ऐसे एकाध विषैली जन्तुयें
अपराध करके भी 

पाती सम्मान. 
जगाना हैं देश के युवक युवतियों को
स्वार्थी तत्वों को 

पनपने न देना.
चंद चाँदी की चिड़िया पाकर 
न देना बदमाशों को ,
भ्रष्टाचारियों को ,
काले धनियों को 

ठगों को खूनियों को वोट, 
सिखाना है उनको

 देश ही प्रधान .

जय जवान !जय किसान!

Tuesday, December 5, 2017

कली युग

मैं न कवि,  न पारंगत.
पागल के प्रलाप सा -युग की बात बक रहा हूँ.
रामायण काल
महाभारत काल
जातक कथाएं सब को देखा
सरसरी नजर से
कलियुग  तो है प्रतयक्ष
मेरी बुद्धि  में न कोई अंतर नहीं देखता.
सब युगों  में
बलात्कार, ठग, अहंकार, अत्याचार,
गंभीर  विचार किया तो
कलियुग ही सब से अच्छा.
ज्यादा ये ज्यादा
कहने की स्वतंत्रता.
आश्रमों की भ्रष्टता,
शासकों  की भ्रष्टता,
भले ही दंड ये बचे,
बातों की जानकारी तो मिलती,
बातें होती खुल्लमखुल्ला,
निस्संकोच मिलते रहते हैं बे शरम

कलियुग ही सब से अच्छा.

मैं न कवि,  न पारंगत.
पागल के प्रलाप सा -युग की बात बक रहा हूँ.
रामायण काल
महाभारत काल
जातक कथाएं सब को देखा
सरसरी नजर से
कलियुग  तो है प्रतयक्ष
मेरी बुद्धि  में न कोई अंतर नहीं देखता.
सब युगों  में
बलात्कार, ठग, अहंकार, अत्याचार,
गंभीर  विचार किया तो
कलियुग ही सब से अच्छा.
ज्यादा ये ज्यादा
कहने की स्वतंत्रता.
आश्रमों की भ्रष्टता,
शासकों  की भ्रष्टता,
भले ही दंड ये बचे,
बातों की जानकारी तो मिलती,
बातें होती खुल्लमखुल्ला,
निस्संकोच मिलते रहते हैं बे शरम

बातों की जानकारी,  बातें होती प्रकट.
कलियुग ही सब से अच्छा. ज्यादा ये ज्यादा.





मृत्यु निश्चित

मनमाना    ढंग से
 रुपये जोड
मान खोकर भी
नेता या नेत्री बन
पैसे के लिए
 मल खानेवाले भीड.
खुद न भोगते,
बेकार  पैसे
निर्दयी लोग
न्याय के पक्ष  नहीं
मजबूत
 मजबूर.
चंद पैसे के लिए
भ्रष्टाचारी   को सलाम.
क्यों भूल जाते,या
भय  नहीं खाते
मृत्यु निश्चित.