मनुष्यता खो रहे हैं हम ,
मज़हबों के कारण ,
जातियों के कारण ,
सम्प्रदायों के कारण ,
कम देव की उत्तेजना
न देखती मजहब .
नव जात शिशु न जानता मजहब.
देश- विदेश , रंग ,अमीरी ,गरीबी
बगैर भेद भाव के कामोत्तेजना
न देखते भेद- भाव.
स्वार्थ मानव मानवता भूल
अज्ञात भोले भाले स्रुष्टियों में
इंसानियत भुलाने मजहबी नशा चढ़ा देता है.
दिल -ए-वजूद --मजहब के अँधेरे में ,
मानवता दीखती ही नहीं हैं ,
कामुकता के अँधेरे में तीन से तीन से अस्सी साल तक
बेरहमी से लूटी जाती .
भारतीय साहित्य के उजाले में
चरित्र की रोशनी आँखें खोल देती.
काम ,क्रोध ,मद ,लोभ मूर्खों के गुण .
पर दुर्गुणों की रोशनी ,
प्रहलाद श्री माली आँखों का ही नहीं ,
तन का ही नहीं ,मन का ही नहीं ,
चरित्र गठन का भी अँधेरा बना देती .
पाश्चात्य तलाक ,मधु , इंसानियत के अस्तित्व मिटा देती .
मज़हबों के कारण ,
जातियों के कारण ,
सम्प्रदायों के कारण ,
कम देव की उत्तेजना
न देखती मजहब .
नव जात शिशु न जानता मजहब.
देश- विदेश , रंग ,अमीरी ,गरीबी
बगैर भेद भाव के कामोत्तेजना
न देखते भेद- भाव.
स्वार्थ मानव मानवता भूल
अज्ञात भोले भाले स्रुष्टियों में
इंसानियत भुलाने मजहबी नशा चढ़ा देता है.
दिल -ए-वजूद --मजहब के अँधेरे में ,
मानवता दीखती ही नहीं हैं ,
कामुकता के अँधेरे में तीन से तीन से अस्सी साल तक
बेरहमी से लूटी जाती .
भारतीय साहित्य के उजाले में
चरित्र की रोशनी आँखें खोल देती.
काम ,क्रोध ,मद ,लोभ मूर्खों के गुण .
पर दुर्गुणों की रोशनी ,
प्रहलाद श्री माली आँखों का ही नहीं ,
तन का ही नहीं ,मन का ही नहीं ,
चरित्र गठन का भी अँधेरा बना देती .
पाश्चात्य तलाक ,मधु , इंसानियत के अस्तित्व मिटा देती .
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