Saturday, September 16, 2023

बाल परिश्रम

 

आज का बालक कल का नागरिक है।वे देश को आगे बढ़ाने वाले हैं। वे देश के रक्षक है।वे देश के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले हैं।
होनहार बिरवान के होते चिकने पात।
पाँच साल की उम्र से उनको उचित शिक्षा देनी चाहिए।
मानव के तन,मन,धन के बल ईश्वर की देन है।
मानव अपने प्रयासों से अपनी तरक्की कर सकता है।
अच्छे विचार, संस्कार,शिक्षा आदि संगति का फल होता है। सामूहिक विकास के लिए अभिभावक, समाज,नाते,रिश्ते, सरकारी प्रशासन सबके सम्मिलित शक्ति की आवश्यकता होती हैं।
सब को समान। मौका देना चाहिए तो सबकी बुद्धि लब्धि, आर्थिक व्यवस्था , शारीरिक बल एक समान होना चाहिए।
यह तो ईश्वरीय सृष्टि दोष है। चंद्रगुप्त को चाणक्य मिल गया।वे सम्राट बन गये। एक में बल दूसरे में बुद्धि बल।
शारीरिक बल और बुद्धि बल एक साथ मिलने पर भी आर्थिक बल ही प्रधानता है। कर्ण को दुर्योधन साथ नहीं देता तो उसका शौर्य और दानवीरता प्रकट नहीं होती।
आजकल सर्वशिक्षा अभियान है। सरकारी पाठशालाएँ हैं। सबको समान शिक्षा का अधिकार हैं। पाठशाला अनेक प्रकार के होते हैं। एक उच्चतम अमीरों के लिए,
एक उच्च मध्यवर्गीय लोगों के लिए, मध्यवर्ग के लिए।
इनमें बुद्धि लब्धि हो या न हो पढ़ने का अवसर सबको मिलता है। पढ़ें या न पढें अमीर मालिक बन जाता है।
सांसद, मंत्री बन जाता है।
यह जन्म जात अमीरी ओर बुद्धि लब्धि के भेद भाव प्रकृति या ईश्वरीय देन को बदलना बुद्धिजीवियों के या सत्ताधारियों के वश में नहीं हैं।
मानव मानव में समानता कानून रूप हो जाता है।
व्यवहार में यह संभव नहीं है।
आज भी बच्चों को लेकर भीख माँगनेवाले हैं।
बाल संन्यासी होते हैं। बाल कलाकार होते हैं।
सरकार नियम के अनुसार बालक को चौदह साल तक ही
शिक्षा अनिवार्य है। पंद्रह साल में वह मज़दूर बनने का अधिकार पाता है।
