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साँच को आँच नहीं
– एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई
15-10-25
साँच को आँच नहीं,
साँच को लौकिक चाह नहीं।
साँच को सुख नहीं,
यह जाना हरिश्चंद्र की कहानी से,
महाभारत में दुर्योधन के वध से।
आजकल —
वोट, नोट, चुनाव की प्रणाली से,
बारह साल मुकदमे के बाद
अपराधी ‘निर्दोष’ बनकर छूटने से,
सांसद, मंत्री, अमीर, बदमाश
भ्रष्टाचार से बचकर
फिर मंत्री बनने से —
साँच को आँच नहीं,
पर व्यवहार में सद्यःफल नहीं।
मैं झूठ बोलकर
भरी सभा में कह नहीं सकता —
"मैं झूठा हूँ!"
चोर भी चोरी कर
खुल्लमखुल्ला घोषणा नहीं कर सकता।
इस परिस्थिति में भी —
साँच को आँच नहीं।
वामनावतार न लिया होता,
तो महाबली का वध नहीं होता।
जीवन में झूठा विजयी है,
पर साँच को आँच नहीं।
न्यायाधीश गवाह के आधार पर फैसला देता,
अमीरी के पीछे वकीलों का ताँता।
साँच को आँच नहीं,
पर तत्काल विजय नहीं।
मोहिनी अवतार न लेती,
तो भस्मासुर का वध नहीं होता।
हाँ, जाँच को आँच नहीं —
भगवान का सूक्ष्म समर्थन ही
सत्यवादियों का आधार है।
तब साँच को आँच नहीं।
सत्य — आदरणीय है,
सम्माननीय है,
रैदास जैसे भक्तों के साथ है।
सत्य को आँच नहीं,
पर वह सद्यःफल का पात्र नहीं।
इसीलिए मानव जीवन दुखी है —
फुटपाथ के गरीब व्यापारी से
पुलिस ले जाती है तरकारी-फल,
सब देखते हैं —
चुप, चुप।
साँच को आँच नहीं,
वह तो प्रशंसनीय है —
जैसे नैवेद्य।
एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
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