Monday, June 11, 2012

अर्द्धांगिनी -- 5

अर्द्धांगिनी
परिमेल अलकर और पावानर दोनों ने
 "पतिव्रता"धर्म का अर्थ निष्कलंकित दशा माना है|


मनक्कुडवर तो दृढ बल माना है।पुलवर कुलनदै मन की दृढ़ता माना है|
 तमिल  बृहद  कोष  का दूसरा ग्रन्थ
"पतिव्रता"के अर्थ को विस्तार से व्याख्या करता है।
व्याकरण और साहित्य की सहायता से यह अर्थ  दिया गया है।
  CONJUGAL FIDELITY CHASTITY  .
LIFE OF A HOUSE HOLDER AFTER HIS UNION
WITH A BRIDE OF HIS CHOICE HAD BEEN RATIFIED
BY MARRIAGE CEREMONIES.

पतिव्रता धर्म एक नायक एक नायिका से नियमानुसार
शादी करने के बाद
 गृहस्थ जीवन की शिष्टता  कहा गयाहै।
ऐसी व्याख्या नम्बी अकप्पोरुल मालै  में मिलती है।

MALABAAR JASMINE,AN EMBLEM OF FEMALE CHASTITY,LEARNING,STUDY,KNOWLEDGE-MEDITATION.

सांसारिक श्रेष्ठ गुण
 पतित्रुप्पत्तु  में कहा गया है;
पतिव्रता को कारीगरी
WORKMANSHIP कहा गयाहै।

दुखी-दीन  लोगों में   पतिव्रत  है क्या?
 कम्बरामायण   में यम के फ़र्ज़ को रोकने की शक्ति
 पतिव्रत  कहा गया है।

संकल्प  के अर्थ में --VOW,DECISION,DETERMINATION  कहा गया है।..
पति  के कल्याण में ध्यान लगानेवाली --
पुरत्तुरै नामक ग्रन्थ बताता है।
पति से अलग होने के बाद भी अपने काम-सुख को नियंत्रित  करके
 दृढ़ चित्त से उस के ही ध्यान में रहनेवाली  स्त्री  पतिव्रता है।


सभी व्याख्या का सारांश है ----"मानसिक दृढ़ता।"
भारती दासन  नामक कवि  ने पतिव्रता धर्म को
 स्त्री -पुरुष दोनों के लिए आवश्यक धर्म कहा है।


और कोशों में भी यही अर्थ मिलता है।
तिरुवल्लुवर के बाद के कवियों के अर्थ की जानकारी
 अभी मिलती है।
लेकिन वल्लुवर ने 
पहले ही इसकी व्याख्या की है।
 पतिव्रता नारी से श्रेष्ठ कोई नहीं है।

G.U.POP--WHAT IS MORE EXCELLENT THAN A WIFE,
IF SHE POSSES THE STABILITY OR CHASTITY?
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Sunday, June 10, 2012

अर्द्धांगिनी --4

अर्द्धांगिनी

तिरुक्कुरल एक मौलिक ग्रन्थ है।
अतः उसकी शैली अपनी है।
उनको  अपने कुरल में  अन्य ग्रंथों को तुलना करने   की  जरूरत नहीं पड़ी।
वे खुद रचयिता और बोधक थे।

 स्त्री और पुरुष  दोनों के दिल में उठनेवाला एक विषय है पतिव्रता।
हर एक अपने अनुभव और चिंतन के अनुसार इसकी व्याख्या  करते हैं।
वल्लुवर  ने भी इस  विषय   पर अपना विचार   प्रकट किया  है।
पतिव्रता  धर्म से बढ़कर  एक  नारी  के लिए
और कुछ बड़ी  संपत्ति  संसार में नहीं है।


कुरल:--


पेंनिर्कू  पेरून तक्क  याउल  कर्पेंनुं  तिनमै  पेरिन।

एक नारी के   लिए    पतिव्रता  धर्म एक काफी है,
संसार में और प्राप्त करने कुछ नहीं है।
पावानर   'पतिव्रता 'का अर्थ निष्कलंक कहते हैं।


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arddhaanginiअर्द्धांगिनी---3

तिरुवल्लुवर अपने कुरल में अपने 41,42,47,50 के कुरलों  में
पुरुषों को ही उल्लेख किया है।उनमें क्रमशः यों ही



उल्लेख किया गया है----गृहस्थ वही,मर चुके लोगों को भी गृहस्थ,

स्वभाव से गृहस्थ ,जग में नाम से जीनेवाला.

