प्रेम  ही जीवन है  तो
प्रेम क्यों तंग दिली है?
पगडंडी क्यों ?
स्वार्थ क्यों ?
तीसरे को स्थान क्यों नहीं?
तब तो प्रेम होते हैं 
स्वार्थ -निस्वार्थ .
अपने दल -अपने शासन -अपने लाभ 
स्वार्थ प्रेम.
देश के लिए दल -देश के लिए शासन -देश के लाभ.
निस्वार्थ प्रेम .
स्वार्थ प्रेम में  जलन-लोभ -क्रोध .माया आदि
 शैतान  का केंद्र. 
अपने परिवार सुखी रहें ,
आरक्षण पीढी दर पीढी  मिलता रहें 
चाहें घर में डाक्टर ,इन्जनीयर आदि दल 
कम अंक अधिक संख्या में हो. 
जनेऊ पहने प्रतिभाशाली ,
भले ही भूखों मर  जाएँ ,
 आ रक्षण नीति सत्तर साल की आजादी के बाद भी 
स्वार्थ राजनीती का ,पक्षपात नीति का 
स्वार्थ लक्षण   ,आरक्षण  का.
सत्तर साल के बाद आरक्षण मिटाना 
निस्वार्थ प्रेमार्थ शासन विधान.