— एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु
(हिंदी प्रेमी प्रचारक की स्वरचित रचना)
24-10-25
शिशु रोता भूख लगते ही,
माँ के आँचल की प्रतीक्षा।
विवाह के बाद दंपति को,
संतान-सुख की प्रतीक्षा।
विद्यार्थी को परीक्षा फल की,
युवा को नौकरी की चाह।
किसी को जीवन-संगी की,
किसी को प्रेम-नज़र की राह।
तपस्वी को प्रभु-दर्शन की,
पत्नी को पति-आगमन की।
व्यापारी को ग्राहक मिलने की,
माता को बाल-आगमन की।
लॉटरी टिकट खरीदने वाले को,
जीत की मधुर प्रतीक्षा।
वनस्पति को मेघ बरसने की,
धरती को नीर की प्रीति।
राजनीति में नेता जन-मत की,
बूढ़े को मुक्ति की आशा।
आरंभ से लेकर अंत तक,
जीवन बस — प्रतीक्षा ही प्रतीक्षा।