Saturday, July 14, 2018

भारतीय भाषाएँ

पड़ता हूँ मुख पुस्तिका के हिंदी भाषी
कवियों की कवितायेँ , अति सुन्दर.
नाना भाव उठते हैं मन में ,
विचार मेरे शब्द हिंदी पर मैं हूँ हिंदीतर
हिन्दिविरोध क्षेत्र में पला, बढा हिंदी प्रचारक .
तमिल भाषी नेता गोरी अंगरेजी से गले लगाते हैं ,
न समझ रहे हैं वह रखैल तमिल पत्नी को
तमिल माता को , तमिल कुमारी को
गला घोंटकर मार रही हैं.
अभी हर गाँव , हर शहर में अंगरेजी का बोलबाला है,
भारतीय भाषाएँ जीविकोपार्जन के क़ानून न हो तो
अंग्रेज़ी मगर मच्छ सारी भारतीय भाषाओं को निगलेगी.
ज़रा सोचना ,जागना, जगाना भारतीय युवकों का काम.
पूर्वज संस्कृत को भूल चंद अंगरेजी पद , अधिकार के लिए
अंग्रेज़ी सीख उसीमें ज्ञानसागर , भारतीय भाषाएँ, अज्ञान का दरिया
सिखा दिया, अभी सत्तर साल के बाद भी न जागें तो
संस्कृत के सामान अव्व्यवाहर की भाषाएँ बन जायेंगी
भारतीय भाषाएँ .

Wednesday, July 11, 2018

यही ईश्वर की सृष्टि की सूक्ष्मता है.

प्रातःकालीन प्रणाम.
आज मैं क्या लिखूंगा?
मन में कैसे विचार आयेंगे ?
पता नहीं.
सामाजिक अध्ययन हमें बड़े बड़े लेखकों
के बड़े बड़े ग्रंथों को पढने से समाज के बारे में
जान समझ सकते हैं.
वास्तव में समाज के विचार ,व्यवहार ,
जानना अति मुश्किल है.
तमिल देश में भूमि को पाँच तरह के
लोगों की जीवनी पर उल्लेख करते हैं.
तब मनुष्य गुण भूमि भाग की
समृद्धि , रूखापन , अभाव , अकाल ,
जलवायु ठंडी ,गर्मी ,सुरक्षा ,असुरक्षा
आदि के अनुकूल व्यवहार करता है.
भारत भूमि स्वर्ग तुली होने पर भी
आध्यात्मिक भूमि ,ज्ञान भूमि होने पर भी
तत्काल के लाभ भारतवासियों को अँधा बना देता हैं.
वे तुरंत अपनी पोशाक ,व्यवहार , विचार ,
सिद्धांत बदलने तैयार होते हैं.
खान -पान में भी सोचते समझते नहीं हैं .
इसीलिये मजहबी परिवर्तन आसानी से हिते हैं .
अंग्रेज़ी आये तो अपनी भाषा भूल ,
अपने भाषा ज्ञान विज्ञान के ग्रन्थ भूल ,
अपने भाषा के आदर्श विचारों को भूल ,
शेक्सपियर के कोटेसंस को ही देना
ही बड़ी बात मानने लगे.
परिणाम स्वरुप माता,पिता ,गुरु
सब को अवहेलना करने के संवाद में आनंद लेने लगे .
माँ-बाप अपने सुख के आनंद के स्वार्थ में मेरा जन्म हुआ.
न तो मेरा जन्म होना ,ऐसे संकट का अनुभव करना
आदि के मूल में माता-पिता का दोष है . ऐसे विचार
भारतीय मन में कैसे उठे?
जिनकी संस्कृति हर दिन माता-पिता -गुरु के चरण में
नमस्कार करना.
ऐसे ही हर विचार बदलने में विदेश चतुर रहें.
कारण वर्ण व्यवस्था धीरे धीरे हिन्दू समाज में
मनुष्य -मनुष्य में घृणा उत्पन्न करने में विदेशों का साथ दिया.
आज भी तिलक देख एक दूसरे के जानी दुश्मन हिन्दुओं में हैं .
ऐसे ही ईसाईयों में हैं ,मुगलों में हैं .
केतालिन ,प्रोटोस्टेंट ,सेवंथ डे एडवेंटिस्ट ,लाब्बे ,सिया,सुन्नी आदि ईअसायी और मुग़ल एक दुसरे को देखना भी पाप मानते हैं.

धर्म ग्रंथों के अनुसार यही निर्णय है कि खुद भगवान ने ऐसी बुद्धि दी हैं
जैसे सांप,बिच्छु , सिंह ,सियार, बाघ ,चीता, भेडिये आदि.
ईश्वर ने दया,ममता ,सहानुभूति ,परोपकार , करुणा , आदि भाव भी
ईर्ष्या,क्रोध , लोभ ,काम के बीच मनुष्य समाज को दिया है. अतः मनुष्य
जीवन पशु जीवन से श्रेष्ठ है.
जानवरों के गुण पहचानकर बच सकते हैं ,पर मनुष्य को देखने मात्र से
पता नहीं चलेगा कि वह साँप है या बिच्छू , सिंह है या सियार ,
बाघ है या भेड़िया, कुत्ता है या भेदिया, तोता है या बाज.
यही ईश्वर की सृष्टि की सूक्ष्मता है.

