Search This Blog

Saturday, October 25, 2025

आत्मज्ञान

 आत्मबोध


— एस. अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक


आत्मबोध, आत्मज्ञान,

अखंड बोध, अपना पहचान।

अपने मन को जानो पहले,

ज्योति जगाओ अंतर में खेले।


लौकिक वासनाएँ भारी,

माया जाल पसारे सारी।

मन को जो बाँधे रस जाल,

करो उसे निर्मल, निष्काम, निहाल।


जब मन स्थिर, विचार पवित्र,

जागे भीतर चेतन चित्र।

अहं आत्मा, अहं परमात्मा —

ब्रह्मास्मी का सत्य प्राणवा।


कबीर ने कहा — “लाली लाल की, जित देखूँ तित लाल,”

देखन मैं गयी, बन बैठी खुद लाल।

यह अद्वैत का सरल गान,

जो जाने, वही महान।


“बुरा जो देखन मैं गया, बुरा न मिल्या कोय,

जो दिल खोजा अपना, बुरा न मिल्या कोय।”

यह आत्मचिंतन का ज्ञान,

देता जीवन को नव प्राण।


आत्मबोध का जो ले नाम,

मिट जाए भीतर का अंध-ग्राम।

माया टूटे, मन हो शांत,

जागे आत्मा — बने ब्रह्म तत्त्व।

एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति 

No comments:

Post a Comment