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Thursday, October 23, 2025

इंतजार

 


— एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु

(हिंदी प्रेमी प्रचारक की स्वरचित रचना)

 24-10-25


शिशु रोता भूख लगते ही,

माँ के आँचल की प्रतीक्षा।

विवाह के बाद दंपति को,

संतान-सुख की प्रतीक्षा।


विद्यार्थी को परीक्षा फल की,

युवा को नौकरी की चाह।

किसी को जीवन-संगी की,

किसी को प्रेम-नज़र की राह।


तपस्वी को प्रभु-दर्शन की,

पत्नी को पति-आगमन की।

व्यापारी को ग्राहक मिलने की,

माता को बाल-आगमन की।


लॉटरी टिकट खरीदने वाले को,

जीत की मधुर प्रतीक्षा।

वनस्पति को मेघ बरसने की,

धरती को नीर की प्रीति।


राजनीति में नेता जन-मत की,

बूढ़े को मुक्ति की आशा।

आरंभ से लेकर अंत तक,

जीवन बस — प्रतीक्षा ही प्रतीक्षा।


Wednesday, October 22, 2025

आशाओं के दीप।

 


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 आशाओं के दीप


— एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई

तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक


जब जीवन में छाए अंधेरा,

मन हो जाए बिल्कुल घनेरा।

तब मत रुकना, मत घबराना,

आशा का दीप जलाना। 


हर पथ में बाधाएँ घेरें,

काँटे भी साथ सफ़र में फेरें।

कदम न रुकें, विश्वास बढ़ाना,

आशा का दीप जलाना। 


असफलता जब गले लगावे,

मन को दुःख की लहर डुबावे।

तब भी हँसकरराह बनाना,

आशा का दीप जलाना। 


ठग ले कोई, धन चला जाए,

प्रिय बिछुड़ें, सुख दूर हो जाए।

फिर भी हृदय में दीप जलाना,

आशा का दीप जलाना। 


ईश्वर पर विश्वास रखो रे,

कर्म पथ पर रुख न मोड़ो रे।

हर संकट में जीत दिखाना,

आशा का दीप जलाना। 🕯️

Tuesday, October 21, 2025

आदमी और खुशी

 खुशियों की तलाश

— एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई


मानव सदा चाहता है

आनंदमय जीवन जीना।

खुशियों की तलाश में

कभी तीर्थ जाता है,

कभी समुद्र तट पर

हवा खाने निकल जाता है।


गर्मी में पहाड़ों पर,

सर्दी में धूप की तलाश —

हर ऋतु में ढूँढता रहता है

सुख का नया आभास।


नौकरी में,

संबंधों में,

योग्य जीवनसाथी की चाह में,

वह हर ओर भटकता है

खुशियों की राह में।


कोई तपस्या में रमता है,

कोई मधुशाला में डूब जाता है,

कोई संगीत में खोकर,

मन का बोझ भुला देता है।


दोस्तों संग हँसी ठिठोली,

घर-आँगन के खेल,

यज्ञ, होम, मंदिर दर्शन —

सब एक ही मंज़िल की ओर —

मानसिक संतोष, सुख की खोज।


कभी जलप्रपात में नहाने,

कभी जंगल में मंगल मनाने,

कभी अजायबघर, चिड़ियाघर,

हर जगह —

आदमी खुशियाँ खोज ही लेता है।

Monday, October 20, 2025

शिक्षक

 


– एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

21-10-25


शिक्षक दीपक, ज्ञान ज्योति है,

कलम उसी की ज्योति प्रीति है।

वह लिखता जब सत्य की बात,

जग पाता नव जीवन-प्रभात॥


ग्रंथों में मोती चुन चुन कर,

छात्रों को देता सदा उजागर।

अंधकार मिटाता मन से,

भर देता विज्ञान-किरन से॥


प्रशिक्षण पाकर नव युगधर्मी,

कलम से रचता भाव कीर्मी।

विज्ञान, कला, राजनीति सारी,

उसकी दृष्टि विवेक-संचारी॥


अभिनय, संगीत, कला का संग,

शिक्षक में हो गुणों का रंग।

जो अंतर्क्रिया जग में लाए,

वह सच्चा शिक्षक कहलाए॥


कलम न उसकी साधन मात्र,

वह आत्मा उसकी — दीप प्रातः।

ज्ञान-सृजन की यही निशानी,

शिक्षक-कलम अमर कहानी

Friday, October 17, 2025

धनतेरस आदर्श मार्ग



धनतेरसएस. अनंतकृष्णन, चेन्नई18-10-25

मानव जीवन की तीन मांग —
भोजन, वस्त्र, और एक आँगन।
कबीर वाणी कहती प्यारी,
साईं इतना दे तू न्यारी —
जामे कुटुंब समाय,
मैं भी भूखा न रहूँ,
साधु न भूखा जाए।

फिर चौथी माँग धन की आई,
जिससे बढ़ी लौकिक चाह समाई।
वही बन जाती दुख की जड़,
लालसा में मन पड़ता अड़।

धनतेरस दिन शुभ मंगलकारी,
असुर हुए पराजित भारी।
लक्ष्मी आयीं जगत उजियारा,
धनवंतरी दे तन को प्यारा।

धन की देवी, शिव, धनवंतरी,
तीनों कृपा बरसाएँ नित धरी।
आरोग्य, सुख और शांति अपार,
यही दिन करता जीवन सुधार।

स्मरण करो सद्गुरु की वाणी,
सबहीं नचावत राम गोसाईं।
सुख हो या दुख — एक समान,
ईश्वर स्मरण ही जीवन ज्ञान।

जय शिव शंकर!
जय माँ लक्ष्मी!
जय धनवंतरी महान!

एस . अनंत कृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना 

जीवन द्वंद्व




आशा–निराशा का द्वंद्व जीवन

एस. अनंतकृष्णन चेन्नई 
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सुख में उमड़े आशा की धारा,
दुख में छाई निराशा की कारा।
हर क्षण मन का युद्ध असीम,
जीवन बन गया रणक्षेत्र भीम।

ईश्वर है या नहीं — संशय उठता,
अन्याय की जीत पर मन झुकता।
फिर भी मानना पड़ता अंत में,
कोई अदृश्य शक्ति नचाती तंतु में।

भूतल का हर कण नाचता वहीं,
सबहीं नचावत राम गोसाईं।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।



स्वार्थ के चक्कर में

 स्वार्थ के चक्कर में


(एस. अनंतकृष्णन — चेन्नई)


मानव लोभी, माया ग्रासी,

भूल गया वह सत्व प्रवासी।

भोग सुखों में लिप्त निरंतर,

विस्मृत सत्य, जगत है अंतर।


क्षणिक सुखों की चाह में फँसा,

भूल गया वह कौन है, कैसा।

धन, पद, यश की दौड़ निराली,

मूल भुला, मति हुई मतवाली।


ईश्वर की लीला सूक्ष्म गहन,

विधि लिखती कर्मों का धन।

जन्म में ही भाग्य रचाया,

जीवन-मंच पर खेल रचाया।


स्वार्थ में बस दौड़ लगाता,

हवा-महल वह रोज़ बनाता।

कौआ चाहे गाए कोयल-गीत,

पर सुर वही, करुणा अनीत।


गौरैया चाहे ऊँचा उड़ जाए,

पर बाज का आकाश न पाए।

मिथ्या जगत में मोह से बँधा,

सत्य त्याग कर, माया में फँसा।