स्वच्छ भारत स्वप्न
एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
भारत आज़ाद हुए — हुए कई दशक बीत गए,
पर “स्वच्छ भारत” अब भी एक स्वप्न सा दीख रहा है।
मोदीजी ने दिया जो पहला नारा —
“स्वच्छ भारत बनाओ”, जनमन में गूंज रहा है।
पर राजनीति के खेल देखिए,
चेन्नई की गलियाँ अब भी कूड़े से लथपथ हैं।
छाया चित्र बनते हैं — व्यंग्य बाण बनकर,
मोदीजी पर चल पड़ते हैं, जनता की भूलें छिपाकर।
कितनी अज्ञानता जनता में!
पढ़े-लिखे, स्नातक, शोधकर्ता सब बढ़ते हैं,
पर सड़क पर कूड़ा डालते हुए
शिक्षा के अर्थ घटते हैं।
खेल ये बड़ा विचित्र —
नालों में फेंके अवशेष, मोड़ों पर कचरा,
फिर दोष सरकार पर!
कब समझेंगे हम —
स्वच्छता केवल शासन नहीं, संस्कार का दर्पण है।
फुटपाथ पर जीवन, गलियों में गंदगी,
और “स्वच्छ भारत” — बस एक सपना।
सोचता हूँ, क्या यह सपना
सपना ही रह जाएगा?
यदि हर नागरिक अपने घर सा
नगर को भी अपना माने,
अपनी गलती को सुधारकर
देश की सफ़ाई का संकल्प ठाने —
तभी साकार होगा वह स्वप्न,
जिसे हमने देखा था —
एक उज्ज्वल, निर्मल भारत का स्वप्न।
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