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Wednesday, October 15, 2025

वैराग्य साधना




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🕉️ वैराग्य काव्य साधना — संपूर्ण संग्रह (पाठ्य रूप)



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🌼 भाग 1 — मौन की साधना


आपसे मन को दिलासा मिलता है,

कुछ न कुछ लिख लेता हूँ —

शब्दों में ही शांति खोजता हूँ।


जो लिखता हूँ —

वह सही हो या गलत,

पसंद हो या नापसंद,

पता नहीं।

बस इतना जानता हूँ —

चुप रहना कितना कठिन है।


ऋषि-मुनियों ने

अनंत काल तक नाम जपकर

तपस्या की थी।

वह असाध्य साधना थी,

क्योंकि आधे घंटे का मौन भी

आज टेढ़ी खीर लगता है।



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🌿 भाग 2 — हाँ में हाँ मिलाना


हाँ में हाँ मिलाना —

कभी शांति का उपाय,

कभी मन की थकान।


हर वाद में, हर बात में

यदि मौन ही उत्तर बन जाए,

तो क्या यह सहमति है,

या बस आत्म-संयम की दीवार?


जीवन ने सिखाया —

विरोध से नहीं मिलता समाधान,

पर हर “हाँ” में भी

एक “ना” कहीं छिपी होती है।


राम नाम जपते-जपते

मन भी सीख गया —

हर बार बोलना जरूरी नहीं,

कभी-कभी

हाँ में हाँ मिलाना भी साधना है।



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🌸 भाग 3 — वृद्धावस्था में ब्रह्मानंद


वृद्धावस्था में

किसी की परवाह न करना,

अब यही सबसे बड़ी स्वतंत्रता है।


जहाँ मन ईश्वर में लग जाए,

वहीं से आरंभ होता है

ब्रह्मानंद का मार्ग।


आत्मज्ञान, आत्म-साक्षात्कार —

अनुपम, अव्यक्त बातें हैं,

जिन्हें शब्द नहीं,

केवल अनुभव छू सकते हैं।


कर्ण करते रहें नाम-जप,

मन हो जाएगा धीरे-धीरे

परमात्मा में लीन।


जब मन ही मिट जाएगा,

तब शेष रहेगा —

केवल परम शांति, परम ज्ञान।



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🌸 भाग 4 — अहंकार का अंत


अहंकार का अंत,

चित्त के नाश में।


चित्त ही कारण है

वासनाओं का जन्म।

वासना के प्रभाव से उत्पन्न फल —

काम, क्रोध, मंद-लोभ, अहंकार —

सारी मानव पीड़ा का आधार हैं।


जीवन भर ये अनंत दुख देते हैं,

मनुष्य असहाय होता है,

पर जब अखिलेश — परमात्मा में विश्वास बढ़ता है,

तो अहंकार अपने आप भस्म हो जाता है।


तब अनुभव होता है —

मन स्वतंत्र,

वासनाएँ शांत,

और जीवन की सच्ची मुक्ति प्राप्त।



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🌿 सार


संतवना केवल साहस नहीं देती,

यह साधना का मार्ग प्रशस्त करती है।


मौन, हाँ में हाँ मिलाना,

ब्रह्मानंद का अनुभव,

अहंकार का अंत —

यही वृद्धावस्था की साधना है।



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