Wednesday, January 27, 2021

अतीत की यादें।

 [27/01, 9:48 am] sanantha 50: गणतंत्र दिवस,

 मजहब के नाम देश बँटवारा।

 संविधान हमारा धर्म निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य।

 खेद है- राष्ट्र गीत गाने खड़ा रहने

 तैयार नहीं ,वंदेमातरम के विरोध।

  कानून के सामने सब बराबर।

 देव के दर्शन में 

अमीर मंदिर,

 गरीब मंदिर।

 शहर के मंदिर,

गाँव के मंदिर।

 अमीर विद्यालय

 गरीब विद्यालय।

 भारत एक ।

पाठ्य क्रम अलग अलग।

 सोना एक, 

स्तर दाम अलग अलग।

 राष्ट्रीय बैंक सोने के दाम मेंफर्क।

डाक् घर का सोना,

स्टेट बैंक का सोना 

इंडियन बैंक का सोना

अलग अलग दाम।

एक दूकान का दाम 

 दूसरी दूकान में कहते

 स्वर्ण में मिलावट ज्यादा।

 कानून के सामने सब बराबर।

 सोना स्वर्ण कांचन 

वह भी विश्वसनीय नहीं।

 लोकतन्त्र में समान अधिकार।

 स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी

[27/01, 11:02 am] sanantha 50: नमस्ते वणक्कम।

काव्य कला सेवा,

कविगणों की अमर सेवा।

तमिल के राष्ट्र कवि भारतियार ने

इस भाव में लिखा कि

मैं पशु पक्षी कीड़ा नहीं कविहूँ

युग युगांतर तक जीवित रहूँगा।

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भारत भूमि ज्ञान भूमि दिव्य भूमि।

ऋषि मुनि साधु संत अगजग के  मार्गदर्शक।

स्वार्थी देशद्रोही,लोभी,कामी ,क्रोधी, अहंकारी,चली,कपटी,

 कलियुग में नहीं ,त्रेता युग,द्वापर  युग में भी थे।

जन संख्या वृद्धि के साथ साथ,

ये भी बढ़ रहे हैं।

 विभीषण था तो आंबी था।

वह सूची तो बड़ी लंबी।

जो भी हो, नश्वर दुनिया,

सुनामी पाना, बदनाम पाना अपने अपने कर्म फल।

 धन है, धन बल जिंदा रहूँगा, कामयाबी का सम्राट बनूँगा।

यह विचार है अति मूर्खता।।

कई करोड़ पतियों के यहाँ असाध्य रोगियों को देखा।

अति प्रयत्न के बाद भी राजकुमार सिद्धार्थ बना बुद्ध।।

स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै।

तमिलनाडु के हिंदी प्रेमी , प्रचारक।।

[27/01, 9:49 pm] sanantha 50: नमस्ते वणक्कम।

यादें अतीत की।

अतीत की यादें

 आनंद प्रद।

संतोषप्रद।

सम्मिलित परिवार।

 दादा दादी,

चाचा चाची।

टाटा काकी।

 बुआ बुआयिन।

सब के चार-चार बेटे।

एक ही रसोई घर।

  कमरे नहीं, एक बड़ा हाल।

औरतों को अपने कामों से निवृत्त होकर,

कब सोने  के लिए  आती,

अपने पति से बोलती या न बोलती पता नहीं।

हमारे सोने के बाद आतीं।

हमारे उठने के पहले उठती।

सब  गर्भवती हर साल एक बच्चा।

 हमने कभी पति पत्नीसे मिलते बोलते 

कहीं बाहर जाते न देखा।

न मनोरंजन,न टि वी।

सदा काम घर नहीं, धर्म शाला।

हमेशा रिश्तेदारों की भीड़।

हमें न गृह पाठ,न पढो,पढ़ो का उपदेश।

न अंक की चिंता न महाविद्यालय की भर्ती की चिंता।

आनंद मय अतीत,आज के बच्चे सुनकर 

दांतों तले उंगली दबा्ते।

स्वरचित स्वचिंतक ‌से.अनंतकृष्णन।चेन्नै। तमिल नाडु के हिंदी प्रचारक हिंदी प्रेमी।

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