Friday, December 11, 2020

मातृ देशी भाषाएँ

 हमारे देश में कितनी भाषयें थी,

उतने ही ज्ञानी थे. उनकी रचनाएँ अमर हैं.
मुग़ल आये तो खडी बोली
ढाई लाख की बोली
पनपी ,वह तो चमत्कारी.
भारतेंदु काल से आधुनिक काल तक
१९०० से आज तक अद्भुत विकास.
हिन्दी या हिन्दुस्तानी ऐसी होड़ में
शुक्रिया या धन्यवाद ,
कोशिश या प्रयत्न
खिताब या उपाधी यों ही
शब्द भण्डार बढे .
लिपि छोड़ उर्दू -हिंदी की समानता
मजहब नहीं सिखाता ,
आपस में वैर रखना.
सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा हमारा.
बंटवारे के बाद भी एकता की निशानी .
स्वरचित स्वचिंतक अनंतकृष्णन,चेन्नै ।

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