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Thursday, January 28, 2021

कवि और धन

 नमस्ते वणक्कम।

काव्य कला सेवा,

कविगणों की अमर सेवा।

तमिल के राष्ट्र कवि भारतियार ने

इस भाव में लिखा कि

मैं पशु पक्षी कीड़ा नहीं कविहूँ

युग युगांतर तक जीवित रहूँगा।

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भारत भूमि ज्ञान भूमि दिव्य भूमि।

ऋषि मुनि साधु संत अगजग के  मार्गदर्शक।

स्वार्थी देशद्रोही,लोभी,कामी ,क्रोधी, अहंकारी,चली,कपटी,

 कलियुग में नहीं ,त्रेता युग,द्वापर  युग में भी थे।

जन संख्या वृद्धि के साथ साथ,

ये भी बढ़ रहे हैं।

 विभीषण था तो आंबी था।

वह सूची तो बड़ी लंबी।

जो भी हो, नश्वर दुनिया,

सुनामी पाना, बदनाम पाना अपने अपने कर्म फल।

 धन है, धन बल जिंदा रहूँगा, कामयाबी का सम्राट बनूँगा।

यह विचार है अति मूर्खता।।

कई करोड़ पतियों के यहाँ असाध्य रोगियों को देखा।

अति प्रयत्न के बाद भी राजकुमार सिद्धार्थ बना बुद्ध।।

स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै।

तमिलनाडु के हिंदी प्रेमी , प्रचारक।।

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