Friday, January 29, 2021

रंग

 नमस्ते वणक्कम।

विषय --रंग

विधा अपनी भाषा अपनी शैली अपने छंद अपने‌विचार।

  जिंदगी में कुछ लोग 

  रंग लाते हैं तो 

 कुछ लोग रंग में भंग करते हैं।

   भक्ति के क्षेत्र में रंगे सियार होते हैं।

  रंग बदलने वाले राज नीतिज्ञ होते हैं।

 रंग लाने वाले  रंगे सियार होते हैं।

 रंगे हाथ पकड़ने पर भी भ्रष्टाचारी

 चेहरे के रंग उखड़ने पर भी,

   रवि किरण बन जाते हैं।

   वर्षा के इंद्रधनुष  सात रंग होते हैं।

श्वेतांबर शक्ति का तो

गेरुआ  त्याग का।

व्यवहार में रंग रंग दिखाने वाले

  समाज में बहिष्कृत होते हैं।

  

स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

दादी का गाँव ---संस्मरण

 नमस्ते वणक्कम।

दादी का गाँव
२९-१-२०२१
गुजरात इकाई साहित्य संगम संस्थान।
मैं तमिलनाडु का हूँ।
मेरी दादी का मदुरै जिले में है।
नाम है कुन्नुवारंकोट्टै।
नदी के किनारे पर है।
मंजिल आरु अर्थात पीली नदी।
किनारे पर एक सुंदर शिव मंदिर है।
वहाँ के खेत हरे भरे हैं।
एक बार दशहरे की छुट्टियों में वहां गया था।
मंदिर में नवरात्रि मेला का कोलाहाल।
देव देवी की कीर्ति पुजारी के हाथ में।
अति सुन्दर अलंकार ऐसा लगता,
जैसा देवी प्रत्यक्ष बोलती।
हीरे के कर्णाभूषण, नक बेसर
अधिक चमकती।
जवान लडकियाँ रंग-बिरंगे डांडिया लेकर नाचते।
रंग-बिरंगे पटाखे, फुलझडियाँ नाना प्रकार के पटाखे।
छूटते समय निराली और चमत्कार से पूर्ण।।
दस दिन का आनंद पर्व।
एक दिन राकेट उड़ी तो ऊपर न चलकर,
जमीन से सीधे चली एक दूकान पर पड़ी।
वहाँ पकवान बनाए रहे थे,
बड़े बर्तन पर तेल उबाल रहा था।
अचानक जलने से रसोइये पर उबालते तेल।
खुशी का कोलाहाल शोक शोर गुल में बदल गया।
बीस पच्चीस लोग घायल हो गए।।
भगवान के अनुग्रह से सब जिंदा रहे।।
भगवान को कृतज्ञता व्यक्त कर
सुंदर गाँव के आनंद के साथ
पटाखे की सावधानी का संदेश लेकर शहर लौटा।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

गंगा

 नमस्ते वणक्कम।

गंगा।२९-१-२०२१

 गंगा नदी अति पवित्र।

 सुना है जल पीने से स्वास्थ्य लाभ।

 प्राण पखेरु उड़ जाने के पहले

तड़पती आत्मा के मुख में

गंगाजल पिलाना अति पुण्य।।

पर मैं आया २०१९में ,

 काशी और प्रयाग में बाढ़ ही बाढ।

पर खेद की बात है कि 

पीने का पानी एक लिटर २२रुपये।

यह भारत का है बड़ा अपमान।

औद्योगिकीकरण शहरीकरण नगर विस्तार।

पवित्र नदी को अपवित्र बनाना,

 हिंदु ओं में अश्रद्धा होना,

 देश के कल्याण के लिए  उचित नहीं।

 पंचवटी गया तो वहाँ गंदा पानी,

 ठहर रहा है, भारतीयों में

चाहिए पवित्र अचंचल भक्ति भाव।।

स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

हम सफर

 नमस्ते वणक्कम।


कलम बोलती है साहित्य समूह।

विषय --हम सफर।

दिनांक २९-१-२०२१

आयोजन संख्या --२५१

हम सफर है "भारत देश के"।

हम सफर है परिवार के।

हम सफर है दोस्तों के।

हम सफर है भक्ति के मुक्ति के।

हम सफर है मधुशाला के।

हम सफर है जेल खाने के।

हम सफर है पागल खाने के।

हम सफर है अमुक दल के।

हम सफर है तब तक,

जब काल अपने 

हिसाब न चुकाता।

नश्वर जगत के  हम सफर।

न जाने जब अकेले सफर

दूसरों के कंधों पर  या अमर वाहन पर।

स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै।













 



Thursday, January 28, 2021

जिंदगी प्यार का गीत

 नमस्ते वणक्कम।

शीर्षक :- जिंदगी प्यार का गीत है।


मेरा जमाना 

 शादी के बाद,

बुढ़ापे तक का प्यार।

आज प्यार के बाद शादी,

अंतर्राष्ट्रीय, अंतर्जातीय, अंतर्रप्रांतीय,

शादी, तलाक पुनर्विवाह। 

समाज सुधार के गीत,

दिल का गीत।

 प्यार भरा गीत,

पाश्चात्य सभ्यता और भारतीय

 संस्कृति मिलन,  

बेचैन जिंदगी प्यारे !गीत गाओ,

प्रीत का पर पाश्चात्य सभ्यता का

न बनो पिछलग्गू।।

स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

जिंदगी प्यार का गीत

 नमस्ते वणक्कम।

शीर्षक :- जिंदगी प्यार का गीत है।


मेरा जमाना 

 शादी के बाद,

बुढ़ापे तक का प्यार।

आज प्यार के बाद शादी,

अंतर्राष्ट्रीय, अंतर्जातीय, अंतर्रप्रांतीय,

शादी, तलाक पुनर्विवाह। 

समाज सुधार के गीत,

दिल का गीत।

 प्यार भरा गीत,

पाश्चात्य सभ्यता और भारतीय

 संस्कृति मिलन,  

बेचैन जिंदगी प्यारे !गीत गाओ,

प्रीत का पर पाश्चात्य सभ्यता का

न बनो पिछलग्गू।।

स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

कवि और धन

 नमस्ते वणक्कम।

काव्य कला सेवा,

कविगणों की अमर सेवा।

तमिल के राष्ट्र कवि भारतियार ने

इस भाव में लिखा कि

मैं पशु पक्षी कीड़ा नहीं कविहूँ

युग युगांतर तक जीवित रहूँगा।

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भारत भूमि ज्ञान भूमि दिव्य भूमि।

ऋषि मुनि साधु संत अगजग के  मार्गदर्शक।

स्वार्थी देशद्रोही,लोभी,कामी ,क्रोधी, अहंकारी,चली,कपटी,

 कलियुग में नहीं ,त्रेता युग,द्वापर  युग में भी थे।

जन संख्या वृद्धि के साथ साथ,

ये भी बढ़ रहे हैं।

 विभीषण था तो आंबी था।

वह सूची तो बड़ी लंबी।

जो भी हो, नश्वर दुनिया,

सुनामी पाना, बदनाम पाना अपने अपने कर्म फल।

 धन है, धन बल जिंदा रहूँगा, कामयाबी का सम्राट बनूँगा।

यह विचार है अति मूर्खता।।

कई करोड़ पतियों के यहाँ असाध्य रोगियों को देखा।

अति प्रयत्न के बाद भी राजकुमार सिद्धार्थ बना बुद्ध।।

स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै।

तमिलनाडु के हिंदी प्रेमी , प्रचारक।।