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Tuesday, October 28, 2025

प्रदूषण मानव के कारण

 


पर्यावरण चेतना

— एस. अनंतकृष्णन


विश्वभर में वैज्ञानिक प्रगति,

शिक्षा का विकास महान।

आवागमन की सुविधाएँ,

चिकित्सा में नव ज्ञान।


फिर भी मानव व्यथित है,

साँस लेना कठिन हुआ।

इनहेलर, नेबुलाइज़र साथी,

जीवन रोगों में गुम हुआ।


गर्मीकरण, जल-भूतल प्रदूषण,

वायु में घुला विष-अंधकार।

राजनीति का स्वार्थ प्रदूषण,

भ्रष्टाचार बना व्यापार।


चित्रपटों की चकाचौंध में,

संस्कारों का ह्रास हुआ।

कृत्रिम श्रृंगार केंद्रों में,

प्राकृतिक सौंदर्य नाश हुआ।


पाश्चात्यता के बहाने से,

संस्कृति पर पड़ी धूल।

परिवार बिखरे, तलाक बढ़े,

संयम हुआ शून्य फूल।


नगरीकरण की लहर में,

झीलें, पर्वत गायब हुए।

रासायनिक खादों से खेत,

ज़हर समान हो गए।


हे मानव! अब तो जागो,

तटस्थ मत रहो यूँ।

पर्यावरण चेतना जगाओ,

धरती माँ के लिए कुछ करो तूँ।

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