मनुष्य पाषाण काल में असभ्य रहा| सभ्य बना तो पशु तुल्य जीवन छोड़कर सभ्य बना. आखेटक संघर्ष मय जीवन छोड़कर कृषी करने लगा. शान्ति चाही ;अहिंसा चाहा. अहिंसा ,शान्ति , आत्मसंतोष ,परोपकार ,दान ,धर्म , पाप-पुण्य,स्वर्ग -नरक ,
सादा जीवन ,उच्च विचार ,त्याग, देशभक्ति, मातृभाषा पर प्रेम आदि सद्गुणों के प्रचार के लिए बड़े-बड़े साधू-संत, महान ,पैगम्बर,देव-दूत ,युग पुरुष पैदा हुए.
विश्व शान्ति ,विश्व प्रेम के कारण बुद्ध धर्म भारतीय धर्म चीन ,जापान ,श्री लंका, तिब्बत आदि देशों एन भी फैला. जैन धर्म के दिगंबर तो वस्त्र तक त्यागा.
मुहम्मद नबी ,ईसा मसीह आदि का जन्म न होतो उनके समय के मारकाट,निर्दयता
मानव -मानव में घृणित भावना कभी नहीं छूटती.
इतने होने पर भी भक्ति और अन्य क्षेत्रों के बाह्याडम्बर गरीबी मिटाने साथ नहीं देते.
हर साल गणेश उत्सव और अन्य उत्सवों के बेकार होनेवाले कई करोड़ रूपये, मंदिरों के हुंडी में डाले जाने वाले सोना-चांदी, रूपये तहखाने न गाढ़कर रखते तो
देश की गरीबी कैसे दूर होती. बड़े -बड़े शहरों में आवास हीन ,घर हीन पुत्पाथ पर जीनेवालों की गरीबी कैसे दूर होगी; सबको सुशिक्षित कैसे कर सकते हैं ?
राजनीतिज्ञ करोड़पति बनते जाते हैं ,संपत्ति पर संपत्ति जोड़ते हैं।
देश हित की योजनायें शिक्षा आ सेतु हिमाचल तक एक समान नहीं है|
आजादी के बाद राष्ट्रीयता बदनी चाहिए. कांग्रस सरकार की बड़ी भूल यही थी कि
प्रांतीय मोह बढाने वाली राजनीती और प्रान्तीय दलों को बढ़ने देना, स्वार्थमय कांग्रस दल ने राष्ट्रीय शिक्षा, नदियों का राष्ट्रीय करण आदि पर अत्यधिक ध्यान दिया; धार्मिक एकता समानता पर ऐसा जोर देता कि धार्मिक कट्टरता,द्वेष भाव बढ़ता रहा.
वोवसी जैसे मुसलमान खुल्लमखुल्ला हिन्दुओं को समूल नष्ट करने का भाषण दे रहे हैं. धर्म- और आस्था के नाम मानव हत्या भाई चारे भाव को नष्ट कर देती.
राष्ट्रीय झंडे को जलाना, राष्ट्र गीत का अपमान ,राष्ट्रीयता भंग करने -कराने-करवाने के भाषण ,नाबालिग बलात्कार आदि का कठोर दंड नहीं। ऐसी स्थिति बढ़ते जाना
देश के कल्याण का अनुकूल नहीं है.