आशाओं का दीप
एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई
9-10-25.
मानव जीवन में
भावी जीवन का भय।
दूर होने आशा का दीप।
माता-पिता अभिभावक से
आर्थिक सहायता की आशा।
बडे होने पर व्यापार में
लाभ की आशा।
घाटा होने पर
फिर आगे की आशा।
छात्र जीवन में परीक्षा
फल और अंक।
अच्छे महाविद्यालय में
भर्ती की आशा।
शिक्षा के बाद नौकरी।
फिर योग्य वर या वधु।
आर्थिक कठिनाइयां,
पदोन्नति का प्रयत्न।
संतान की तरक्की की आशा
इन सब का सामना
करना है तो एक ही मार्ग
आशा का दीप जलाना।
नर होने से निराशा से
बचने आशा ही बल है।
माता-पिता पर भरोसा,
दोस्तों पर भरोसा,
नौकरों पर भरोसा
डाक्टर की इलाज
पर भरोसा।
विमान चालक पर भरोसा।
कदम कदम पर मानव को क्रियाशील
बनने की प्रेरणा।
काम करने का ताकत
आशा पर ही निर्भर है।
उम्मीद न तो मानव
उत्साह खो जाता।
निष्क्रिय बन जाता।
आशा का दीप ही शक्ति है।
आशा ही सोच विचार
खोज आदि प्रेरणा का मूल।
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