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Friday, October 3, 2025

सनातन धर्म

 अखिल भारतीय साहित्य सृजन

 विषय  स्वैच्छिक 

विधा --अपनी हिंदी अपने विचार,अपनी स्वतंत्र शैली भावाभिव्यक्ति।

3-10-25.

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विषय --सनातन धर्म।

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मानव दुखी क्यों?

सनातन धर्म कहता है,

ब्रह्म पर विश्वास रखना है

 सत्य व्यवहार करना है।

 निस्वार्थ जीवन बिताना है।

 अपने कर्तव्य निभाना है।

  मिथ्या आचरण से बचना है।

 काम, क्रोध,लोभ,मंद अहंकार 

  मानव को मूर्ख बनाये हैं ।

 अपने अधिकार का दुष्प्रयोग न करना है।

 तटस्थ जीवन बिताना है।

माया मोह वासना से दूर रहना है।

 आत्मज्ञान प्राप्त करने की 

 कोशिश करनी है।

 सत्संग ही प्रधान है।

 स्व चिंतन करना है।

 अपने को पहचानना है।

 अखंडबोध मन को मिटाता है।

 अपने लक्ष्य पर दृढ़ रहना है।

 मानव शक्ति से बढ़कर 

 एक दिव्य शक्ति मानव को नचाता है।

 हर पाप का दंड निश्चित है।

 सद्यःफल के लिए भानावत

 भ्रष्टाचार करता है, रिश्वत लेता है,

  झूठ बोलता है, चाटुकारिता में 

  आगे बढ़ना चाहता है।

 ईश्वर का भय न होतो,

 माया के चंगुल में रहता तो

 आजीवन दुख ही दुख झेलता है।

  कर्मफल के लिए पुनर्जन्म लेता रहता है।

 रोग, साध्य रोग, असाध्य रोग, अंगहीनता

 ग़रीबी आदि के चक्कर में 

 असाध्य दुख झेलता है।।

 भेद बुद्धि, राग द्वेष रहित है जीना है।


दुख से बचानेवाले ईश्वर ही है।

  मन की चंचलता दूर कर 

 एकाग्रता से ईश्वर पर मन लगाकर 

 ब्रह्म ज्ञान पाकर 

 ब्रह्म ही बनना है।

उसी को कहते हैं,

 अहं ब्रह्मास्मी।

एस अनंतकृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक द्वारा स्वरचित भावाभिव्यक्ति रचना

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