.  इनमें   स्त्री शब्द का स्थान नहीं है।

43.50 के कुरल  में भी गृह शब्द का उल्लेख नहीं है।


गृहस्थ जीवन में पत्नी शब्द का प्रयोग नहीं है,
लेकिन उस अध्याय भर में पत्नी की ही प्रधानता है।
पत्नी नहीं है तो पुरुष के लिए सुख का जीवन नहीं है;

कुरल में कम शब्दों में तीन भाग में
युग-युगांतर  के जीवन का मार्ग है।
अतः एक कवि  ने उस तिरुक्कुरल को  हाथ बराबर  का
आकाश दीप  बताया  है।
यह  आकाश दीप पत्नी की विशेषता पर रोशनी फैला रहा है।


जीवन -कल्याण अध्याय सीधे पति के सर का मुकुट है। gee.yu.pop---"the goodness of help to domestic life"
कहकर  अनुवाद किया है। चंद  शब्दों में सागर की व्याख्या  कुरल में है।
पहले कुरल में ही पत्नी की विशेषता और श्रेष्ठता का जिक्र किया है।

पत्नी एक गृह के विकास में साथ देनेवाली है।
जीवन सहायिका है।गृह -कल्याण की साथिनी  है।
गृहस्थाश्रम  के गुण पत्नी  में  है।
आय के अनुसार परिवार निर्वाह करनेवाली है पत्नी।
गृहस्थ-रथ सही ढंग  से चलाना  अर्द्धांगिनी पर निर्भर है।
आय के अनुकूल परिवार न चलने की बीबी से उलटा -प्रभाव पडेगा।

नरक तुल्य जीवन अधिक खर्च के कारण होता है।
THE WIFE WHO LIVES A GOOD LIFE AND WORKS WITH HER HUSBAND FOR THE COMMON GOOD IS RELIABLE SUPPORT

.लोगों को जितने ही प्रकार  के  बल मिलें,
 फिर भी बिना पत्नी के पुरुष निर्बल ही है।
सच्चा बल अर्द्धांगिनी से मिलता है।

पुरुष के अधिकार सुचाल और गुणवती पत्नी के बल पर ही निखर उठता है।
यही एक गृह की महत्ता है।यह महत्ता अप्राप्त जीवन महत्वहीन हो जाएगा।इसे" HOUSEHOLD EXCELLENCE"  के  शब्दों  में  पोप  ने  अनुवाद  किया है।

आर्थिक सम्पन्नता सैक्कडों   साल  साथ देगा।
 लेकिन वह स्वर्ण और सामग्रियां  गुणवती कुटुंब संचालिका

पत्नी के सामने तुच्छ ही है।

G.U.POPE----IF HOUSEHOLD EXCELLENCE BE WANTING IN THE LIFE HOWEVER WITH SPLENDOUR LIVED ALL WORTHLESS IN THE LIFE.
जो बनता है,वह स्त्री के कारण।
जो बिगड़ता है स्त्री के कारण।
स्त्री नरक तुल्य है;स्त्री स्वर्ग तुलया है।


एक के जीवन में कपड़ा नहीं है;
खाना नहीं है :
सोने के लिए घर नहीं है;
ये तो बड़ी कमी नहीं है।
ये सब न होने पर भी योग्य
गुणवती पत्नी के होने पर अति आनंद मिलेगा।
एक मनुष्य के अधिकार में राज्य है;
तीर-कमान है;सेना है;पर्वत बराबर की संपत्ति है;
लेकिन पत्नी  डाइन  है तो उसका जीवन नरक-तुल्य हो जाएगा।
WHILE THERE IS NOTHING GREATER THAN LIVING WITH THE WIFE WHO IS A HOSPITABLE PERSON THERE IS NOTHING WORSE THAN LIVING WITH THE ONE WHO IS NOT.

एक पत्नी को स्वार्थ -बंदर-सा,पिशाच -सा रहना या होना नहीं चाहिए।

गुणहीन होने पर जीवन में एक अंगुल भी आगे न बढ़ सकते है।

एक पत्नी के गुणवती होने का अर्थ है ,
वह मायके और ससुराल के नाते -रिश्तों को
 बराबर समझनेवाली हो।
उसका मन सुविस्तार होना चाहिए।
जैसे अभ्यस्त सेनापति कामयाब ही कामयाब प्राप्त करता है,
वैसे ही गुणवती स्त्री सफलता प्राप्त करती है।

जैसे सुशासन करनेवाला राजा
,देश को आगे बढाता है,
वैसे ही साद-साध्वी पत्नी परिवार को सफल बनाती है।
नाते-रिश्तो की संख्या बढाती है।----नालाडियार।

वल्लुवर इसे अर्द्धन्गुनी के गुण-महत्ता कहते हैं।
कबिलर नामक कवि  अपने दुःख -चालीसा में कहते हैं---
साथ न देनेवाली  पत्नी से दुःख ही बचेगा।.
पूथान्चेन्द्रनार नामक कवि  सुख -चालीसा में  कहते है   कि
 पति-पत्नी के दिल में एकता होने पर  और ,
दिल मिलने पर ही गृहस्थ-जीवन सुख से संपूर्ण होगा।.






