Sunday, July 1, 2018

नारी जग की

समाज बेरहमी है,
कानून जन्मांध
शासक, सांसद, विधायक  पदांध,
न्याय, पुलिस अधिकाराधीन, बेगार.
ईश्वर तो अपनी पत्नी खो रोते.
गौतम  अपनी पत्नी को पत्थर शाप.
देवेंद्र पद वामन को पाताल
न्याय  सीता को जंगल भेजा.
द्रौपति बाँटे फल.
सिद्धार्थ  तज गये.
ऊर्मिका का विरहताप खंड काव्य
आदी काल से आजतक
जयललिता तक अपेक्षित.
परंपरागत  कथाएं,
 न न्याय, न पश्चात्ताप, न दया,
तीन बार तलाक ठीकरा दो न्याय संगत.
कहानी है युग युग की

कंस जन्म से रहे हैं, भीष्म जैसे बलात्कार  उठाने वाले बल प्रयोग  कर रहे हैं,
विचित्र वीर्य, पांडे जैसे नाम  मात्र के पिता जी रहे हैं.
कहानियाँ  परंपरागत  चली आ रही है.
दुनिया  अजब बाजार है, कदम कदम फूँक फूँककर  चलना है, यही नारी विधान.

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