Search This Blog

Friday, October 17, 2025

जीवन द्वंद्व




आशा–निराशा का द्वंद्व जीवन

एस. अनंतकृष्णन चेन्नई 
++++++++++++++++++++++
सुख में उमड़े आशा की धारा,
दुख में छाई निराशा की कारा।
हर क्षण मन का युद्ध असीम,
जीवन बन गया रणक्षेत्र भीम।

ईश्वर है या नहीं — संशय उठता,
अन्याय की जीत पर मन झुकता।
फिर भी मानना पड़ता अंत में,
कोई अदृश्य शक्ति नचाती तंतु में।

भूतल का हर कण नाचता वहीं,
सबहीं नचावत राम गोसाईं।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना।



No comments:

Post a Comment