Thursday, December 3, 2020

वक्त का खेल।

 नमस्ते। वणक्कम।।

"वक्त  की लाठी होती  बेआवाज।"

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विधि की विडंबना ही वक्त का खेल।।

साज़िश इंदिरा  गांधी की ,

पर अनुमान नहीं, अंगरक्षक ही ।

शिवाजी छत्रपति अफजल खां की साजीशें पता नहीं बघनखा।

महात्मा गांधीजी की सत्यता ,

भारी भीड़, नमस्कार की मुद्रा।।

 वक्त की लाठी होती बेआवाज।।

समुद्र तट पर कुतूहल खेल।।

न पता सुनामी का बदनामी करतूत।।

वक्त की लाठी होती  बेआवाज।।

 दस रुपए का लाटरी,

बनाया लखपति।

  शकुंतला दुश्यंत अंगूठी को जाना।

वक्त की लाठी होती बेआवाज।।

राम के पार स्पर्श अहल्या मुक्ति।

 हर जोतना सीता का मिलना,

महाराज जनक के जीवन में,

वक्त की लाठी होती बेआवाज।।

 कारण के जीवन में

 दुर्योधन का आना।

वक्त की लाठी होती बेआवाज।।

स्वरचित स्वचिंतक अनंतकृष्णन चेन्नै

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