Monday, July 2, 2018

साईराम महत्व

साई राम  साई राम
सर्व धर्म एकता का आधार.
 न मज़हब  का फ़रक.
 न जाति भेद, न रंग भेद.
न माथे के तिलक भेद.
 साई भजन में ऊँ गणपति वंदन. ,
साई भजन में ऊँ कार्तिकेय वंदन.
साई भजन में ऊँ  शिव वंदन. .
साई भजन में ऊँ दुर्गा वंदन.
साई भजन में राम वंदन,
साई भजन में कृष्ण वंदन,
साई भजन में हनुमान वंदन.
साई भजन में गुरु वंदन.
साई भजन में अल्ला वंदन.
साई भजन में ईसा वंदन.
साई भजन में मनुष्य बंधन.
साई भजन में  वसुदैव  कुटुंबकम.
साई भजन में सर्वे जनता  सुखिनोभवतु.
मनुष्यता -इन्सानियत का
सहोदर भाव.
 विश्व एकता का अपूर्व चमत्कार संदेश.
भारतीय भक्ति एकता का प्रतीक.
सनातन धर्म के ईश्वर भेद,
ऊँच नीच केभेद,
संप्रदाय  भेद तोड
ब्रह्मांड ब्रह्मानंद   देन
भजो भजो  भजो भेजो
सनातन धर्म एक स्वर
निराकार -आकार  रूप
बुद्धि  रूप, ज्ञान रूप, विज्ञान  रूप
प्रेम रूप, ग्ञानानंद रूप
भजो भजो ऊँ साई  राम.
सनातन धर्म में लाओ एकता.
विश्व शांति का मूल मंत्र
विश्वनाथ, जगन्नाथ, साई राम जयजय साई राम.

नयी शैली

काव्योदय
बचपन  में  ही  मन में
उदय होता  है.
रूढी तोडना
साहस की बात.
नये वस्त्र, नये बाजा,
नयी  चिकित्सा  ,
नयी तालीम,
नये वाहन
सब  के चाहक अधिक.
नये नये पेय.
पर कविता में नई
स्वतंत्र  शैली के चाहक कम.
अपने विचार  अपने ढंग  से
अपनी भाषा  अपनी शैली में
अभिव्यक्ति  मुक्त शैली
मानना मनाना अति  मुश्किल.

Sunday, July 1, 2018

मतलबी दुनिया

प्रेम  कहाँ है? 
किससे कैसा मिलेगा? 
पता नहीं, 
जो देता रहता है, 
उसको प्रेम मिलता है क्या?
नहीं, कभी नहीं मिलता है.
देनेवाले से बढकर कोई देगा, तो
तजकर जाने लोग तैयार है.
जो लेकर ही देनेवाले को
खुशामद करके
जीता है, अंत तक वह मेहनत नहीं करता.
जो मेहनत करता है, वही देता है .
मेहनती जो देता है,
उसका मीन मेख देखने
नाते रिश्ते तैयार रहते हैं.
मेहनती भूखा प्यासा रहें,
पीडा सहता रहें, उसकी चिंता नहीं करता.
आज़ादी की लडाई में जो सच्चे अच्छे, नेक
त्यागी थे, आज़ादी के बाद
गरीबी के गड्ढे में पडे रहे.
स्वार्थी, भ्रष्टाचारी सांसद विधायक बन रहे हैं.
मंदिर भी ऱईश मंदिर का विशेष महत्व है.
यही मतलबी दुनिया है.

ईश्वर लीला अद्भुत

नमस्कार. 
नाना विचार मन में. 
नाना प्रकार की इच्छाएँ. 
नाना प्रकार के
मत-संप्रदाय
नाना प्रकार के देव -देवियाँ, 
निर्गुण सगुण भक्ति मार्ग
इबादत-प्रार्थनाएँ, स्तुतियाँ, 
कितनी परेशानियाँ
कितने सुख दुख
कितने जीव ,कितने कीटाणु, 
कितनी अमीरी कितने रईश 
अमीर-रईश भी दुखी, 
गरीब भिक्षुक में चैन की नींद. 
दोनों की ही मृत्यु
ईश्वर लीला अद्भुत.

नारी जग की

समाज बेरहमी है,
कानून जन्मांध
शासक, सांसद, विधायक  पदांध,
न्याय, पुलिस अधिकाराधीन, बेगार.
ईश्वर तो अपनी पत्नी खो रोते.
गौतम  अपनी पत्नी को पत्थर शाप.
देवेंद्र पद वामन को पाताल
न्याय  सीता को जंगल भेजा.
द्रौपति बाँटे फल.
सिद्धार्थ  तज गये.
ऊर्मिका का विरहताप खंड काव्य
आदी काल से आजतक
जयललिता तक अपेक्षित.
परंपरागत  कथाएं,
 न न्याय, न पश्चात्ताप, न दया,
तीन बार तलाक ठीकरा दो न्याय संगत.
कहानी है युग युग की

कंस जन्म से रहे हैं, भीष्म जैसे बलात्कार  उठाने वाले बल प्रयोग  कर रहे हैं,
विचित्र वीर्य, पांडे जैसे नाम  मात्र के पिता जी रहे हैं.
कहानियाँ  परंपरागत  चली आ रही है.
दुनिया  अजब बाजार है, कदम कदम फूँक फूँककर  चलना है, यही नारी विधान.