Monday, December 28, 2020

फूल

 नमस्कार। वणक्कम।

 शीर्षक    सुमन। २९-१२-२०२०

  सुख  शांति से जीने

   मन सु+मन  होना रे।

  सुमन से

 सुमन हाथ में

   लेना,

  अष्टोत्र नाम कह कह,

  एक एक करके भगवान के

  पाल कमलों पर चढ़ाना।

    वंदना कीर्तन करना।

    सुमन सुगंधित है मन भी सुमन हो।।

    चमेली फूल अति सुगंधित।।

    सर पर रखते , द्वार पर खड़े

    सबेरे गये पति की प्रतीक्षा में।

    सुमन भगवान पर चढ़ाते,

    मन सुमन हो तो भगवान

     खुश हो जाते।।

     फूलों का किरीट 

     भगवान की शोभा

     बढाता।

    शादी में तो फूलों  की माला।

    वर, वधु  की खूबसूरती बढ़ाती।

      अमीरों के शव उठाने,

      सुमनों की पालकी,

     सुमन और सिक्का फेंकना।

     मदन मोहन मालवीय जी,

     हैदराबाद निजाम

     विश्वविद्यालय बनवाने 

     दान नहीं दिया तो

    शव पर फेंके 

   सिक्का चुनने लगे।।

 यह भी कहने लगे,

 नवाब से मिलकर 

खाली हाथ कैसे लौटूँ?

 भारतीय आत्मा ,

 माखनलाल जी का कहना था 

 हे वनमाली, फूल की चाह यही,

  तोड़कर उस पर पर फेंकना,

   जिस पर जावे वीर अनेक।।

   रंग-बिरंगे विविध फूल हम,

    भारत वासी, भारत उद्यान सुंदर।।

  स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

वाह!वाह!