Saturday, June 9, 2012

patni.अर्द्धांगिनी---2

कमल फूल  पत्नी,
सुख की दवा स्त्री,
जीवन-संगिनी,
अर्धांगिनी,
गृह-स्त्री आदि
 भी पत्नी के  पर्यायवाची शब्द है


इस्लाम धर्म पत्नी के बारे में कहां  है----
पत्नी तुममें से तुम्हारी शांति के लिए उत्पन्न   महिला है।

 वह तुम्हारी कमियों को छिपानेवाली कुरता है।
तेरे लिए वह कुरता है तो  तुम को  भी उसके लिए कुर्ता  बनना    है।

काम भाग में वल्लुवर खुद काम पात्र बन जाते है।
चरित्र या पात्र गुण का मतलब है---सद्गुणी,गुणी ,सदाचारी ,शिष्टाचारी आदि।
अतः तिरुक्कुरल को चरित्र प्रधान साहित्य कहते है।
चरित्र या पात्र का  अभिनेता  अर्थ भी है।
शेक्सपियर जो वल्लुवर के पीछे जन्मा है,कहते है --सारा संसार रंगमंच है ;
हम-सब इसके पात्र है।पात्र का मतलब है,जैसा होना है,वैसा बन ना  ।
कुरल के रचयिता वल्लुवर एक निर्देशक है और सफल पात्र भी है।
इलान्कुमारानार  वल्लुवर को अच्छी  पत्नी कहते हैं।

गृहशास्त्र के संपूर्ण अधिकारी  पत्नी है।

wife-patni.अर्द्धांगिनी--1



तिरुक्कुरल में मध्य भाग में शास्त्र को स्थान दिया गयाहै।
कुरल में सात शास्त्र है।
लेकिन देवानेयाप्पावानर आठ शास्त्र  का उल्लेख कियाहै।
वे हैं---भूमिका,
गृह -शास्त्र,
संन्यास ,
भाग्य या विधि शास्त्र,
राजनीती शास्त्र,
अंग -शास्त्र,
क्षेत्र ,पतिव्रत -शास्त्र।


गृह -शास्त्र के बीस अधिकारों में पत्नी  के गुण-लक्षण बताते हैं।
काम भाग के सात अधिकारों में और पतिव्रत -शास्त्र के अठारह अधिकारों में
 भावी --पत्नी के लक्षण  और पत्नी के लक्षण  बताये गए हैं।

गृहस्थ -जीवन,जीवन-साथी के लक्षण,संतान-भाग्य,अथिति-सत्कार,एकता-नीति,दान आदि अधिकारों में वल्लुवर  पत्नी के रूप में ही दर्शन करते है।
वे खुद पत्नी बनकर गृहस्थ  -जीवन को सुमार्ग दिखा रहे हैं।

गृहस्थ  जीवन को विशेष बनाने के सुविचार हम कुरल में देखते है।
जब हमारे मन में अच्छे जीवन को जानने  की इच्छा होती है,
तब कुरल पढने लग जातेहै।

पत्नी का अर्थ है गृह-स्त्री
.खेती की नायिका,
घर की मालकिन,आदि अर्थ।(wife,woman heroine,of pastoral or       agriculture tract,female owner of a house,heroine)

mitrata.मित्रता -रिश्ता--14

बिन देखे,बिन बोले  मित्रता निभाना,
 एक दुसरे केलिए जान देना ,
संसार के इतिहास में अपूर्व है; दुर्लभ भी है।