हम तो बाल श्रमिकों के विरुद्ध ज़ोरदार भाषण दे सकते हैं। बड़े बड़े निबंध लिख सकते हैं। लालबहादुर शास्त्री तैरकर पाठशाला जाते थे। राष्ट्रपति स्वर्गीय अब्दुल कलाम अखबार वितरण का काम करते थे। आजके विश्वविख्यात प्रधानमंत्री क्षी नरेंद्र मोदी जी चाय की दूकान में।
भूखा भजन न गोपाल।
बाल श्रमिकों को दूर करना है तो जन्मजात बच्चों को लेकर भीख माँगने का दृश्य नजर न आना चाहिए।
साहित्य समाज का दर्पण है।
आजकल अधिकांश चित्र पट का कथानक
ईमानदारी अधिकारियों को बदमाश सपरिवार हत्या कर देता है। उनके शिशु को दयावश पालकर सद्भाव बना देता है। वह बद्माश डाका डालता है।चोरी करता है। अंतराल के बाद वही बद्माश अधिकारियों को मारता है, कानून अपने हाथ में लेकर आम लोगों को बचाता है।
बाल श्रमिक कैसे बनते हैं पता नहीं।
जेलर रजनीकांत का फिल्म की शिक्षा कानून के द्वारा बदमाश को समूल नष्ट करना असंभव है।
बालश्रमिकों को रोकने सरकार को सभी बच्चों की देखरेख ,लालन पालन को खुद अपनाना चाहिए।
अविवाहित पागल स्त्री भी गर्भवती बनती हैं।
अबार्शन को कानूनी मान्य है।
कर्मफल के अनुसार अमीर गरीबी, बुद्धिलब्धी , रोग असाध्य रोग जब तक दूर नहीं होगा,तब तक बालश्रमिकों को 100%दूर करना असंभव है।
तन बल सब में नहीं।
धन बल सब में नहीं।
मन बल सद्यःफल के लिए
झुक जाता है,
अपने आदर्श प्रतिनिधि चुनने के लिए वोट देने पैसे लेनेवाले हैं। ३०%वोट नहीं देते ।वोट देने का कर्तव्य निभाने ३०% विमुख है। २०% स्वार्थी हैं।
बाल श्रमिकों को रोकना है तो बाल भिखारी , भिखारी बनाने बच्चों की चोरी करनेवाले सबको कठोर दंड देना चाहिए।
बालक को भीख न देना चाहिए।
अध्यापक मज़दूर नहीं,
त्याग मय जीवन बिताना चाहिए।
प्रैवेट ट्यूशन को रोकना चाहिए।
नीट की चिंग सेंटर की लूट रोकना चाहिए।
अभीर गरीब पाठशाला के भेद दूर करना चाहिए।
वर्दी एक समान पहनने से समान भाव नहीं है।
वर्दी के कपड़ों के भेद दूर करना चाहिए।
पाठशाला इमारतों की तुलना कीजिए।
पेय जल नहीं,पट्टी नहीं, प्रयोगशाला नहीं,श्यापट नहीं,खड़िया नहीं ।
बालश्रमिकों को दूर करने यहाँ से श्री गणेश करना चाहिए।
एस.अनंतकृष्णन द्वारा
स्वरचित लेख।

