Wednesday, December 2, 2020

मंदिर साधु समाधी

 विषय  गद्य --भारत ज्ञान

विधा --गद्य पल्रय अपनी निजी शैली।

दिनांक --२.१२.२०२०.

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 वह जा रहा था,वह लेखक था।  गंभीर चिंतक।।

जाते जाते सोचते सोचते बहुत दूर चला गया।

प्रधान सड़क पर  थोड़ी दूर चला, फिर वापस आने मुंडा तो सड़क के उस पार एक पगडंडी दीख पड़ी।। लेखक  ह्रुदय में पगडंडी  देखने की जिज्ञासा हुई।।

वह तो निर्जन जंगली पगडंडी। विषैली जंतु ,सांप आदि की याद आती।फिर भी धीरज बांधकर आगे बढ़े।

न जाने उसकी गति में तेजी। सांप विषैली जंतुओं का डर 

भूल गया। आधा घंटा चला होगा,जड़ी बूटियों से ढका हुआ एक गोपुर लीग पड़ा। एक ऐसी तेज गति उसको

 द्वार के सामने ले गयी। दरवाजा नहीं था। और कोई व्यक्ति नहीं था। विस्मय के साथ देखा तो 

दीप जल रहा था। वह चारों ओर मुड़ मुड़कर

देखने लगा। कोई नहीं था।साहस के साथ अंदर गया तो

देवी की अति सुन्दर मूर्ति।

आंखों में तेज,ओंटों मे मुस्कान।

वह भौंचक्का हो गया।। 

 दिव्य रूप देखते देखते  उसके मन की चंचलता दूर हो गई। एक ही विचार देवी के सामने सदा ही रहे।।

चंद मिनटों में उसको लगा कोई नई शक्ति घुस गई है।

वह सब कुछ भूल गया। वही आंखें बंद कर बैठ गया।।

न खाने की चिंता,न पीने की चिंता, न सोने की चिंता।।

दो -तीन घंटे के बाद उठा , मंदिर को परिक्रमा करने लगा। एक कोने  में एक नाम लिखा हुआ था।

उसे पढ़ा तो  पता चला देवी बृह्मनायकी।।

एक ऐसी अटल चेतना। मंदिर बनवाओ।।

निर्धन हिंदी लेखक अपने लेख प्रकाशित करने अपने 

पैसे खर्च करके अपनी ज़रूरतों को कम करनेवाले कैसै

मंदिर बनवाते। चिंतित नहीं बैठ गये।।

धीरे धीरे अंधेरा। जंगल सा क्षेत्र। वह बस से मसन होकर बैठ रहा थी। आधी रात के समय चार पांच लोग एक बोरे उठाकर वहां आ पहुंचे।। आंखें मूंद बैठे लेखक कैसे देवी के पीछे आये, पता नहीं।।

 जो आए थे वे  बोल रहे थे,

बोरे में लड़का है। सेठ को फोन करो कि

दस लाख न देंगे तो लड़के  का शव ही मिलेगा।

तभी लेखक अपनी पुरानी अवस्था पर पहुंचे।।

अंधेरे में चार पांच  लोगों की आवाज।

इत्तिफाकन लेखक मिमिक्री जानते थे।

न जाने साहस से देवी की आवाज़ में बोले,

मैं बृहननायकी। मेरे सामने ! इतना साहस।

तभी एक आदमी की चीख-पुकार।

दूसरे ने सिंगार जलाया। त्रीशूल में एक आदमी का सिर।लटक रहा था। बाकी तीन बोरे को छोड़कर भाग गये।

सिंगार जल रहा था। बोरे खोलकर देखा तो

 शहर का प्रसिद्ध अमीर सौदागर का बेटा।

जिसे वह खूब जानता था। उसे लेकर  सौदागर के यहां गया। सारा विवरण बताया, मंदिर बनवाने की अपनी इच्छा प्रकट की। बृहद नामकी वन रक्षिका बृहद नायकी के नाम से भव्य मंदिर में प्रसिद्ध तीर्थ स्थल  में है।

भारत की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती रही।।

लेखक  मौन साधु बन गये। देवि स्मरण मात्र,न विभिन्न विचारों की लहरें। अंत तक वन रक्षिका बृहद नायकी मंदिर में ही रहे। भारत देवी के साथ  देवी  दास के नाम बनवायी समाधी की भी आराधना करते हैं।

सौदागर की ओर से हर साल मेला, अन्नदान।

धूलधूसरित वह देवी की मूर्ति स्वर्ण कवच और

हीरे-जवाहरात से सजकर भक्तों की

अभिलाषा की पूर्ति में।

आज अखबार में ताज़ा समाचार आया कि

वन रक्षिका बृहद नायकी  के आलम की हुंडी में

अनजान भक्त ने दो लाख रुपये का बंडल डाला है।

सबहिं नचावत राम गोसाईं।।

स्वरचित स्वचिंतक अनंतकृष्णन चेन्नै हिंदी प्रेमी।














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