नमस्ते वणक्कम।
विषय श्रृंगार ।
श्रृंगार का अर्थ अलंकार।।
भगवान भी अगजग में प्रसिद्ध।
जब फूलों से सजाते हैं।।
स्वर्ण कवच पहनाते हैं।
हीरे का मुकुट पहनाते हैं।
आश्रम के प्रवचन
आध्यात्मिक आचार्य,
स्वर्ण सिंहासन, मुकुट ।।
न तो आसाराम का महत्व नहीं
नित्यानंद का बचना नहीं।
श्रृंगार बिना मेहंदी बिना शादी नहीं
गली गली में ब्यटि पार्लर।
दूल्हा दुल्हन ब्यूटी पार्लर में।
कहानी यही खलनायक का
उठाकर ले जाना।
श्रृंगार बिन कविता भी न रुचियां जान।।
साबुन की बिक्री
उसके अलंकृत आवरण से।
स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।
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