Sunday, September 10, 2023

शिक्षक

  एस.अनंतकृष्णन ‌का नमस्कार।

वणक्कम।



शीर्षक ---शिक्षक 

विधान --अपनी भाषा, अपने सोच विचार, अपनी शैली।

************


शिक्षक

  शिष्टाचार सिखानेवाले।

 क्षमता बढ़ानेवाले

 कर्म सिखानेवाले,

 कर्म फलों के पाप-पुण्य

दंड सजा की व्याख्या करने वाले

 अनुशासन, अच्छी चालचलन सिखानेवाले।

आजकल के शिक्षकों में

  धन प्रधान माननेवाले

 स्वार्थ भी होते हैं,

   पुलिस भी, न्यायाधीश भी।

   हे ईश्वर , 

हमें चाहिए ,

आदर्श शिक्षक।

 न लोभी हो,न क्रोधी हो।

 ज्ञान के पारंगत हो।

 तटस्थ हो, 

 सभी छात्रों को माने,

 एक समान।

धनी छात्रों का आलिंगन।

 गरीब छात्रों से नफ़रत न हो।

 अंक देने में न हो पक्षपात।

 आदर्श शिक्षक न्याय प्रिय हो।

 न चाहिए हिरण्यकश्यप  के आतंकित गुरु।

 न चाहिए ऐसे गुरु जो अपने एक शिष्य को ऊँचा करने

दाहिने हाथ का अंगूठा काटे।

 न चाहिए ऐसे गुरु,

 जाति भेद को बड़ा मान,

 शिष् को शाप दें।

 आदर्श शिक्षक

तटस्थ हो,

 सर्वशिक्षा अभियान में 

साथ दें। लाख

 एस. अनंतकृष्णन,

स्वरचित स्वचिंतक।

तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक।

 आदर्श शिक्षक

 जाति, धन, कुल, रंग, संप्रदाय नहीं देखते।

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।।

 मोलकरो तलवार का,पड़ा रहन दो म्यान।।

  एकलव्य ही निपुण न अर्जुन।

  कितना पक्षपात द्रोह चिंतन।

 परिणाम तमिलनाडु राजनीति

  जाति भेद समूल नष्ट करना चाहती।

 पर आर्थिक भेद मिटाना,

 मधुशाला बंद करना,

 शिक्षा सीखने धन की अनिवार्यता

 मिटाना असंभव  ।

अंग्रेज़ी भाषा की अनिवार्यता

 आदर्श शिक्षा नहीं।

 धन प्रधान शिक्षा,

न नीति,न अनुशासन,न संस्कृति,न अच्छी चालचलन।।

न देश भक्ति, न राष्ट्र सेवा,

 पढ़, प्रतिभाशाली बनो,

 एनकएनप्रकारेन धन जोडो।

 विदेश में बस जाओ।

 यह शिक्षा देश की तेज़ प्रगति में बाधक।

 स्नातक स्नातकोत्तर की संख्या से हम फले फूले हैं।

पर तलाक के मुकद्दमे,

 अवैध संबंध , अर्द्धनग्न पोशाक

जलवायु के प्रतिकूल भोजन

बढ़ते वृद्धाश्रम मानव मन को

 निर्दयी/बेरहमी बना रही है।

इस कमी को दूर करने  राष्ट्रीय शिक्षा की अनिवार्यता ही आदर्श शिक्षक बनाएगा।

Wednesday, September 6, 2023

आदर्श अध्यापक

 आधुनिक काल में 

आदर्श शिक्षक।

प्राचीन काल के आदर्श शिक्षक।

निजी स्कूलों के शिक्षक

 सरकारी स्कूलों के शिक्षक।

कोचिंग सेंटर के शिक्षक।

मातृभाषा माध्यम शिक्षक।

अंग्रेज़ी माध्यम शिक्षक।

इनके वेतन,

आज़ादी

गुलामी 

बेगारी

अभिभावकों का मनोभाव

 सामाजिक मनोभाव

मनोवैज्ञानिक प्रभाव।

इन सब की तुलना में

आदर्श शिक्षक कैसे?

तन भरा, मन भरा, धन भरा 

छात्रवर्ग,

भूखा प्यासा, मन दुखित ,गरीबी

छात्र वर्ग।

तुलना करके देखिए।

प्रतिभाशाली वर्ग ही ध्वनियों के

अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल के।

ट्यूशन जरुरी,

अभिभावक माता-पिता

 स्नातक होना अनिवार्य।

अंग्रेज़ी में बोलना अनिवार्य।

अभिभावक समय पास करने अध्यापक।

प्रशिक्षित हो या अप्रशिक्षित पता नहीं।

अस्थाई नौकरी।

माता-पिता की देख देख में शिक्षा।

भूखा-प्यासा औसत से या उससे कम बुद्धि लब्धि के छात्र।

अध्यापक प्रशिक्षित,

 स्थाई नौकरी।

 प्रैवेट स्कूल 

अध्यापक से

 दुगुना- तिगुना वेतन।

 अब बताइए आदर्श शिक्षक कौन?

प्रतिभाशाली छात्रों और अभिभावकों का अमीरी स्कूल।

औसत बुद्धि को ,भूखे प्यासे 

गरीबों की सरकारी पाठशाला के अध्यापक ।

आदर्श अध्यापक कौन ?

   एस.अनंतकृष्णन

तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

 



