Wednesday, July 25, 2018

मनुष्यता खो रहे हैं हम

मनुष्यता खो रहे हैं  हम ,
मज़हबों  के  कारण ,
जातियों  के कारण ,
सम्प्रदायों के कारण ,
कम देव की उत्तेजना
न देखती मजहब .
नव जात शिशु न जानता मजहब.
देश-  विदेश , रंग ,अमीरी ,गरीबी
 बगैर भेद भाव  के कामोत्तेजना
न  देखते  भेद- भाव.
स्वार्थ मानव मानवता भूल
अज्ञात भोले भाले    स्रुष्टियों  में
इंसानियत भुलाने मजहबी नशा चढ़ा  देता है.
दिल -ए-वजूद --मजहब के अँधेरे में ,
मानवता दीखती ही नहीं हैं ,
कामुकता के अँधेरे में तीन से तीन से अस्सी साल तक 
बेरहमी से लूटी जाती .
भारतीय साहित्य के उजाले में 
चरित्र की रोशनी आँखें खोल देती.
काम ,क्रोध ,मद ,लोभ मूर्खों के गुण .
पर दुर्गुणों की रोशनी ,
प्रहलाद श्री माली आँखों का ही नहीं ,
तन का ही नहीं ,मन का ही नहीं ,
चरित्र गठन का भी अँधेरा बना देती .
पाश्चात्य तलाक ,मधु , इंसानियत के अस्तित्व मिटा देती .

No comments:

Post a Comment