Thursday, December 20, 2018

आण्डाल रचित तिरुप्पावै -६


तिरुप्पावै --६. आण्डाल

  मार्गशीर्ष महीने के आज छठवाँ  दिन :-

अपनी सखियों को जगाती हुईं गोपियाँ  गाती  हैं :---

   सखी !सो रही हो ,जागो।
  तुमने न सुना पक्षियों के कलरव।
  न सुना विश्वरक्षक विष्णु के मंदिर में सफेद शंख नाद!
  अनुभव हीन  सखी! जल्दी उठो।
   गरुड़ वाहन के विष्णु !
  जगत रचयिता!जगत रक्षक!
  अपनी शिशु अवस्था में ही
  कृष्ण ने  राक्षसी भूतकी के स्तनपान करके
  उनका  खून चूसकर वध किया है.
 शकटासुर चक्र बन आया तो
 उसका लात मारकर वध किया है.
 दुग्ध सागर में शेष नाग पर
 अनंत शयन में रहकर
 योग निद्रा करते करते
 सप्तलोकों के जीव जंतु के रक्षक हैं ,
जड़ -चेतन ,नर नारी और सभी जीव राशियों में
परमात्मा वास करते हैं।
साधू -संत-ऋषी -मुनि  सब के सब
उनका यशोगान कर रहे हैं।
उनके पवित्र नाम जपने की अभिलाषा
हमारे मन को शीतल कर रही हैं !
सखी उठो! जागो !सुबह हो गया।
हम नहाएँगी !व्रत रखकर वह माया भरे
कृष्ण का यशोगान करेंगी।

Wednesday, December 19, 2018

तिरुप्पावै -५ आण्डाल (दक्षिण की मीरा )

तिरुप्पावै -५ आण्डाल (दक्षिण की मीरा )

   मायारूपी  ईश्वरीय गुणी ,
   उत्तर मथुरा में जन्मे
    पुण्य जल की पवित्र यमुनातटवासी ,
     देवकी  को  सम्मान  देकर
     अहीर कुल में जन्मे
     यशोधा   के बंधन में संतोष प्रद
      श्री कृष्ण को मन में रखकर ,
     खुशबूदार फूलों को चढाने पर ,
     उसका यशोगान करने पर
     पूर्व जन्म के ,
   ज्ञात -अज्ञात किये पाप
   रूई सम  जलजायेंगे।
   अतः सदा उनके चिन्तन में रहने में
     भला ही भला है।

Tuesday, December 18, 2018

திருப்பாவை -3 तिरुप्पावै

तिरुप्पावै 3
वामनावतार लेकर विष्णु ने तीन पग जमीन महाबली चक्रवर्ती से मांगी. 
दान के लेते ही विराटावतार लेकर एक पद से सारी धर्ता ले ली, दूसरे पद से पाताल, तीसरे पग बली न दे सके. 
और अपने को ही सौंपा. तीसरा पग विष्णु ने चक्रवर्ती का सिर पर रखकर पाताल भेज दिया. 
इसमें गेपिकाएँ विराटावतार का यशोगान करती हैं. 
कहती हैं कि ऐसे विश्व नापे ईश्वर के गुणगान गाने से
महीने में तीन बार वर्षा होगी.
देश संपन्न हो गा. अकाल दूर होगा.
चारों ओर संतोष और शांति का साम्राज्य होगा.
अतः जगन्नाथ का यशोगान करते करते तडके उठकर नहाएँगे. विष्णु की यशोगान करेंगे.

Sunday, December 16, 2018

तिरुप्पावै --आण्डाल दक्षिण मीरा कृत।


तिरुप्पावै

तमिल साहित्य भक्तिकाल की मीरा समभक्ता
 आण्डाल का ग्रन्थ तिरुप्पावै का प्रथम
गीत का गद्यानुवाद।
कुल तीस गीत हैं ,
रोज़ मार्गशीर्ष महीने में तड़के उठकर
लड़कियाँ  गाती हैं ; सहेलियों को
भगवान की कृपा पाने का मार्ग दिखाती हैं।
आण्डाल द्वारा रचित तमिल ग्रन्थ अपूर्व हैं.
सरल हिंदी में गद्य शैली में  अनुवाद कर रहा हूँ।

