मेरे जीवन की अविस्मरणीय घटना।
मैं १९६७ में P UC के बाद आगे पढ न सका। मेरी मां हिन्दी प्रचारिका।
मैं भी हिंदी प्रचार करने लगा ।
तब एक सरकारी अस्पताल के एक कर्मचारी हिंदी पढ़ने आए।
नाम हृदय राज। चतुर थे।
पर यह ,वह का उच्चारण यग ,लग
ही किया करते थे।
एक दिन वे मिठाई के साथ आए।
कहा - मैं पी.ए.,(बी.ए) पास हो गया।
दिल्ली विश्वविद्यालय के पत्राचार पाठ्यक्रम में पढ़ा।
मैं ने उनकी प्रेरणा से
बी.ए, का स्नातक बना।
उनका नाम ह्र राज मेरे ह्रदय कै राजा बने। मुझे सरकारी स्कूल में तमिलनाडु में हिंदी अध्यापक की नौकरी मिली।
तब मेरे सह अध्यापक श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय में निजी छात्र के रूप में
एम.ए हिंदी पढ़ने की सलाह दी।
पहली बार तिरुपति गया।
परीक्षा देकर तिरुमलाई में श्री वेंकटेश्वर के दर्शन करने गया। बड़ी भीड़ थी।
तब गोपुर के प्रधान
द्वार पर खड़ा था। पहली बार जाने से पता नहीं कतार पर खड़े होने कहां जाना है।
तब न जाने एक अज्ञात दिव्य पुरुष मुझे सीधे राजगोपुरम से गर्भ स्थान ले गए। श्री बालाजी के दर्शन दस मिनट में। एम.ए के परीक्षा फल के निकलते ही स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक की नौकरी हिंदू हायर सेकंडरी स्कूल,तिरुवल्लिक्केणी , चेन्नई में।
जिस प्रांत में सरकारी स्कूलों में हिंदी ही नहीं, वहां हिंदी स्नातकोत्तर हिंदी अध्यापक। हर साल स्कूल के अध्यापक संघ द्वारा दस रुपए में
तिरुमलाई की तीर्थ यात्रा। दो दिन बढ़िया भोजन के साथ ठहरने की व्यवस्था। पच्चीस साल लगातार दर्शन। अवकाश प्राप्त होने तक।
चिरस्मरणीय दर्शन। मुझे सीधे दर्शनके लिए जो ले गये, उन्होंने अपना नाम वेंकटाचलम कहा और यह भी कहा मैं सब का अन्नदाता हूं। दर्शन कर बाहर आते ही वे ओझल हो गये।
आज भी वह घटना ताज़ी है।
ऊं अच्चुदा अनंता गोविंदा।।
चिरस्मरणीय अनुकरणीय उल्लेखनीय घटना।
सबहिं नचावत राम गोसाईं।।
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