Thursday, June 13, 2019

जिंदगी

जिंदगी 
दोस्तों को नमस्कार। 
हर देश के मनुष्य रूप-रंग अलग-अलग। 
टमाटर के रूप रंग आकार भी अलग-अलग। 
गुण अलग-अलग, विचारो, सोचो,कल्पना करो।
मित्रों को ,इष्ट-मित्रों को,
अनिष्ट मित्रों को,
हिंसात्मक अहिंसात्मक आविष्कारों को,
कृतज्ञ -कृतघ्न लोगों को,
त्यागियों को,भोगियों को,
आध्यात्मिक,आस्तिकनास्तिकलोगों को।
देशभक्तों को,देश द्रोहियों को,
सोचो,समझो,विचारो, कल्पना करो,
पति-पत्नी प्रेम,नफरत, वेश्या,अवैध संबंधों को,ईर्ष्यालु, दयालू निर्दयी
सब को सोचो,विचारो,कल्पना करो
सोचो,विचारो,
कल्पना करो,क्या होगा?
नया रामायण, नया महाभारत
युगानुकूल उपन्यास, चित्र पट,
साहित्य अकादमी पुरस्कार,
पद्म पुरस्कार सब के सब मिलने का
हवामहल बाँध लो ।
आशा निराशा में, जिंदगी गुजर जाएगी।
भाग्य बल,बुद्धि बल का
पता लग जाएगा।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंत कृष्ण की प्रार्थनाएं।

Tuesday, June 11, 2019

कल्पना

जिंदगी
दोस्तों  को नमस्कार।
हर देश  के मनुष्य रूप-रंग अलग-अलग।
टमाटर  के रूप रंग आकार भी अलग-अलग।
 गुण अलग-अलग, विचारो, सोचो,कल्पना  करो।
मित्रों को ,इष्ट-मित्रों को,
अनिष्ट  मित्रों  को,
हिंसात्मक अहिंसात्मक आविष्कारों को,
कृतज्ञ -कृतघ्न लोगों को,
त्यागियों को,भोगियों को,
आध्यात्मिक,आस्तिकनास्तिकलोगों को।
देशभक्तों को,देश द्रोहियों को,
सोचो,समझो,विचारो, कल्पना करो,
पति-पत्नी प्रेम,नफरत, वेश्या,अवैध संबंधों  को,ईर्ष्यालु, दयालू निर्दयी
सब को सोचो,विचारो,कल्पना करो
सोचो,विचारो,
कल्पना करो,क्या होगा?
नया रामायण, नया महाभारत
युगानुकूल  उपन्यास, चित्र पट,
साहित्य अकादमी पुरस्कार,
पद्म पुरस्कार सब के सब मिलने का
हवामहल बाँध लो ।
आशा निराशा  में, जिंदगी गुजर जाएगी।
भाग्य  बल,बुद्धि  बल का
पता लग जाएगा।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंत कृष्ण की प्रार्थनाएं।

Friday, June 7, 2019

दरिंदा

स॔योजक ,संचालक, व्यवस्थापक,पाठक,सदस्य, चाहक  सबको प्रणाम।
 शीर्षक  : दरिंदा
 शेर,बाघ,चीता,आदमखोर।
जान सकते हैं।
मगर,पहाड़ी साँप,निगलनेवाले जंतु,
नर सतर्क रह सकता  है    दरिंदों से।
पर मानव  से सतर्क  रहना।
 अति  मुश्किल ।
दरिंदा  तो माँसाहारी,
मानव  तो सरवाहारी।
सतर्क रहना कैसे?
मंद हास   मन दरिंदों से अति भयंकर।
भक्त बन दुखियों  की दुर्बलता का लूट।
 नेता  बन निर्दयी व्यवहार।
क्या करूँ पता नहीं? भ्रष्टाचार, रिश्वत
दरिंदा  से सौ गुना  बेरहमी।
चित्र पट  समाज का दर्पण  है तो
खलनायक  आजकल पुलिस को
कठपुतली बनाकर मनमाना,
मंत्री के लिए  मजदूरी सेना,
अशोक  के जंगली मूँछों से
अति डरावना व्यवहार।
दरिंदा  भला  मानव   दरिंदों  से।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंत कृष्णन।