Invite

होनहार बिरवान के होते चिकने पात।
पाँच साल की उम्र से उनको उचित शिक्षा देनी चाहिए।
मानव के तन,मन,धन के बल ईश्वर की देन है।
मानव अपने प्रयासों से अपनी तरक्की कर सकता है।
अच्छे विचार, संस्कार,शिक्षा आदि संगति का फल होता है। सामूहिक विकास के लिए अभिभावक, समाज,नाते,रिश्ते, सरकारी प्रशासन सबके सम्मिलित शक्ति की आवश्यकता होती हैं।
सब को समान। मौका देना चाहिए तो सबकी बुद्धि लब्धि, आर्थिक व्यवस्था , शारीरिक बल एक समान होना चाहिए।
यह तो ईश्वरीय सृष्टि दोष है। चंद्रगुप्त को चाणक्य मिल गया।वे सम्राट बन गये। एक में बल दूसरे में बुद्धि बल।
शारीरिक बल और बुद्धि बल एक साथ मिलने पर भी आर्थिक बल ही प्रधानता है। कर्ण को दुर्योधन साथ नहीं देता तो उसका शौर्य और दानवीरता प्रकट नहीं होती।
आजकल सर्वशिक्षा अभियान है। सरकारी पाठशालाएँ हैं। सबको समान शिक्षा का अधिकार हैं। पाठशाला अनेक प्रकार के होते हैं। एक उच्चतम अमीरों के लिए,
एक उच्च मध्यवर्गीय लोगों के लिए, मध्यवर्ग के लिए।
इनमें बुद्धि लब्धि हो या न हो पढ़ने का अवसर सबको मिलता है। पढ़ें या न पढें अमीर मालिक बन जाता है।
सांसद, मंत्री बन जाता है।
यह जन्म जात अमीरी ओर बुद्धि लब्धि के भेद भाव प्रकृति या ईश्वरीय देन को बदलना बुद्धिजीवियों के या सत्ताधारियों के वश में नहीं हैं।
मानव मानव में समानता कानून रूप हो जाता है।
व्यवहार में यह संभव नहीं है।
आज भी बच्चों को लेकर भीख माँगनेवाले हैं।
बाल संन्यासी होते हैं। बाल कलाकार होते हैं।
सरकार नियम के अनुसार बालक को चौदह साल तक ही
शिक्षा अनिवार्य है। पंद्रह साल में वह मज़दूर बनने का अधिकार पाता है।
हम तो बाल श्रमिकों के विरुद्ध ज़ोरदार भाषण दे सकते हैं। बड़े बड़े निबंध लिख सकते हैं। लालबहादुर शास्त्री तैरकर पाठशाला जाते थे। राष्ट्रपति स्वर्गीय अब्दुल कलाम अखबार वितरण का काम करते थे। आजके विश्वविख्यात प्रधानमंत्री क्षी नरेंद्र मोदी जी चाय की दूकान में।
भूखा भजन न गोपाल।
बाल श्रमिकों को दूर करना है तो जन्मजात बच्चों को लेकर भीख माँगने का दृश्य नजर न आना चाहिए।
साहित्य समाज का दर्पण है।
आजकल अधिकांश चित्र पट का कथानक
ईमानदारी अधिकारियों को बदमाश सपरिवार हत्या कर देता है। उनके शिशु को दयावश पालकर सद्भाव बना देता है। वह बद्माश डाका डालता है।चोरी करता है। अंतराल के बाद वही बद्माश अधिकारियों को मारता है, कानून अपने हाथ में लेकर आम लोगों को बचाता है।
बाल श्रमिक कैसे बनते हैं पता नहीं।
जेलर रजनीकांत का फिल्म की शिक्षा कानून के द्वारा बदमाश को समूल नष्ट करना असंभव है।
बालश्रमिकों को रोकने सरकार को सभी बच्चों की देखरेख ,लालन पालन को खुद अपनाना चाहिए।
अविवाहित पागल स्त्री भी गर्भवती बनती हैं।
अबार्शन को कानूनी मान्य है।
कर्मफल के अनुसार अमीर गरीबी, बुद्धिलब्धी , रोग असाध्य रोग जब तक दूर नहीं होगा,तब तक बालश्रमिकों को 100%दूर करना असंभव है।
तन बल सब में नहीं।
धन बल सब में नहीं।
मन बल सद्यःफल के लिए
झुक जाता है,
अपने आदर्श प्रतिनिधि चुनने के लिए वोट देने पैसे लेनेवाले हैं। ३०%वोट नहीं देते ।वोट देने का कर्तव्य निभाने ३०% विमुख है। २०% स्वार्थी हैं।
बाल श्रमिकों को रोकना है तो बाल भिखारी , भिखारी बनाने बच्चों की चोरी करनेवाले सबको कठोर दंड देना चाहिए।
बालक को भीख न देना चाहिए।
अध्यापक मज़दूर नहीं,
त्याग मय जीवन बिताना चाहिए।
प्रैवेट ट्यूशन को रोकना चाहिए।
नीट की चिंग सेंटर की लूट रोकना चाहिए।
अभीर गरीब पाठशाला के भेद दूर करना चाहिए।
वर्दी एक समान पहनने से समान भाव नहीं है।
वर्दी के कपड़ों के भेद दूर करना चाहिए।
पाठशाला इमारतों की तुलना कीजिए।
पेय जल नहीं,पट्टी नहीं, प्रयोगशाला नहीं,श्यापट नहीं,खड़िया नहीं ।
बालश्रमिकों को दूर करने यहाँ से श्री गणेश करना चाहिए।
एस.अनंतकृष्णन द्वारा
स्वरचित लेख।

