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Friday, October 17, 2025

स्वार्थ के चक्कर में

 स्वार्थ के चक्कर में


(एस. अनंतकृष्णन — चेन्नई)


मानव लोभी, माया ग्रासी,

भूल गया वह सत्व प्रवासी।

भोग सुखों में लिप्त निरंतर,

विस्मृत सत्य, जगत है अंतर।


क्षणिक सुखों की चाह में फँसा,

भूल गया वह कौन है, कैसा।

धन, पद, यश की दौड़ निराली,

मूल भुला, मति हुई मतवाली।


ईश्वर की लीला सूक्ष्म गहन,

विधि लिखती कर्मों का धन।

जन्म में ही भाग्य रचाया,

जीवन-मंच पर खेल रचाया।


स्वार्थ में बस दौड़ लगाता,

हवा-महल वह रोज़ बनाता।

कौआ चाहे गाए कोयल-गीत,

पर सुर वही, करुणा अनीत।


गौरैया चाहे ऊँचा उड़ जाए,

पर बाज का आकाश न पाए।

मिथ्या जगत में मोह से बँधा,

सत्य त्याग कर, माया में फँसा।


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