Wednesday, July 11, 2018

यही ईश्वर की सृष्टि की सूक्ष्मता है.

प्रातःकालीन प्रणाम.
आज मैं क्या लिखूंगा?
मन में कैसे विचार आयेंगे ?
पता नहीं.
सामाजिक अध्ययन हमें बड़े बड़े लेखकों
के बड़े बड़े ग्रंथों को पढने से समाज के बारे में
जान समझ सकते हैं.
वास्तव में समाज के विचार ,व्यवहार ,
जानना अति मुश्किल है.
तमिल देश में भूमि को पाँच तरह के
लोगों की जीवनी पर उल्लेख करते हैं.
तब मनुष्य गुण भूमि भाग की
समृद्धि , रूखापन , अभाव , अकाल ,
जलवायु ठंडी ,गर्मी ,सुरक्षा ,असुरक्षा
आदि के अनुकूल व्यवहार करता है.
भारत भूमि स्वर्ग तुली होने पर भी
आध्यात्मिक भूमि ,ज्ञान भूमि होने पर भी
तत्काल के लाभ भारतवासियों को अँधा बना देता हैं.
वे तुरंत अपनी पोशाक ,व्यवहार , विचार ,
सिद्धांत बदलने तैयार होते हैं.
खान -पान में भी सोचते समझते नहीं हैं .
इसीलिये मजहबी परिवर्तन आसानी से हिते हैं .
अंग्रेज़ी आये तो अपनी भाषा भूल ,
अपने भाषा ज्ञान विज्ञान के ग्रन्थ भूल ,
अपने भाषा के आदर्श विचारों को भूल ,
शेक्सपियर के कोटेसंस को ही देना
ही बड़ी बात मानने लगे.
परिणाम स्वरुप माता,पिता ,गुरु
सब को अवहेलना करने के संवाद में आनंद लेने लगे .
माँ-बाप अपने सुख के आनंद के स्वार्थ में मेरा जन्म हुआ.
न तो मेरा जन्म होना ,ऐसे संकट का अनुभव करना
आदि के मूल में माता-पिता का दोष है . ऐसे विचार
भारतीय मन में कैसे उठे?
जिनकी संस्कृति हर दिन माता-पिता -गुरु के चरण में
नमस्कार करना.
ऐसे ही हर विचार बदलने में विदेश चतुर रहें.
कारण वर्ण व्यवस्था धीरे धीरे हिन्दू समाज में
मनुष्य -मनुष्य में घृणा उत्पन्न करने में विदेशों का साथ दिया.
आज भी तिलक देख एक दूसरे के जानी दुश्मन हिन्दुओं में हैं .
ऐसे ही ईसाईयों में हैं ,मुगलों में हैं .
केतालिन ,प्रोटोस्टेंट ,सेवंथ डे एडवेंटिस्ट ,लाब्बे ,सिया,सुन्नी आदि ईअसायी और मुग़ल एक दुसरे को देखना भी पाप मानते हैं.

धर्म ग्रंथों के अनुसार यही निर्णय है कि खुद भगवान ने ऐसी बुद्धि दी हैं
जैसे सांप,बिच्छु , सिंह ,सियार, बाघ ,चीता, भेडिये आदि.
ईश्वर ने दया,ममता ,सहानुभूति ,परोपकार , करुणा , आदि भाव भी
ईर्ष्या,क्रोध , लोभ ,काम के बीच मनुष्य समाज को दिया है. अतः मनुष्य
जीवन पशु जीवन से श्रेष्ठ है.
जानवरों के गुण पहचानकर बच सकते हैं ,पर मनुष्य को देखने मात्र से
पता नहीं चलेगा कि वह साँप है या बिच्छू , सिंह है या सियार ,
बाघ है या भेड़िया, कुत्ता है या भेदिया, तोता है या बाज.
यही ईश्वर की सृष्टि की सूक्ष्मता है.

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