Sunday, September 3, 2023

हिंदी

 असल में कन्याकुमारी से हिंदी यात्रा करनी है, जहाँ हिंदी का कठोर विरोध है।

 1937से यह विरोध   अंग्रेज़ शासकों के समर्थकों ने किया है।

जस्टिस पार्टी वाले द्राविड़ दलवालों ने  जिनकी माँग  अलग तमिलनाडु की माँग करते थे।

 यह हिंदी विरोध   राष्ट्रीय दलों को पनपने नहीं दिया।

आचार्य विनोबा भावे ही गाँव गाँव में हिंदी द्वारा आह्वान दिया।

 अब अंग्रेज़ी माध्यम पाठशाला जिनकी संख्या हर साल बढ़ रही है, जिनकी अनुमति केंद्र सरकार दे रही है, कारण सब के सब अंग्रेज़ी के पारंगत हैं।

 उनके मन में यह बात जम गई कि बगैर अंग्रेज़ी के भारत की प्रगति नहीं।

 वे पाश्चात्य रंग में रंगकर, थप्पड़ खाकर स्वतंत्रता सेनानी बने।

भारतीय मंदिर, संगीत, कलाएँ, कुटिर उद्योग , कृषि पद्धति ‌किसी का पता नहीं। जिन्होंने इन का महसूस किया, भारतीयों को भारतीय ढंग से आगे बढ़ाना चाहा,वे सत्ताधारी न बने।

  पंडित जवाहरलाल नेहरू तो

 उनके परिवार उनके‌वंशज पाश्चात्य परिवेश में पले।

 कृषि प्रधान देश को औद्योगीकरण की ओर ले गये।

परिणाम भारतीय झील गायब।

नदियों में प्रदूषण।

 नदियों के राष्ट्रीय करण नहीं  किया। ठंडे पेय विदेशों का।

 पेय जल विदेशी कारखानों का।

 गंगा के किनारे मिनरल वाटर की बिक्री।

 शैतानों की कुदृष्टि।

सब को  चैन नगर के चार बेकार

श्री सुदर्शन की कहानी बार बार पढ़ना चाहिए। पढ़ाना चाहिए।

 वेद मंत्र के समान  सुदर्शन की कहानी भारतीयों को जगाने वाली हैं।

 पहले मेहनती खाते थे, ब बेकार ऐश आराम।

 चुनाव में पैसे फेंको, पाँच साल में हजारों गुना कमाओ।

 बैंक में मिनिमम बैलेंस के नाम से  लेटो। उद्योगपतियों का कर्जा माफ कर दो।

 इतना बढ़ा गरीबों का लूट।

 वे गरीबों का भला क्या करेंगे।

    हिंदी के प्रचार हिंदी अधिकारियों के वेतन से नहीं,

 तमिलनाडु के प्रचारकों को देना चाहिए।

 वे अपने मनोरंजन त्याग कर हिंदी का प्रचार हिंदी विरोध शासकों के क्षेत्र में र रहे हैं।

