इंद्रधनुष
एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई, तमिलनाडु
२८-१०-२५
उजले रंग,
सूर्य की किरणों से झलके सातों रंगों का सुंदर दृश्य,
आकाश में जैसे चूड़ी पहनी हो,
या धरती पर जलप्रपात में झिलमिलाती रोशनी हो।
यह राम-रस का असर,
ईश्वर की ही छटा,
प्रकृति की अनुपम शोभा।
पर आजकल —
उजले वस्त्रों में भी
राजनीति के लोग,
पद की धूप पड़ते ही
रंग बदलते हैं — गिरगिट की तरह।
छिपकली की तरह।
रूप देखकर जो विश्वास जगता है,
वही पल में धोखा दे जाता है।
पेड़ों की पत्तियों में छिपे कीट,
छाल के रंग से एकाकार हो जाते —
अति सूक्ष्म दृष्टि ही पहचान पाती है उन्हें।
इस संसार में उजाला भी
कभी-कभी गंदगी में सना मिलता है।
बाहरी दृश्य बदलते हैं निरंतर,
यह दुनिया एक अजीब बाज़ार है —
कभी इंद्रधनुष-सी सुंदर,
कभी गिरगिट-सी चालाक।
फिर भी —
इंद्रधनुष सिखाता है हमें सतर्क रहना,
सिखाता है —
हर रंग में छिपा होता है एक अनुभव,
एक सीख,
एक सत्य।
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