                      १.
सुन्दर आभूषणों से सज्जित कन्याओ !
आप तो विशिष्ट नामी शहर में रहती हैं ,
जहाँ अहीरों की संख्या अधिक हैं।
आज मार्गशीष महीने का पूर्णिमा का दिन है.
. आइये ,अब नहाने जाएँगीं !
तेज़ शूल हाथ में धरकर नन्द गोपाल ,
अपूर्व रक्षक का धंधा कर रहे हैं।
सुलोचनी यशोधा के श्याम रंग के सिंह समान बेटा ,
सूर्य -सा तेजोमय चेहरेवाले कन्हैया ,
जो नारायण का अंश है ,
हम पर कृपा कटाक्ष करने सन्नद्ध है ,
जिनका यशोगान करें तो अग -जग हमें आशीषें देगा।
आइये! उनका यशोगान गाते-गाते स्नान करने जाएँगीं.
ஆண்டாள் आण्डाल रचित तिरुप्पावै -१ का गद्यानुवाद।
मार्ग शीर्ष महीने में हर दिन गाया जाता है।

              २.

विष्णु अवतार क्षेत्र व्रज भूमि में जन्में बालिकाओं !
सांसारिक बंधन छोड़ ,
ईश्वर के चरण प्राप्त करने ,
जो व्रत -पद्धतियाँ  हैं ,उन्हें सुनिए :-
घी ,दूध  हम न लेंगी।
तड़के उठकर नहाएँगीं।
आँखों में काजल नहीं लगाएँगीं।
सर पर फूल नहीं धारण करेंगी।
बुरी बातों को मन में नहीं सोंचेंगीं।
दूसरों पर चुगलखोरी नहीं करेंगी।
साधू ,संतों और ज्ञानियों को
इतना दान -धर्म करेंगी ,
वे खुद कहने लगेंगी दान पर्याप्त है.

Friday, December 7, 2018

प्रकृति (मु )

चाँद -सी चंद लोग.
सूर्योदय -सूर्यास्त की लालिमा सा चंद लोग.
दोपहर की तपती धूप सी चंद लोग.
तारे से अति दूर से अपने
अस्तित्व  दिखाते कुछ लोग.
  समुद्र का तरंगों  जैसे बहु विचारवाले,
चंचल मन वाले, बीच समुद्र सा शांति प्रद.
उनमें कितने जीवन जंतु,
विषैले,आदमखोर,आहार प्रद, आय प्रद
अपूर्व, अनूठा जल पशु,
क्रूर, शांत, रंगीले,मन मोहक, घृणाप्रद,
 समुद्रतट की शीतल हवा,
समुद्र विसर्जन की अस्तियाँ,
गणेश की मूर्तियाँ, पाखाना,
आत्म हत्या या आनंदविभोर लहरों द्वारा आत्मसात,
 शोकमय, आनंदमय जीवात्माएँ.
कितनी कल्पनाएँ आकाश सा अनंत सीमाहीन,
सागर सा गहरा, गहरे सागर में परिचित अपरिचित
लाखों अंडज पिंडज, हैरान हो  मनुष्य को
सृजनहार सर्वेश्वर  का शरणार्थी  बन
चंद पल, ध्यान मग्न होना,
शरणागतवत्सल की कृपा पाने का मूल.

Saturday, December 1, 2018

सिरो रेखा (मु )

हस्त रेखा ,
सिरों रेखा
जन्म कुंडली
नव गृह
मुख्याध्यायन
सामुद्रिका  लक्षण
हस्ताक्षर  अध्ययन
अंग्रेज़ी  अक्षर परिवर्तन
कितने लोग ,
कितने ढंग
किसीको भगवान पर दृढ़
विश्वास   नहीं।
नकली रेखा ज्योतिष ,
नकली  नकली नकली
पुरोहित ,प्रायश्चित लोभी ,
 कोई दृढ़ भरोसा नहीं रखता
."सबहीं  नचावत  राम गोसाई ".

साहित्य (मु )

तस्वीर   में लेटी औरत.
 ओढने किताबों के पन्ने.
हाँ, मनुष्यता जब पशुता  को अपना बनाता है,
तब कोई  कवि लेखक या नारा
जन मानस को  सुप्त भावावेश  को
ऐसा जगा देता है ,
नारा लगाता है
करो या मरो .
जिओ और जीने दो
वंदेमातरम
यह नारा, साहित्य, गीत
रहता है "सारे जहाँ से अच्छा,
           हिंदुस्तान  हमारा हमारा!

नर हो, न निराश  करो मन को
कुछ काम करो कुछ नाम करो.

 देखो, साहित्य का प्रभाव!
मान-मर्यादा  की रक्षा
चित्र का किताबी आवरण
करत करत अभ्यास करत
जड़मति होत सुजान.
 किताब में छपी विषय
मान रक्षक
देश रक्षक
मूर्ख को आशाजनक
साहित्य समाज और राष्ट्र  उद्धारक.