 साहित्य बोध में 

मेरी पहली रचना ।।

 दल में सम्मिलित कर लिया।

तदनर्थ धन्यवाद।।

***********


सर्वेश्वर से  मेरी प्रार्थना।।

साहित्य कार में 

शैतानियत का वास न हो।।

सदा  प्रेम प्रेमिका की बात,

लौकिक इच्छा बढ़ाने की बात न हो।।

संयम जितेन्द्र परहित ही मानवता।।

सार्वजनिक स्थानों पर,

समुद्र तट पर खुल्लमखुल्ला प्यार।

आलिंगन चुम्बन मानवता नहीं,

पशुतुल्य व्यवहार मान।।

मजहबी कट्टरता, मनुष्य मनुष्य में नफ़रत 

खुदा के नाम हत्या, मूर्ति तोड़ना,

बहुत बड़ा पाप, ऐसा करें तो 

धरती  में ही नरक तुल्य 

जहन्नुम की वेदना जान।।

 खेती की भूमि को नगर विस्तार के लिए,

 कारखाना, स्कूल,कालेज बनवाना

जंगल का नाश देश को नरक बनाना जान।।

स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै तमिलनाडु।

साहित्य में

 साहित्य बोध में 

मेरी पहली रचना ।।

 दल में सम्मिलित कर लिया।

तदनर्थ धन्यवाद।।

***********


सर्वेश्वर से  मेरी प्रार्थना।।

साहित्य कार में 

शैतानियत का वास न हो।।

सदा  प्रेम प्रेमिका की बात,

लौकिक इच्छा बढ़ाने की बात न हो।।

संयम जितेन्द्र परहित ही मानवता।।

सार्वजनिक स्थानों पर,

समुद्र तट पर खुल्लमखुल्ला प्यार।

आलिंगन चुम्बन मानवता नहीं,

पशुतुल्य व्यवहार मान।।

मजहबी कट्टरता, मनुष्य मनुष्य में नफ़रत 

खुदा के नाम हत्या, मूर्ति तोड़ना,

बहुत बड़ा पाप, ऐसा करें तो 

धरती  में ही नरक तुल्य 

जहन्नुम की वेदना जान।।

 खेती की भूमि को नगर विस्तार के लिए,

 कारखाना, स्कूल,कालेज बनवाना

जंगल का नाश देश को नरक बनाना जान।।

स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै तमिलनाडु।

सुमन

 नमस्कार। वणक्कम।

 शीर्षक    सुमन। २९-१२-२०२०

  सुख  शांति से जीने

   मन सु+मन  होना रे।

  सुमन से

 सुमन हाथ में

   लेना,

  अष्टोत्र नाम कह कह,

  एक एक करके भगवान के

  पाल कमलों पर चढ़ाना।

    वंदना कीर्तन करना।

    सुमन सुगंधित है मन भी सुमन हो।।

    चमेली फूल अति सुगंधित।।

    सर पर रखते , द्वार पर खड़े

    सबेरे गये पति की प्रतीक्षा में।

    सुमन भगवान पर चढ़ाते,

    मन सुमन हो तो भगवान

     खुश हो जाते।।

     फूलों का किरीट 

     भगवान की शोभा

     बढाता।

    शादी में तो फूलों  की माला।

    वर, वधु  की खूबसूरती बढ़ाती।

      अमीरों के शव उठाने,

      सुमनों की पालकी,

     सुमन और सिक्का फेंकना।

     मदन मोहन मालवीय जी,

     हैदराबाद निजाम

     विश्वविद्यालय बनवाने 

     दान नहीं दिया तो

    शव पर फेंके 

   सिक्का चुनने लगे।।

 यह भी कहने लगे,

 नवाब से मिलकर 

खाली हाथ कैसे लौटूँ?

 भारतीय आत्मा ,

 माखनलाल जी का कहना था 

 हे वनमाली, फूल की चाह यही,

  तोड़कर उस पर पर फेंकना,

   जिस पर जावे वीर अनेक।।

   रंग-बिरंगे विविध फूल हम,

    भारत वासी, भारत उद्यान सुंदर।।

  स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

श्रृंगार

 नमस्ते वणक्कम।

विषय श्रृंगार ।

श्रृंगार का अर्थ अलंकार।।

 भगवान भी अगजग  में प्रसिद्ध।

जब फूलों से सजाते हैं।।

 स्वर्ण कवच पहनाते हैं।

 हीरे का मुकुट पहनाते हैं।

 आश्रम के प्रवचन 

आध्यात्मिक आचार्य,

 स्वर्ण सिंहासन, मुकुट ।।

न तो आसाराम का महत्व नहीं

नित्यानंद का बचना नहीं।

 श्रृंगार बिना मेहंदी बिना शादी नहीं

 गली गली में ब्यटि पार्लर।

 दूल्हा दुल्हन ब्यूटी पार्लर में।

 कहानी यही खलनायक का 

उठाकर ले जाना।

श्रृंगार बिन कविता भी न रुचियां जान।।

 साबुन की बिक्री 

उसके अलंकृत आवरण से।

स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

भगवान भिन्न भिन्न नहीं,एक।।

 इबादत या झूठ।

28-12-2020

नमस्ते। वणक्कम।

   खुदा के नाम   झूठ।

      इबादत के बहाने झूठ।।

      प्रार्थना के नाम  झूठ।।

    स्तुति के नाम झूठ।

    झूठ क्या? इबादत क्या?

   मजहबी बातें।

     कैसे-कैसे ?

    भगवान के रूप है?

      खुदा के रूप रंग नहीं है?

     पाप कर माफी मांग।

      पाप से मुक्ति।

      मेरे अल्ला बड़े।

      मेरे विष्णु विराट रूप।।

      मेरे ईसा पापियों के लिए खून बहाया।

       तीनों समुद्र के तट पर।

       खुदा के नाम  इबादत प्रार्थना स्तुति के नाम

          आपस में कटकर मरने ही वाले थे,

          तत्काल तेज सुनामी तीनों को एक साथ

          भूकंप तीनों को एक साथ।

          कोराना तीनों को एक साथ।।

          विमान दुर्घटना तीनों को 

           एक साथ  उठाकर ले गये। 

           सर्व रक्षक ईश्वर सब का एक है।

            सब की काम वासना एक ।

           भूख एक, प्राण  देनेवाली हवा एक।।

            पानी एक ।

             इबादत, प्रार्थना,स्तुति भिन्न। 

मनुष्यता भंग करनेवाले ,

मज़हबी झूठ। यही तमाशा इबादत या झूठ।।

              बाकी भाव मनोविकार एक।।

               

               

             

            


           



      

     






Sunday, December 27, 2020

अरुणाचल शिव अक्षरमाला

   रमण महर्षि कृत अक्षर माला। 

  अद्वैतवादी अरुणाचल  अपने में ईश्वर को  बसाकर

 अक्षरमाला की रचना की है। इस गीत माला  एक मुगल  प्राध्यापक

हबीब सैयद  के सवाल  था कि आप तो अद्वैतवादी हैं।

आप कैसे अरुणाचलेश्वर  को पराया बनाकर  कैसे गाते हैं? अतः अरुणाचलेश्वर को अपने में  ऐक्य बनाकर गाये हैं।। अतः अक्षरमाला की विशेषता ईश्वर रोपण श्रषि में विराजि  रचे  ग्रंथ।।