आज तमिलनाडु में दो लाख हिंदी परीक्षार्थी है तो न हिंदी अधिकारियों की देन।

 आत्मचिंतक  भारतीय एकता चाहनेवाले हिंदी प्रचारक।

घर घर दरवाजा से बुलाकर मुफ्त में हिंदी प्रचार करते।

 पर हिंदी अधिकारी हस्ताक्षर करके वेतन भोगते हैं।

 अतः  हजार स्थाई हिंदी प्रचारक की नियुक्ति करनी चाहिए।

प्रशिक्षित प्रचारक।

जीविकोपार्जन के प्रबंध के बिना

हिंदी का विकास केवल बोलचाल ही रहेगा।

 हिंदी अधिकारी 76साल में कितने लोगों को सरकारी पत्राचार को सार्थक बनाया।

 सोचिए।

 करोड़ों नौकरी अंग्रेज़ी ज्ञाताओं को।

भूखा भजन न गोपाल।

 संस्कृत तज अंग्रेज़ी सीखी।

कारण गुमाश्ता, वकील, डाक्टर।

 भारतीय भाषाएँ जीविकोपार्जन का लायक नहीं।   

 सोचिए। कदम उठाइए।

शताब्दी वर्ष हिंदी प्रचार सभा में

स्थाई हिंदी प्रचारक हैं ही नहीं।

एस. अनंत कृष्णन चेन्नई तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

 1967 से आज तक।

Friday, September 1, 2023

शाहंशाह

 नमस्ते। वणक्कम।

 प्रभु के यहाँ देर है,अंधेर नहीं।

    

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।4.8

 भद्रजनों की रक्षा के लिए,

 बद्कर्मों को नाश करने के लिए

 धर्म कर्मों की  ओर मानवको जगाने के लिए, 

 धर्म  की स्थापना करने केलिए

भगवान समय समय पर अवतार लेते हैं।

 संसार में भगवान की सृष्टियों में

 भगवान कंजूसी करते हैं।

 यह भगवत् लीला अति सूक्ष्म है।

 एक पौधे में फूल एक है।

 काँटों की संख्या अधिक हैं।

  कोई भी काँटों की ओर ध्यान नहीं देता।

सिंह की गंभीरता सराहनीय है।

पर वह आदमखोर हैं।

बाघ आदमीखोर है।

मच्छर अति छोटे हैं।

 मानव के खून चूसने वाले हैं।

मधु मक्खियाँ ज्यादा हैँ।

 उनके छत्ते में स्वादिष्ट,

 मधुर शहद का संग्रह है।

  आदमखोरों से मानव 

अपने बुद्धि बल से  नचाता है।

काँटों से सावधान रहता हैं।

मच्छरों  के काटने से बचता है।

कैसे?अपने बुद्धि बल से।

मधु का संग्रह करता है,

अपने बुद्धि-विवेक से।

काँटों के चुभने सावधान हो जाता है।

बुद्धियुक्त मानव अपने विवेक हीन कर्मों के कारण

समाज को बेचैनी  कर देता है‌।।

कारण उनकी बुद्धि सद्यःफल के लिए मंदिर जाती है।।

काम,क्रोध,मंद,लोभ मानव को महामूर्ख बना देता है।

विश्व के इतिहास में, भारतीय पौराणिक काव्यों में

आसुरी शक्ति ही सत्तारूढ़ शक्ति रही‌।

सत्ता के डर से सिवा प्रह्लाद के 

बाकी सब। हिय्यण्याय नमः का जप करते थे।

भगवान का नाम लेनेवाला प्रह्लाद,

अत्यंत कष्ट सहकर जिंदा रहा।

सत्य हरिश्चन्द्र के दुख का अंत न रहा।

 भगवान के यहाँ देर है, अंधेरा नहीं।

भगवान की देरी सहने शक्ति चाहिए।

सत्य चाहिए।

असह्यकष्टों को सहना चाहिए।

मानव में अधिकांश माया/शैतान के मोह में

विवेक हीन होकर भ्रष्टाचारी में सुख मानते हैं।

 भगवान् के भक्त लौकिक सुख नहीं चाहते।

कबीर ने कहा है,

चाह गयी चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।

जाको कछु न चाहिए,वही शाहंशाह।।


 एस. अनंत कृष्णन,

स्वचिंतक स्वरचनाकार।शाहँनशाह