कर्म भूमि। तपोनिष्ठ भूमि।

न नाम की चाह,न दाम की चाह।
चाह है सर्वेश्वर की।
सर्वेश्वर चाहें तो सुनाम,कुनाम।

दाम-बदनाम।सुनाम।
दानी कर्ण,संगति के फल से नहीं,
।निर्दयी माता के बदचलन के कारण।

कर्म फल,ईश्वरानुग्रह ।
राम को दुखी,कृष्ण को षडयंत्रकारी, 
वाली वध में बदनाम।द्रोण वध से कलंकित कृष्ण।
।जग माया,जग में असुरों को,
भ्रष्टाचारियों का शासन।
यही भूलोक नीति।
कर्म भूमि। तपोनिष्ठ भूमि।
अच्छों के कारण समय समय पर,
पुनः स्थापित कर स्वर्ग बन रहा है भूमि।
अनुभव से शिक्षित दीक्षित हूँ मैं। 
सुधारने कुछ कहा लिखा तो
पत्थर फेंकते लोग।
श्री पर चढाये लोग। 
खुल्लम-खुल्ला बोलते ,
कर्म कर, सत्य बोल,सेवा कर।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंत कृष्ण की प्रार्थनाएं। 
भ्रष्टाचार को बढाने देते मत।

स्वरचित स्वचिंतक यस अनंत कृष्णन।
नमस्कार। 
कर्म फल  मेरा जन्म  ,
कर्मभूमि  भारत पर।
निष्काम सेवा का संदेश।
गीता  का,फल भगवान  पर।
मेरी मातृभूमि  कर्म भूमि।
राजा के आदेश  पर
 अति सुन्दर भव्य  मंदिर ।
राजा की प्रेमिका  लाने
हजारों  वीर।
कर्म भूमि  भारत भूमि मेरी मातृभूमि।
धन्यवाद जी।

Monday, June 3, 2019

कोरा कागज़

नमस्कार।
कोरा कागज।
मैं  कोरा कागज़ हूँ।
जब तक कोरा कागज़  रहा,तब तक किसी ने मुझे  छुआ  तक नहीं।
 एक लडके ने प्रेम  पत्र लिखा,तो
वह लडकी के बुआ के हाथ में  लगा।
 परिवार  के सभी सदस्य पढने लगे।
फिर लडके के बाप,लडके के परिवार वाले,गालियाँ, ऐसी गालियाँ, तू तू मैं मैं  ,मारकाट।
अंत में  लडके मुझे मुख में  डाल कर  निगला दिया।
मैं  कोरा ही रहता तो साफ साफ  बच जाता। दोनों  परिवार की बेचैनी  मैं। उचित दंड मिल गया। कोरा रहना ही एक कागज के लिए  अच्छा  है।वैसे  मानव मन के लिए।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंत कृष्ण

Saturday, June 1, 2019

जय अजय

अजय  संचालक को  प्रणाम ।
 भूलोक जीवन में,
नहीं  कोई  अजय।
राम तो अजय नहीं,
अपने जीवन में
पराजित राम।
कृष्ण अपने अवतार में
जय पर छल षडयंत्र
नाम कलंकित कर्ण के कारण।
शंकराचार्य  तो नामी,
एक चांडाल के सवाल से पराजित ।
 कौन अजय संसार में,
केवल युद्ध  में  जय अजय नहीं,
निजी जीवन में  भी चाहिए अजय।
सत्य सम्राट  हरिश्चन्द्र,
अजय है क्या ?
हरिश्चंद्र  अजय है
तब तो  सत्यवान
अगजग के लोग होना चाहिए ।
ठगों की संख्या  बढ़ना,
प्रार्थना  में  प्रायश्चित  का डर।
शासक के भ्रष्टाचार  ,
अतः सत्य  हार गया।
देवताओ   को भी,
मानव  दधिची की
रीढ़  की हड्डी
माँगने पडी।
शिव भस्मासुर  को वर देकर
शिव को बचाने विष्णु  को
मोहिनी अवतार  लेना पडा।
मुहम्मद भी अपने सद्व्यवहार  से
सब का मुहब्बत  पा न सके।
ईसा भी अपनी ओर
सब को खींच न सके ।
आध्यात्मिक  मजहबी नेता,
मनुष्यों  में  भेदभाव  उत्पन्न  कर
शांति  स्थापित  करने में  हार गये।
अजय कोई  नहीं  अगजग में ।
स्वरचित स्वचिंतक यस अनंत कृष्ण की प्रार्थनाएं