तिरुक्कुरल  मित्रता का लक्षण ग्रन्थ है तो पुरानानूरू साहित्यिक  है।

दूसरों के सुख से सुख होनेवाले संसार में तीन ही लोग है---1.माता।2.पिता।3 दोस्त।
माता अपने पुत्र को स्वादिष्ट भोज के खाते देख अति प्रसन्न होगी।
पिता पुत्र के पद,बहुमूल्य पोशाक-आभूषण ,देखकर प्रसन्न होंगे।
दोस्त मित्रता की प्रसिद्धि,पदोन्नति देखकर खुश होंगे।
 इन तीनी में माता-पिता के रिश्ते खून का  है।
 उनके बाद मित्र है।दोस्त लाभ के लिए नहीं,काम के लिए होते हैं।
मेरे मित्र ऊंचे पद पर हैं।उसको बाह्य और आतंरिक सुख मिलना है।
उनसे मैं  ईर्ष्या नहीं करूंगा।ऐसे संकल्प लेनेवाला आदर्श मित्र है।
THE IMMEDIATE RESPONSE TO SHARE THE BURDENS OF A FRIEND IN EVERY POSSIBLE WAY IS THE ULTIMATE FRIENDSHIP.
एक आदर्श मित्र सभी प्रकार की मदद यथाशक्ति करेगा।
उसके मन में कभी कोई भेद-भाव नहीं होगा।
मित्रता निभाने में भेद भाव्  होने से बचना बहुत कठिन है।
वल्लुवर ने समृद्ध सम्पन्न जीवन जीने के लिए मित्रता के बारे में लिखा है।

वस्त्र के गिरने पर हाथ फौरन  वस्त्र पकड़कर मान रक्षा करता है;
वैसा ही मित्र कष्ट के समय साथ देगा।
मित्रता एक संपत्ति है।वह प्रयत्न से बढेगी।
 बिना प्रयत्न के मनुष्य गरीबी के गड्ढे  में गिरेगा।
वैसे ही मित्रता है।

dostiमित्रता -रिश्ता 13

हमको बढ़िया ग्रन्थ सुखप्रद और ज्ञानप्रद है।
संसार में अति प्रिय वही ग्रन्थ ;वैसे ही है मनपसंद विषय मित्रता।
वलूवर का ग्रन्थ एक जाति  या राष्ट्र के लिए नहीं,
वह सारे संसार के मार्ग दर्शक ग्रन्थ है।
यह बात रूस के डा0.,
अलेक्सान्दोर ने उल्लेख किया है।
THIRUKKURAL,IS AN INTEGRAL HOMOGENEOUS WORK OF ART,THE AUTHOR OF WHICH ADDRESSES NEITHER KING,SUBJECT NOR PRIEST BUT ME.AND HE DOES NOT ADDRESS MAN EITHER AS LAW GIVEN OR PROPHET BUT AS WELL-WISHER,TEACHER AND FRIEND.HE NEITHER PROPHESIED NOR SPOKE IN HINTS AND RIDDLES;HIS WORDS CONTAINED NO SHADE OF DOUBT ,HE HAD FULL CONVICTION OF THE TRUTH OF WHAT HE SAID,BOTH AS AN ARTIST AND THINKER.THE KURAL OF THIRUVALLUVAR
IS RIGHTLY CONSIDERED AS CHIEF DOEUVREOF INDIAN AND WORLD LITERATURE.THIS IS DUE NOT ONLY TO THE GREATARTISTIC MERIT OF THE WORK,BUT ALSO,AND THIS IS NOST IMPORTANT,TO THE LOFTY HUMAN IDEAS PERMEATING IT,WHICH ARE EQUALLY PRECIOUS TO THE PEOPLE ALL OVER THE WORLD,OF ALL PERIODS AND COUNTRIES.

तिरुवल्लुवर ने  अपने ग्रन्थ  राजा केलिए नहीं,
धार्मिक आचार्यों केलिए नहीं,भारतीयों केलिए नहीं लिखा है।

उनके  ग्रन्थ कानूनी नहीं है।उसमें लोकोक्ति नहीं है;टिपण्णी नहीं है।
बड़े विचारक और कलाकार बनकर उन्होंने कुरल लिखा है।
सभी काल और सभी देश के लिए सार्वजनिक ग्रन्थ के रूप में  तिरुक्कुरल लिखा है।
 दूसरे के प्रति जो मित्रता है,वह स्थायी और टिकाऊ है।
दोनों के मनों की मिश्रित भावना है दोस्ती।

मित्र को निकट संपर्क की ज़रुरत नहीं है।
मोह भावना ही मित्रता का लक्षण है।
 एक दुसरे से मिलने की  ज़रुरत नहीं है।
संघ  काल में प्सिरान्थैयार और कोप्पेरुन्चोलन की  मित्रता  ऐसी  है।
अंतिम घड़ी में अपने दोस्त को जिसको पहले देखा तक नहीं है,
उनकेलिए   अपने पास ही कब्रिस्थान आरक्षित किया था।

दोस्ती के तीन कारण है।
1.मिलना-जुलना,संपर्क में आना,एकता का भाव।
इनमें एक हीभाव होना प्रधान अंग है।