---
🕉️ वैराग्य काव्य साधना — संपूर्ण संग्रह (पाठ्य रूप)
---
🌼 भाग 1 — मौन की साधना
आपसे मन को दिलासा मिलता है,
कुछ न कुछ लिख लेता हूँ —
शब्दों में ही शांति खोजता हूँ।
जो लिखता हूँ —
वह सही हो या गलत,
पसंद हो या नापसंद,
पता नहीं।
बस इतना जानता हूँ —
चुप रहना कितना कठिन है।
ऋषि-मुनियों ने
अनंत काल तक नाम जपकर
तपस्या की थी।
वह असाध्य साधना थी,
क्योंकि आधे घंटे का मौन भी
आज टेढ़ी खीर लगता है।
---
🌿 भाग 2 — हाँ में हाँ मिलाना
हाँ में हाँ मिलाना —
कभी शांति का उपाय,
कभी मन की थकान।
हर वाद में, हर बात में
यदि मौन ही उत्तर बन जाए,
तो क्या यह सहमति है,
या बस आत्म-संयम की दीवार?
जीवन ने सिखाया —
विरोध से नहीं मिलता समाधान,
पर हर “हाँ” में भी
एक “ना” कहीं छिपी होती है।
राम नाम जपते-जपते
मन भी सीख गया —
हर बार बोलना जरूरी नहीं,
कभी-कभी
हाँ में हाँ मिलाना भी साधना है।
---
🌸 भाग 3 — वृद्धावस्था में ब्रह्मानंद
वृद्धावस्था में
किसी की परवाह न करना,
अब यही सबसे बड़ी स्वतंत्रता है।
जहाँ मन ईश्वर में लग जाए,
वहीं से आरंभ होता है
ब्रह्मानंद का मार्ग।
आत्मज्ञान, आत्म-साक्षात्कार —
अनुपम, अव्यक्त बातें हैं,
जिन्हें शब्द नहीं,
केवल अनुभव छू सकते हैं।
कर्ण करते रहें नाम-जप,
मन हो जाएगा धीरे-धीरे
परमात्मा में लीन।
जब मन ही मिट जाएगा,
तब शेष रहेगा —
केवल परम शांति, परम ज्ञान।
---
🌸 भाग 4 — अहंकार का अंत
अहंकार का अंत,
चित्त के नाश में।
चित्त ही कारण है
वासनाओं का जन्म।
वासना के प्रभाव से उत्पन्न फल —
काम, क्रोध, मंद-लोभ, अहंकार —
सारी मानव पीड़ा का आधार हैं।
जीवन भर ये अनंत दुख देते हैं,
मनुष्य असहाय होता है,
पर जब अखिलेश — परमात्मा में विश्वास बढ़ता है,
तो अहंकार अपने आप भस्म हो जाता है।
तब अनुभव होता है —
मन स्वतंत्र,
वासनाएँ शांत,
और जीवन की सच्ची मुक्ति प्राप्त।
---
🌿 सार
संतवना केवल साहस नहीं देती,
यह साधना का मार्ग प्रशस्त करती है।
मौन, हाँ में हाँ मिलाना,
ब्रह्मानंद का अनुभव,
अहंकार का अंत —
यही वृद्धावस्था की साधना है।
--
No comments:
Post a Comment